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9 करोड़ के लिए 30 हजार बच्चों के जीवन के साथ हो रहा है खिलवाड़

  • 261 जर्जर इमारत में चल रहा है स्कूल: इमारत मरम्मत करने को हुआ था कमेटी का गठन: कागजों में गठित हुई है कमेटी

  • 2014 में ही मानवाधिकार आयोग ने इन जर्जर विद्यालयों को तोड़ने के लिए दिया हुआ है निर्देश

शेषनाथ राय, भुवनेश्वर
मात्र 9 करोड़ रुपया खर्च से डर कर हजारों बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. राज्य मानवाधिकार आयोग के निर्देश को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. मुख्यमंत्री से शिकायत किए जाने के बाद भी कोई लाभ नहीं हुआ है. यह राज्य के किसी दूर दराज जिले की बात नहीं है बल्कि जगतसिंहपुर जिले की यह घटना है. जिले में एक या दो नहीं बल्कि 261 जर्जर बिल्डिंग में विद्यालय चल रहा है, जिसमें 30 हजार से अधिक बच्चे पढ़ रहे हैं. इन विद्यालयों की इमारतों को अभी खतरनाक बताया गया है, ऐसा नहीं है, बल्कि 2014 में ही मानवाधिकार आयोग ने इन जर्जर विद्यालयों को तोड़ने के लिए निर्देश दिया हुआ है. इन इमारतों के मरम्मत के लिए भी जिला प्रशासन को निर्देश दिया गया था, मगर आज तक इन विद्यालयों की मरम्मत नहीं की गई है.
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि हाल ही में तिर्तोल उप चुनाव हुआ है. राज्य सरकार से लेकर विरोधी राजनीतिक दल के नेता सभी ने आश्वासन दिया था. इस तरह की भाषणबाजी हुई थी जैसे मानों जगतसिंहपुर जिले का मानो नक्सा ही बदल जाएगा. हालांकि वास्तविकता यह है कि तिर्तोल ब्लाक विरीतोल पंचायत समिति की सदस्य वैजयिनी मलिक ने इन असुरक्षित विद्यालयों के बारे में मुख्यमंत्री से लेकर जिला प्रशासन एवं शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को जानकारी दी, मगर कोई लाभ नहीं हुआ. उन्होंने आरोप लगाया है कि अब्दुल रहीम उच्च विद्यालय की इमारत अत्यन्त ही जर्जर अवस्था में है. यहां पर करीबन 200 छात्र-छात्रा पढ़ाई कर रहे हैं. उसी तरह से जड़डिरा पंचायत के वंधबाटी गांव में मौजूद प्राथमिक विद्यालय की इमारत पूरी तरह से जर्जर हो गई है. 1999 में आए सुपर साइक्लोन के बाद इस स्कूल के साथ एक आश्रय स्थल बनाया गया था. घटिया स्तर का काम होने से 2012 में इसे खतरनाक घोषित कर दिया गया. तब से लेकर आज वर्ष 2021 आ गया मगर इस जर्जर इमारत को अभी तक नहीं तोड़ा गया है. बच्चो के जीवन के प्रति खतरा होने की बात को दर्शाते हुए स्थानीय ग्रामीण ब्लाक शिक्षा अधिकारी के पास शिकायत भी कर चुके है.
ये दो विद्यालय उदाहरण मात्र हैं. इस तरह के और शताधिक विद्यालय है जहां बच्चे पढ़ने तो जा रहे हैं, मगर वापस अपने घर लौटेंगे या नहीं यह कहना मुश्किल है. अभिभावकों की शिकायत है कि कोरोना से छोटे छोटे बच्चों को बचाने के लिए सरकार ने महीनों तक स्कूल को बंद रखा था. मगर कोरोना से बड़ी आपदा तो बच्चों की सिर पर लटकी है. आखिरकार सरकार इसे क्यों नहीं समझ पा रही है.
मिली सूचना के मुताबिक 2014 में राज्य मानवाधिकार आयोग के निर्देश के बाद जर्जर विद्यालयों की पहचान करने के लिए सर्वे किया गया था. इसमें पता चला था कि जिले में 261 स्कूलों की इमारत जर्जर है. इसमें से 109 प्राथमिक विद्यालय हैं. इसमें से एक भी स्कूल को अब तक नहीं तोड़ा गया है और ना ही उनकी मरम्मत की गई है. यहां एक और आश्चर्यजनक बात है कि इन जर्जर विद्यालयों को तोड़ने के लिए एक जिला स्तरीय तकनिकी कमेटी का भी गठन किया गया था.
इस कमेटी में अध्यक्ष के तौर पर खुद जिलाधीश थे जबकि सदस्य के तौर पर ग्रामीण विकास विभाग के दो इंजीनियर, ग्रामीण जल आपूर्ति एवं परिमल विभाग के अधिकारी तथा सर्वशिक्षा अभिनायन के जिला प्रोजेक्ट निदेशक को रखा गया था. हालांकि किसी कारण से उस समय कमेटी में रहने वाले दो एक्जीक्यूटिव इंजीनियर लिए गए निर्णय पर हस्ताक्षर नहीं किए. परिणाम स्वरूप कमेटी का निर्णय कार्यकारी नहीं हो पाया. कमेटी में रहने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपना नाम गोपनीय रखने की शर्त पर बताया है कि जिन जर्जर स्कूलों की इमारतों की पहचान की गई थी, उन्हें तोड़ने या मरम्मत करने के लिए करीबन 9 करोड़ रुपया खर्च होना था. इतनी राशि विभाग के पास ना होने से दो इंजीनियर यह नहीं चाहते थे कि इस कमेटी का गठन हो. परिणामस्वरूप तभी से इन स्कूलों की इमारत जर्जर अवस्था में है और बच्चे उसमें पढ़ाई करने को मजबूर हैं.
यहां उल्लेखनीय है कि इन स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई पुन: शुरू होनी है, आपदा के समय स्थानीय लोग इन विद्यालयों में आश्रय लेते हैं, ऐसे में कब क्या होगा यह कोई नहीं कह सकता है. ऐसे में लोगों ने सरकार से जल्द से जल्द इन जर्जर इमारतों को ठीक करने की गुहार लगाई है.

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