Home / Odisha / लघु कविताएँ : मन के भाव झरे….

लघु कविताएँ : मन के भाव झरे….

उन्मुक्त परिंदो से,
बहती हवाओं से,
झूमती तरू-लताओं से,
बात करने के लिए….

जरूरी है,
आकाश को देखती,
खुली छत पर होना,,
लिए हुए साथ,
खुले मन को…!!

2
अद्भुत है ना !
रंग-बिरंगी,
झूमती डोलती,
पतंगों का संसार…,

भ्रमण करते हों जैसे,
विभिन्न भाव,
धरती और आकाश के बीच…!!

3
बड़े अच्छे लगते हैं,
छतों पर,
कूदते-फांदते,
शोर मचाते हुए बच्चे…,

हे ईश्वर !
सलामत रखना,
बचपन इनका…!!

4
देख रही थी छत से,
गली में,
लड़ते-झगड़ते हुए,
दो नौजवानों को,
और,
तमाशबीनों को भी,
कोई लुत्फ़ ले रहा था जिनमें,
तो कोई उदासीन था…,

आजकल,
कोई कहाँ पड़ता है बीच में,
निपटाने को,
वैमनस्य किसी का…!!

5
हर लेगी,
ये शीतल हवाएँ,
उर की तपन,
तन की थकन,
मन की उलझन…,

आओ ना , तुम भी,
कुछ देर,
मेरे संग छत पर…!!

6
ओढ़े रखती हैं मुस्कुराहटें,
फ्लेटों में कैद ज़िन्दगियाँ,

पढ़ी-लिखी जाती है,
महज़ किताबों में,

खुली हवा का सुकून,
और खिलखिलाहटें…!!

7
सूखने लगे हैं,
इन दिनों,
गमलों में उगे कैक्टस,

जरूरी तो नहीं है,
सींचना,
चुभती-चीरती,
नुकीली सी यादों को…!!

✍️ पुष्पा सिंघी , कटक

Share this news

About desk

Check Also

मुख्यमंत्री ने केन्दुझर के लिए धान खरीद व्यवस्था का किया शुभारंभ

    कहा-धान इनपुट सहायता से किसानों का मनोबल बढ़ा     खेती के प्रति …