भुवनेश्वर. ओडिशा विश्वविद्यालय अधिनियम 1989 में संशोधन करने के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी अध्यादेश शिक्षा व्यवस्था का विरोधी है. यह कारण बताते हुए अखिल भारतीय शैक्षिक महासंघ ने इसका विरोध किया है. महासंघ के राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद के अध्यक्ष डा नारायण मोहंती ने इस पर एक बयान जारी कर कहा कि केन्द्र सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता पर जोर देते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति जारी की है. इसके बाद ओडिशा सररकार ने विश्वविद्यालयों के अधिकारों को संकुचित करने के लिए यह अध्यादेश जारी किया है. यह अत्यंत दुखद है. इसके जरिये विश्वविद्यालयों के हाथों से अध्यापकों की नियुक्ति के अधिकार को छीनकर ओडिशा पब्लिक सर्विस कमिशन को देने की बात कही गई है. उन्होंने कहा कि ओडिशा प्रशासनिक सेवा, ओडिशा न्यायिक सेवा आदि के लिए हर साल परीक्षा करवाने में विफल हो रहे ओपीएससी यह कार्य कैसे करेगा, इसे लेकर सवाल उठना स्वाभविक है. उन्होंने कहा कि देश के किसी भी प्रदेश में यह व्यवस्था नहीं है. ऐसा कर राज्य सरकार ने एक गलत परंपरा स्थापित की है. उन्होंने कहा कि सिनेट विश्वविद्यालय का एक अविच्छेद्य अंग है, लेकिन राज्य सरकार ने इसे समाप्त कर अलोकतांत्रिक रुख का परिचय दिया है. अध्यादेश में विश्वविद्यालय से जुड़े स्वयंशासित व गैरस्वयंशासित कालेजों के दो-दो प्रोफेसर सिंडिकेट में रहने की बात है, लेकिन वास्तविकता यह है कि ओडिशा के किसी भी स्वयंशासित या गैरस्वयंशासित महाविद्यालयों में प्रोफेसर के पद ही नहीं है. उन्होंने कहा कि इसे ध्यान में रखकर राज्य सरकार को चाहिए कि वह यह अध्यादेश वापस ले ले.
Check Also
राज्यपाल ने जयंती पर विरसा मुंडा को दी श्रद्धांजलि
भुवनेश्वर। राज्यपाल रघुवर दास ने बलिदानी विरसा मुंडा को जयंती पर श्रद्धांजलि दी। उन्होंने सोशल …