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ओडिशा के लोगों में जहर बांट रहे हैं खाद्य माफिया: पूरे प्रदेश में चल रहे हैं मिलावटी खाद्य कारखाने

  •  नहीं हो रही है नियमित जांच

  •  कर्मचारियों की कमी बताकर पल्ला झाड़ रहा स्वास्थ्य विभाग

शेषनाथ राय, भुवनेश्वर
कटक से नकली पनीर मिला, चायपत्ती , टमाटर सस आदि के नकली कारखाने पकड़े गए. मिलावटी खाने के तेल, दूध पाउडर भी मिला है. पिछले कुछ दिनों से कटक शहर में इस तरह के मिलावटी कारखाना पर छापामारी की जा रही है. इस घटना ने स्थानीय इलाके के लोगों के साथ ही पूरे राज्य के लोगों की चिंता बढ़ा दी है. इस तरह के मिलावटी कारखाने केवल कटक में है, ऐसा नहीं है, बल्कि पूरे प्रदेश में ऐसे नकली कारखाने चल रहे हैं. इन नकली कारखानों के बारे में ना प्रशासन जांच कर रहा है और ना ही छापामारी की जा रही है. ऐसे में बाजार में धड़ल्ले से जहर बिक रहा है, लोगों के जीवन के प्रति खतरा बढ़ते जा रहा है. राज्य सरकार, पुलिस प्रशासन सभी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं. सबसे बड़ी बात है कि सरकार की कमजोरी इन नकली कारखानों के मालिकों को अच्छी तरह पता है. मिलावटी खाद्य सामग्री पकड़ने के लिए राज्य स्वास्थ्य विभाग के अधीन खाद्य सुरक्षा आयोग है. हालांकि शहर एवं जिले में जितने खाद्य सुरक्षा अधिकारी होने चाहिए, उतने अधिकारी नहीं हैं. यह खबर मिलावटी कारखाना के मालिकों के पास भी है. ऐसे में इनके साहस और बढ़ गया है. इससे अब लाखों लोगों के जीवन के प्रति खतरा बढ़ने लगा है.
इतिहास के पन्ने को अगर खंगालते हैं तो फिर वर्ष 2007 में बलांगीर कंटाबांजी में बहुचर्चित नकली दवा, 2009 में नकली सैंपू, फेसवास जैसे प्रसाधन सामग्री पकड़े जाने के बाद पूरे राज्य में हलचल मच गई थी. 2020 में भुवनेश्वर स्थित चंदका औद्योगिक क्षेत्र से नकली पानी बनाने वाली कंपनी के ऊपर छापा मारा गया था. उसी तरह से 2020 में ही कटक में रासायनिक पदार्थ से तैयार नकली पनीर कारोबार के बारे में पता चलने के बाद बाजार में किस प्रकार से जहरीली खाद्य सामग्री जा रही है, उसका अनुमान सहजता के साथ लगाया जा सकता है. विशेषज्ञों की माने तो नकली एवं मिलावटी खाद्य साग्री खाने से लोगों की हजम शक्ति घटती है. किडनी एवं लीवर की समस्या उत्पन्न हो रही है. इन नकली सामग्रियों के उपयोग कैंसर जैसी गम्भीर बीमारी का प्रमुख कारण है. सामान्य लोग ठगी का शिकार होकर रोग एव मृत्यु का शिकार हो रहे हैं. इस कारोबार में 70 प्रतिशत तक लाभ होता है.
