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अगर नैतिक रूप से एसपी जिम्मेदार, तो डीजीपी और कानून मंत्री क्यों नहीं
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अपराध नियंत्रण पर कार्रवाई से अफसरों पर आफत
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गजब है हाल अपराधियों को पकड़े तो मुस्किल, ना पकड़े तो मुस्किल

हेमन्त कुमार तिवारी, भुवनेश्वर
ओडिशा की धार्मिक शहर पुरी के जिला पुलिस अधीक्षक और एनकाउंटर विशेषज्ञ अखिलेश्वर सिंह क्या किसी साजिश के शिकार हुए हैं? यह सवाल उन लोगों का जो अखिलेश्वर सिंह की वीरता से वाकिफ हैं और जो यह जनते हैं कि अखिलेश्वर के नाम से अपराध और अपराधी दोनों ही कांपते हैं. लोगों का कहना है कि अखिलेश्वर का रिकार्ड अपराध नियंत्रण की गाथा का गाता है. वह जहां भी रहे हैं, वहां अपराधी छुपते फिरते थे. जिलाबदर होते थे. लेकिन पुरी में हिरासत में एक अपराधी की मौत के मामले में जिस तरह से उनको मेन लाइन से हटाया, उसमें साजिश झलक रही है.
लोगों का कहना है कि अगर नैतिक जिम्मेदारियों की गाज पुलिस अधीक्षक पर गिर सकती है, तो पूरी कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी पुलिस महानिरीक्षक और राज्य के कानून मंत्री को स्वीकार करनी चाहिए. फिर इनको नैतिक रूप से जिम्मेदार क्यों नहीं माना जा रहा है. सिर्फ इसलिए कि ये पावरफूल हैं. लेकिन ऐसा इसलिए नहीं हुआ क्यों कि अखिलेश्वर को किनारा करना था. लोगों का मानना है कि पुरी में अखिलेश्वर सिंह के कार्रवाई से कुछ राजनैतिक दलों की परेशानियां बढ़ती नजर आ रही थी. हालही अखिलेश्वर सिंह ने कहा कि पुरी को बहुत जल्द ही अपराध मुक्त किया जायेगा, लेकिन उनको किनारे लगा दिया गया.
जांच रिपोर्ट तक क्यों नहीं किया गया इंतजार
लोगों का सवाल है कि आखिर ऐसा क्या हो गया था कि सरकार ने जांच रिपोर्ट का भी इंतजार नहीं किया. रात के समय अखिलेश्वर सिंह का तबादला कर दिया गया. क्या अखिलेश्वर ही हिरासत में मौत के लिए जिम्मेदार हैं, यह बात को ठीक उस कहावत की तरह दिख रही है कि “खेत खाये गदहा मार खाये जुलहा”.
हिरासत में मौत से ज्यादा साजिश की जांच जरूरी
लोगों ने कहा कि जिस तरह से मानवाधिकार आयोग हिरासत में आरोपी की मौत को लेकर जांच की बात कर रहा है, क्या उसे इस बात की जांच नहीं करनी चाहिए कि सिर्फ नैतिक जिम्मेदारियों की वजह से अच्छे अधिकारियों पर गाज क्यों गिरायी जाये. उनको पद से हटाकर दूसरी जगह कोने-अतरे में डाल दिया जाये. राज्य मानवाधिकार को इस बात की जांच करनी चाहिए कि आखिर कौन सी मुशिबत आ गयी थी कि सरकार को रात में एक अधिकारी के तबादले का निर्णय लेना पड़ा. यह भी जांच की जानी चाहिए कि नैतिक रूप से जिम्मेदारी सिर्फ एसपी के कंधों पर ही क्यों, पुलिस महानिरीक्षक और कानून मंत्री पर क्यों नहीं?
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