उन समस्त वीरपुत्रों में ओड़िशा मारवाड़ी समाज के पहले और एकमात्र वीरपुत्र से स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय प्रह्लाद राय लाठ अलंकृत रहे. उन्होंने गांधीजी की तरह ही अपने सत्य, अहिंसा, त्याग, तपस्या तथा अपनी सच्ची देशाभक्ति से यह सिद्ध कर दिया कि भारत की आजादी में एक व्यक्ति भी अपनी सच्ची देशभक्ति तथा देश की आजादी के लिए बहुत कुछ कर सकता है बशर्ते कि उसके मन में सच्चा कर्तव्यबोध और शक्तिबोध हो.
अशोक पांडेय, भुवनेश्वर
‘‘चल पड़े जिधर दो डगमग में, चल पड़े कोटि पग उसी ओर.’
’-यह बात सत्य, अहिंसा और त्याग के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के लिए कही गई है. भारत की आजादी में गांधीजी जिस रास्ते पर चल पड़ते थे, उस रास्ते पर बिना सोचे-समझे करोड़ों लोग चल पड़ते थे. यह बात ओडिशा मारवाड़ी समाज के पहले वीरपुत्र स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय प्रह्लाद राय लाठ के साथ अक्षरशः लागू होती है. कहते हैं कि भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में ओडिशा का योगदान भी अभूतपूर्व रहा है.
ओडिशा की पावन धरती पर अनेक ओड़िया वीरपुत्रों का प्रादुर्भाव हुआ, जिन्होंने भारत की आजादी में अपनी अहम् भूमिका निभाई, जिनमें उत्कलमणि पण्डित गोपबंधु दास, उत्कल गौरव मधुसूदन दास, डा राधानाथ रथ,रमादेवी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, पण्डित गोवर्द्धन मिश्र, स्वर्गीय नवकिशोर चौधरी, डा हरेकृष्ण मेहताब, फकीर मोहन सेनापति, विश्वनाथ दास, वीर सुरेन्द्र साई और ओडिशा के लौहपुरुष बीजू पटनायक आदि. उन समस्त वीरपुत्रों में ओड़िशा मारवाड़ी समाज के पहले और एकमात्र वीरपुत्र से स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय प्रह्लाद राय लाठ अलंकृत रहे. उन्होंने गांधीजी की तरह ही अपने सत्य, अहिंसा, त्याग, तपस्या तथा अपनी सच्ची देशाभक्ति से यह सिद्ध कर दिया कि भारत की आजादी में एक व्यक्ति भी अपनी सच्ची देशभक्ति तथा देश की आजादी के लिए बहुत कुछ कर सकता है बशर्ते कि उसके मन में सच्चा कर्तव्यबोध और शक्तिबोध हो.
स्वर्गीय प्रहलाद राय लाठ का जन्म ओडिशा के संबलपुर में 27 फरवरी,1907 में एक कुलीन तथा धनाढ्य व्यवसायी परिवार में हुआ था. बाल्यकाल से ही स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय प्रह्लाद राय लाठ को रामायण, महाभारत, गीता और श्रीमद्भागवत आदि के अध्ययन का शौक था. सत्संगति में पल-बढ़कर वे एक ईश्वरभक्त बालक बने. बाल्यकाल से ही उनके मन में देशभक्ति तथा देशसेवा की भावनाएं उछाल मार रही थीं, जिसके कारण वे अपने घरवालों से छुपकर स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मी नारायण मिश्र, भागीरथी पटनायक एवं चंद्रशेखर बेहरा आदि के साथ मिलकर भारत की आजादी की लड़ाई से जुड़ी अनेक सभाओं में हिस्सा लेते रहे. मात्र 13 साल की उम्र में ही स्वर्गीय प्रह्लाद राय लाठ आजादी की लड़ाई में पूरे आत्मविश्वास के साथ कूद पड़े.
1921 में महात्मा गांधी की भारत की आजादी का आह्वान सुनकर प्रह्लाद राय लाठ स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े. वे बालसेवा समिति, जैसी अनेक जनहितकारी समितियों का कुशल नेतृत्व किये. उनकी पत्नी स्वर्गीय रुक्मणी देवी भी आजादी की लड़ाई में महिलाओं को संगठित करने हेतु नारी सेवा समिति का गठन कर अपनी अहम् भूमिका निभाईं. स्वर्गीय प्रहलाद राय लाठ 1930 में संबलपुर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने. 1937 में वे ओडिशा विधानसभा के लिए वे निर्वाचित हुए. 1934 में दूसरी बार जब गांधीजी संबलपुर आये तो उनके आह्वान पर उन्होंने अपनी सच्ची देशभक्ति की बेजोड़ मिसाल प्रस्तुत की. उनकी पत्नी रुक्मिणी देवी ने अपना लगभग 300 तोला सोना हरिजन कल्याण के लिए स्वेच्छापूर्वक दान कर दिया.
1937 में ही गांधी जी के आह्वान पर स्वर्गीय प्रहलाद राय लाठ ने विधानसभा से त्यागपत्र देकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े. 4 दिसंबर,1940 में उनको अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया. उनको ब्रह्मपुर जेल भेज दिया गया. वे हरिजन सेवासंघ,चरखा संघ से भी जुड़े रहे. 1942 में वे भारत छोड़ो आन्दोलन में खुलकर सामने आये. 1944 में उन्होंने पुणे आगाखां पैलेस कस्तुरबा मेमोरियल के लिए 75 हजार रुपये का अनुदान दिया. 1944 में संबलपुर में स्वतंत्रता सेनानी प्रभावती देवी के बाल निकेतन नामक अनाथ आश्रम के लिए उन्होंने एक लाख का अनुदान दिया. वे हरजिन सेवक संघ से भी जुड़े रहे. 26 मई,2001 को उनका निधन हो गया. आज भी कटक उत्कल साहित्य समाज के ओडिशा के वीर पुत्रों में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है, जिन्होंने अपनी सच्ची देशभक्ति और निःस्वार्थ देशसेवा के लिए सर्वस्व त्याग दिया. ऐसे ओडिशा मारवाड़ी समाज के एकमात्र स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय प्रह्लाद राय लाठ को 15 अगस्त, 2020 को यादकर हमसब भी गौरवान्वित हैं.