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कहा-शिक्षकों, छात्रों और अविभावकों ने बहुत ही कुशलता से परिस्थिति का किया सामना
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कौशल शिक्षा को बढ़ा देने पर दिया जोर
हेमन्त कुमार तिवारी, भुवनेश्वर
कोरोना महामारी ने शिक्षा प्रदान करने की शैली को बदल दिया है और ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा मिला है. हालांकि इसमें कई लाभ भी हैं और कुछ कमियां भी हैं. उक्त बातें बिड़ला ग्लोबल विश्वविद्यालय के वीसी प्रोफेसर पीपी माथुर ने कहीं. वह विशेष बातचीत कर रहे थे. उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन और शटडाउन के दौरान अधिकांश संस्थानों द्वारा ऑनलाइन कक्षाएं संचालित की गई हैं. हालाँकि भौतिक परिवेश की नकल नहीं की जा सकती. फिर भी शिक्षक और छात्र इस महामारी के दौरान नए परिस्थितियों सामना करने की कोशिश कर रहे हैं. संसाधन युक्त छात्र और शिक्षकों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित करने में कुछ ज्यादा दिक्कतें नहीं हुईं, लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है, जहां आज भी इलेक्ट्रानिक्स गजट पहुंच से दूर हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की सुविधा नहीं है. शहरों में भी इंटरनेट की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. पुस्तकों के अध्ययन तक ऑनलाइन कक्षाएं कुछ हद तक ठीक है, लेकिन उच्च शिक्षा में ऑनलाइन कक्षाओं ने गुणवत्ता को प्रभावित किया है. अस्थिर इंटरनेट, बुनियादी ढांचे की कमी और आमने-सामने की बातचीत न होने जैसी कठिनाई समेत कई ऐसे फैक्टर हैं, जिससे छात्रों को पढ़ाने की गुणवत्ता को प्रभावित किया है.
प्रोफेसर माथुर ने कहा कि हमारी संस्कृति में पाठशालाओं के कई आयाम बताये गये हैं, जिसमें घर से लेकर पड़ोस, खेल के साथी और विद्यालय आदि जुड़े हैं. ऐसी स्थिति में यह भी सामान्य बात है कि छात्र सहकर्मी से बातचीत के माध्यम से काफी सीखते हैं, यह तभी संभव है, जबकि वे एक-दूसरे के साथ होते हैं. साथियों से काफी कुछ सीखने को मिलता है, लेकिन लॉकडाउन के कारण छात्र परिसर में एक साथ नहीं हैं, ऐसी शिक्षा आनलाइन नहीं मिल सकती है.
फीस माफी को लेकर माथुर ने कहा कि इस महामारी के दौरान माता-पिता सहित सभी को वित्तीय नुकसान हुआ है. माता-पिता के लिए कुछ रियायतें मांगना स्वाभाविक है. कोरोना के कारण पढ़ाई की प्रक्रिया को लेकर प्रोफेसर माथुर ने कहा कि मुझे लगता है कि इस महामारी के दौरान हम वर्तमान प्रोटोकॉल के तहत सबसे अच्छा संभव करने में सक्षम हैं. हालांकि, हमें यह समझना चाहिए कि हम इस तरह की घटना का सामना करने के लिए कभी तैयार नहीं थे. इसके बावजूद शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों ने बहुत कम समय में इसे लेकर बहुत अच्छी तरह से सुबकुछ समायोजित किया है.
पाठ्यक्रम घटाने को लेकर माथुर ने कहा कि मुझे हमेशा लगता है कि सभी पाठ्यक्रम को फिर से पढ़ना होगा. इसके साथ ही अब समय आ गया है कि विभिन्न पाठ्यक्रमों के पाठ्यक्रम से अप्रासंगिक विषयों को हटाना होगा. उन्होंने कहा कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में बहुत सुधार की जरूरत है. हालांकि इस कड़ी में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में संबोधित किए गए हैं. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति बहुत व्यापक है और यदि इसे सही ढंग से अक्षर लागू और आत्मासात किया जाता है, तो यह हमारी शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाएगा. नई शिक्षा नीति इसी दिशा में कार्यकारी होगी.
बढ़ती शिक्षा दर के साथ-साथ बढ़ती बेरोजगारी के मुद्दे पर माथुर ने कहा कि वास्तव में उच्च शिक्षा में छात्रों की संख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई है, जो कि 30% है. सरकार की योजना इसे 50% बनाने की है. हालांकि, छात्रों में वांछित कौशल की कमी सहित विभिन्न कारणों से बेरोजगारी बढ़ी है. यह उच्च समय है कि हमें इस समस्या का समाधान करना चाहिए और जल्द से जल्द शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने का प्रयास करना चाहिए. हमें पाठ्यक्रम के माध्यम से छात्रों में विभिन्न कौशल बढ़ाना है. इस महामारी के दौरान मैं छात्रों से घबराहट नहीं करने और समय का बहुत ही उपयोगी तरीके से उपयोग करने का आग्रह करता हूं. कई ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने का प्रयास करते रहना चाहिए, जो उन्हें मजबूत करेगा. इस प्रकार का खाली समय उन्हें कभी नहीं मिलेगा. प्रोफेसर माथुर ने कहा कि अब विद्यालय खुल गये हैं. हमारे यहां सभी कोर्स पूरा हो चुके हैं. उसका पुनार्ध्यन भी शुरू हो गया है. साथ ही उन्होंने अपने विश्वविद्याल के सभी सहयोगी साथियों और छात्रों को लाकडाउन के दौरान बेहतर तालमेल बनाते हुए कोर्स को पूरा करने के लिए आभार जताया.