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एक राष्ट्र-एक चुनाव से जीडीपी के नुकसान को रोका जा सकेगा – अपराजिता

भुवनेश्वर. देश में यदि एक राष्ट्र-एक चुनाव व्यवस्था लागू होती है, तो विकास के कामों में आ रही कठिनाइयां दूर होंगी तथा मानव संसाधन ऊर्जा, समेत आर्थिक संसाधनों को बचाया जा सकेगा. ऐसे में चुनावी खर्च कम होने के साथ-साथ देश के विकास कार्य में तेजी आ सकेगी. इससे प्रशासन की व्यवस्था पर भी बोझ कम होगा. इसे लागू करने पर जीडीपी को हो रहे नुकसान को कुछ हद तक रोका जा सकेगा. भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता तथा भुवनेश्वर सांसद अपराजिता षाड़ंगी ने ये बातें कहीं. पार्टी कार्यालय में आयोजित पत्रकार सम्मेलन में षाड़ंगी ने कहा कि हम हमारे देश में 1951-52 से 1967 वर्ष तक जो भी चुनाव मॉडल चल रहे थे, उसमें आम चुनाव विधानसभा चुनाव एक साथ हो रहे थे, लेकिन बाद में संविधान की धारा 356 का दुरुपयोग करते हुए सरकार को गिराए जाने के कारण एक राष्ट्र एक चुनाव प्रक्रिया संभव नहीं हो पा रहा था. उन्होंने बताया कि 1983 में चुनाव कमीशन ने एक साथ चुनाव के लिए तर्क दिया था. 1999 में राष्ट्रीय विधि आयोग ने भी इस संबंध में प्रस्ताव दिया था, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव के कारण यह स्वीकृत नहीं हो पाया था. 2015 के संसदीय स्टैंडिंग कमेटी के नेतृत्व में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए एक रिपोर्ट दी है. इसके बाद नीति आयोग 2017 में एक साथ चुनाव के लिए एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है. उन्होंने बताया कि इस संबंध में आज एक वेबिनार का आयोजन किया गया. इसमें दिल्ली से पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तथा राज्यसभा सदस्य विनय सहस्रबुद्धे तथा भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्र ने जुड़कर अपनी बातें रखीं. इसी तरह से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष समीर मोहंती., विपक्ष के नेता प्रदीप्त नायक तथा प्रांत संगठन मंत्री मानस मोहंती भी जुड़े थे.

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