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उत्कल अनुज हिन्दी पुस्तकालय ने मनाया हिन्दी दिवस
भुवनेश्वर. 14 सितंबर को उत्कल अनुज हिन्दी पुस्तकालय में हिन्दी दिवस मनाया गया, जिसमें मुख्य रुप से खड़ी बोली हिन्दी के जन्मदाता भारतेन्दु हरिश्चन्द्र याद किये गये. समारोह की अध्यक्षता पुस्तकालय के मुख्य सरंक्षक सुभाष भुरा ने की. उन्होंने अपने संबोधन में हिन्दी की लोकप्रियता पर प्रकाश डालते हुए यह स्पष्ट किया कि हिन्दी भारत की आत्मा है, जो प्रेम की भाषा के रुप में जन-जन के मध्य लोकप्रिय है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आयोजन बड़ा हो या छोटा, उद्देश्य बड़ा होना चाहिए.
उन्होंने यह भी बताया कि खड़ी बोली हिन्दी के जन्मदाता भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी जिनको आज हमसब याद करते हैं, उन्होंने भी ब्रजभाषा और अवधी का सम्मान करते हुए खड़ी बोली को विकसित किया. उनके द्वारा लिखित नाटक ‘‘सत्य हरिश्चन्द्र ’’ नाटक आज भी सत्य पथ पर चलने का संदेश देता है. उन्होंने यह भी बताया कि साधु-महात्माओं ने भी हिन्दी के विकास में काफी योगदान दिया है. पुस्तकालय के संगठन सचिव अशोक पाण्डेय ने बताया कि हिन्दी का इतिहास लगभग 1200 सालों का इतिहास रहा है, जिसमें कुल लगभग 400 साल आदिकाल-भक्तिकाल का रहा. लगभग 300 साल रीति काल का तथा लगभग 150 से लेकर 200 साल आधुनिक काल का रहा है.
भारत में लगभग 80 प्रतिशत लोग हिन्दी बोलते और समझते हैं. गांधीजी ने 1917 में ही अपने एक भाषण में हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रुप में मान्यता देने की सिफारिश की थी. 1977 में पहली बार भारत के स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने संयुक्त राष्ट्रमहासंघ में हिन्दी का प्रयोग किया था. भारत के संविधान का गठन 1949 में हुआ. 26 जनवरी, 1950 को भारत के संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रुप में मान्यता प्रदान की गई. हिन्दी दिवस, हिन्दी सप्ताह, हिन्दी पखवाड़ा तथा हिन्दी माह आज हमसब मनाते हैं.
किशन खण्डेलवाल पुस्तकालय के सचिव ने अपने संबोधन में यह बताया कि हिन्दी की प्राण कविता है, जो जीवन की रागात्मक अनुभूति है. जीवन की समालोचना है. भाव रंजित बुद्धि है. मानवता की उच्चतम अनुभूति है. भावनाओं की सच्ची चित्र है तथा सौंदर्य की अभिव्यंजना है. कृष्णा अग्रवाल ने एक कविता की कुछ पंक्तियों को उद्धृतकरते हुए यह पूछा कि-‘‘ऐसा वसंत कब आएगा? जब मानवता के उपवन में,हर प्रसून खिल पाएगा,ऐसा वसंत कब आएगा? ’’ अवसर पर सजन लढानिया और अनुज भुरा आदि भी उपस्थित थे. गौरतलब है कि भुवनेश्वर में कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप को ध्यान में रखकर हिन्दी दिवस पर पुस्तकालय से जुड़े कुछ ही लोगों को आमंत्रित किया गया था.