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गलतियों को स्वीकारना हिम्मत का काम है ना कि बुझदिली का?
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8 साल में खोखली बुनियाद रखने के लिए कौन जिम्मेदार?
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खोखली बुनियाद रखने के लिए जिम्मेदार कौन पदाधिकारी या चुनाव समिति?
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ना तो कटक मारवाड़ी समाज का स्थाई कार्यालय है और ना ही स्थाई सहयोगी कर्मचारी?
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क्या गुनाह का काम है चुनाव समिति का पदभार संभालना?
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चरित्र पर उठ रही उंगली के बाद कटक मारवाड़ी समाज के कुछ सदस्यों ने उठाए सवाल
हेमंत कुमार तिवारी, कटक
कटक मारवाड़ी समाज के अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर जिस प्रकार से समाज में माहौल उत्पन्न हो रहे हैं, उसे लेकर समाज के कई प्रबुद्धजनों ने चिंता जताई है। कई सदस्यों ने बातचीत के दौरान चिंता जाहिर की कि क्या चुनाव समिति पर किसी के द्वारा दबाव बनाने का प्रयास किया जा रहा है? यदि ऐसा हो रहा है, तो यह पूरे समाज के लिए चिंता का विषय है। उल्लेखनीय है कि मीडिया में लगातार चुनाव समिति पर उंगली उठाए जाने के कारण प्रबुद्धजनों ने यह चिंता जाहिर की है। इनका मानना है कि अगर हाल यही रहे तो इस बार तो किसी भी तरह मान लीजिए चुनाव संपन्न हो जाएगा, लेकिन अगली बार कोई भी पाक-साफ छवि वाला व्यक्ति चुनाव समिति का कार्य नहीं संभालेगा। इन प्रबुद्धजनों ने कहा कि गलतियां इंसान से ही होती हैं, लेकिन बड़ी बात होती है इनको स्वीकार कर सही करना और कटक मारवाड़ी समाज की चुनाव समिति के सदस्य बहुत ही सुलझे हुए व्यक्ति हैं और उन्होंने अपनी गलतियों को स्वीकार कर सबसे अवगत कराया। यह बहुत ही बड़ी बात है कि इतने बड़े समाज के अध्यक्ष पद की चुनावी प्रक्रिया के दौरान हुई गलती को उन्होंने स्वीकार कर सुधारी। इस दौरान प्रबुद्धजनों ने यह भी सवाल उठाया कि क्या इतने कम समय में चुनावी प्रक्रिया को संपन्न कराना उचित है, खासकर उन परिस्थितियों में जब हमने समाज की बुनियाद ही खोखले संरचनाओं पर रखी है। प्रबुद्धजनों का इशारा कटक मारवाड़ी समाज के स्थाई कार्यालय और इसमें स्थाई कर्मचारियों के नहीं होने के तरफ था। प्रबुद्धजनों ने कहा कि आप भी देखते होंगे कि चुनाव समिति का भी अपना एक कार्यालय होता है और उसके अधीनस्थ कुछ स्थाई कर्मचारी भी होते हैं। इन कर्मचारियों का काम होता है सालभर में सूचियों को अपडेट करना तथा चुनावी प्रक्रिया से संबंधित सभी डाटा को सही तरीके से रखना, लेकिन इनकी बात तो छोड़िए कटक मारवाड़ी समाज का स्थाई कार्यालय भी नहीं है। चुनाव समिति पर बार-बार उंगली उठाने से चंद दिनों में ये व्यवस्थाएं नहीं हो जाएंगी। प्रबुद्धजनों ने सवाल उठाया कि क्या बीते 8 साल तक जिम्मेदारी संभालने वाले वरिष्ठ पदाधिकारी भी अपनी गलतियों को स्वीकार करेंगे कि उन्होंने इस समाज की बुनियाद खोखले संरचना पर रखी। उन्होंने कहा कि समाज को अभी इस दिशा में सोचने की जरूरत है कि क्या क्षणिक भर के लिए गठित समितियों पर इस तरह के दबाव बनाए जाने उचित है। लोगों को इस बात पर भी सोचने की जरूरत है कि हम कहां जा रहे हैं? हम समाज में क्या संदेश छोड़ना चाहते हैं? क्या हम गलतियों को सुधारने के लिए प्रेरित कर रहे हैं या दबाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं? कटक मारवाड़ी समाज के अधिकांश सदस्य देश को मजबूती प्रदान करने वाले आर्थिक क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निर्वहन कर रहे हैं और समाजसेवा ही हमारी परंपरा रही है। लेकिन क्या हमें यह सोचने की जरूरत नहीं है कि हमारे समाज के अध्यक्ष पद के चुनाव के समय हम क्या कर रहे हैं? ऐसा किसी को क्यों लग रहा है कि चुनाव समिति किसी व्यक्ति या किसी एक दल के लिए काम कर रही है। अगर यह समिति एक दल के लिए काम कर रही है तो बीते 8 सालों के दौरान कई बार मतदान के समय पुलिस बल को क्यों तैनात करना पड़ा? प्रबुद्धजनों ने सवाल उठाया कि क्या कटक मारवाड़ी समाज का चुनाव असामाजिक तत्वों का चुनाव है कि मतदान के समय संभावित हिंसा के मद्देनजर पुलिस बल को तैनात करना पड़े? क्या हमारी यही पहचान होगी कि समाज में कटक मारवाड़ी समाज के अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर इन सदस्यों के बीच चुनाव समिति पर ही भरोसा नहीं है। इसकी गारंटी कौन लेगा की हमारी विश्वसनीयता भी सवालों के कटघरे में नहीं है। क्या चुनाव समिति को कटघरे में घेर देने से समस्याओं का समाधान होगा या यह समस्या स्थाई तौर पर ना हों, इस पर भी ध्यान दिया जाएगा।
अगर सभी सदस्यों ने चुनाव समिति छोड़ा तो क्या होगा?
कटक मारवाड़ी समाज के अध्यक्ष पद को लेकर चुनावी प्रक्रिया के दौरान जिस तरह के चुनाव समिति को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है, अगर इन परिस्थितियों में अपनी छवि को बचाने के लिए चुनाव समिति के पदाधिकारी खुदको इस समिति से अलग कर लेते हैं तो परिस्थितियां क्या होंगी? क्योंकि चुनाव समिति पर उंगली उठाने का तात्पर्य है कि उसके पदाधिकारी किसी प्रलोभन के कारण एक दल के लिए काम कर रहे हैं। क्या कोई बताएगा चुनाव समिति के पदाधिकारी और नेतृत्व कर रहे वरिष्ठ समाजसेवी और जैन समुदाय के वरिष्ठ सदस्य मंगल चंद चोपड़ा, अधिवक्ता शशि शर्मा, कैलाश प्रसाद सांगानेरिया, दीपक काजरिया और मातृशक्ति का नेतृत्व कर रही शशि मूंदड़ा लालची हैं या इन सभी पदाधिकारियों के चरित्र पर किसी प्रकार के दाग हैं कि इन सभी को लेकर गठित चुनाव समिति पर बार-बार उंगली उठाई जा रही है? किसी को ऐसा क्यों लग रहा है कि किसी के भी अध्यक्ष बनने के बाद सबसे अधिक यदि किसी को फायदा होगा तो इस समिति के 5 पदाधिकारियों को ही होगा। क्या आरोप लगाकर चुनाव समिति के पदाधिकारियों को एक ऐसा चरित्र प्रमाण पत्र नहीं दिया जा रहा है जिससे उनके भविष्य में विश्वसनीयता खतरे में पड़े?