वहीं दुसरी तरफ लोगों के जीवन के साथ प्रत्यक्ष संपृक्त इस विभाग के प्रति सरकार कितनी जागरूक है, इसका भी इससे अनुमान लगाया जा सकता है. खाद्य सुरक्षा आयोग की तरफ से राज्य के 30 जिलों के लिए 30, महानगर निगम इलाके में 6 एवं भुवनेश्वर मुख्यालय में एक अधिकारी को मिलाकर कुल 37 खाद्य सुरक्षा अधिकारी पद है. इसमें से भी वर्तमान समय में कुल 30 खाद्य सुरक्षा अधिकारी काम कर रहे हैं. आश्चर्य की बात है कि कटक जैसे शहर में जहां मिलावटी खाद्य मिलने की घटना सबसे अधिक होने की बात सामने आ रही है, वहां पर मात्र एक खाद्य सुरक्षा अधिकारी काम कर रहे हैं. अर्थात एक अधिकारी के हाथ में शहर के लाखों जीवन के सुरक्षा का दायित्व है. उसी तरह से भुवनेश्वर नगर निगम क्षेत्र में बीएमसी की तरफ से सभी वार्ड के लिए एक एवं खुर्दा जिले के लिए एक खाद्य सुरक्षा अधिकारी को नियुक्त किया गया है. एक खाद्य सुरक्षा अधिकारी का दायित्व है कि वह अपने कार्य परिसीमा के अन्दर रहने वाले सभी खाद्य प्रस्तुत करने वाले संस्थान, कंपनी, आंगनबाड़ी केन्द्र में मिलने वाले खाद्य की नियमित जांच करें. जरूरत पड़ने पर नमूना संग्रह कर जांच के लिए भेजे. जहां पर फुड लाइसेंस या ट्रेड लाइसेंस नहीं है, वहां पर छापामारी कर तुरन्त कार्रवाई करे.
खाद्य सुरक्षा निदेशक पी.के.महापात्र ने कहा है कि नियमित जांच करना केवल खाद्य सुरक्षा अधिकारियों के जरिए संभव नहीं है. जब भी खुखिया सूत्र से खबर मिलती है, तुरन्त खाद्य सुरक्षा अधिकारी संपृक्त नकली कारखाना पर छापामारी कर कार्रवाई कर रहे हैं. खाद्य सुरक्षा अधिकारियों की संख्या 73 तक करने के लिए सरकार ने निर्णय लिया है. नई नियुक्ति के लिए ओडिशा स्टाफ सिलेक्शन संस्थान को सरकार ने दायित्व दिया है. अगल 4 से 5 महीने में यह पदवी पूरी हो जाएगी.
हालांकि कर्मचारियों की कमी नियमित जांच में बाधक हो रही है, सरकार के इस तर्क को आसानी से जागरूक नागरिक एवं विशेषज्ञ ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं. इनका कहना है कि मुनाफाखोर व्यवसायी सालों से इस कारोबार को चला रहे है. औद्योगिक क्षेत्र में एक सामग्री उत्पादन करने के लिए शिल्प विभाग से अनुमति लेकर और एक नकली उत्पाद तैयार किया जा रहा है. यह सब सरकारी अधिकारियों की जानकारी में होता है. इस तरह का तर्क देकर खाद्य सुरक्षा निदेशक अपने सिर से दोष हटाने का प्रयास कर रहे हैं. सरकार उद्योग, एमएसएमई एवं लघु उद्योग निगम उद्योग के लिए जमीन देकर चुपचाप बैठ जाती है. खासकर खाद्य सामग्री उत्पादन के लिए स्थापित होने वाले कारखाना में खाद्य सामग्री उत्पादन हो रहा है या नहीं उसकी जांच तक नहीं की जाती है. यदि जिला स्तर पर अधिकारी कम हैं तो फिर जिला प्रशासन में मौजूद सामान्य कार्मचारी को खुफिया काम में लगाकर प्रत्येक औद्योगिक एवं खाद्य सामग्री उत्पादन करने वाली संस्थान पर कड़ी नजर रखी जा सकती है. सरकार यदि चाहे तो फिर इसके लिए जिला प्रशासन, पुलिस, आपूर्ति विभाग, खाद्य सुरक्षा अधिकारी को लेकर प्रत्येक जिला के लिए एक विशेष टीम बना सकती है. इससे फर्जी एवं नकली उत्पाद कारोबार को रोक सकती है.

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