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कोणार्क महोत्सव में पुरुष नर्तकों के ओडिशी नृत्य पर विवाद

  •     पुरुष नर्तकों के बिना शेव लुक ने मचाया बवाल

  •     परंपरा से विचलन का आरोप

भुवनेश्वर। ओडिशा के प्रतिष्ठित सांस्कृतिक आयोजन कोणार्क महोत्सव 2025 के दौरान ओडिशी नृत्य को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। सूर्य मंदिर के खुले मंच पर आयोजित पांच दिवसीय महोत्सव की दूसरी संध्या को कुछ पुरुष ओडिशी नर्तक दाढ़ी-मूंछ (स्टबल) के साथ मंच पर नजर आए, जिससे कई वरिष्ठ गुरुओं और कला प्रेमियों में तीखी नाराज़गी देखी गई।

प्रस्तुति के बाद उठा सवाल

महोत्सव के दूसरे दिन बेंगलुरु स्थित शांभवी स्कूल ऑफ डांस की गुरु वैजयन्ती काशी एवं समूह द्वारा कुचिपुड़ी नृत्य प्रस्तुति के बाद, कोलकाता के ओडिशी विजन एंड मूवमेंट सेंटर के कलाकारों ने तीन ओडिशी प्रस्तुतियां दीं। हालांकि, इन प्रस्तुतियों में शामिल पुरुष नर्तकों का बिना शेव लुक कई लोगों को अखर गया और इसे ओडिशी की परंपरा के खिलाफ बताया गया।

संस्कृति विभाग के विशेष सचिव ने भी की टिप्पणी

ओड़िया भाषा, साहित्य एवं संस्कृति विभाग के विशेष सचिव देव प्रसाद दाश ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह “खेत की रखवाली करने वाले द्वारा ही फसल खाने” जैसा मामला है। उन्होंने कहा कि यदि उसी समय मौजूद गुरुजन आपत्ति दर्ज कराते, तो मामला वहीं स्पष्ट हो जाता।

गुरु कुमकुम मोहंती का सख्त रुख

पद्म पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध ओडिशी गुरु कुमकुम मोहंती ने इसे परंपरा से सीधा विचलन बताया। उन्होंने कहा कि ओडिशी नृत्य शुद्ध परंपरागत वेशभूषा, संगीत और व्याकरण के साथ ही प्रस्तुत किया जाना चाहिए। उन्होंने पूर्व उदाहरण का उल्लेख करते हुए कहा कि चरित्र की मांग पर भी कभी दाढ़ी-मूंछ स्वीकार नहीं की गई, क्योंकि ओडिशी में भाव-अभिनय चेहरे की अभिव्यक्ति से होता है, न कि दाढ़ी से।

दंडात्मक कार्रवाई की मांग

गुरु कुमकुम मोहंती ने संस्कृति मंत्री से आग्रह किया कि ओडिशी रिसर्च सेंटर में वरिष्ठ गुरुओं, नर्तकों और कला प्रेमियों की बैठक बुलाकर स्पष्ट दिशानिर्देश तय किए जाएं। उन्होंने नियम उल्लंघन पर कलाकारों को ब्लैकलिस्ट करने और पारिश्रमिक में कटौती जैसी कार्रवाई की भी मांग की।

ओडिशी डांसर काउंसिल की आपत्ति

ओडिशी डांसर काउंसिल की अध्यक्ष एवं वरिष्ठ गुरु डॉ स्नेहप्रभा सामंतराय ने भी इस प्रयोग को अस्वीकार्य बताया। उन्होंने कहा कि ओडिशी की सुंदरता, मर्यादा और गरिमा ‘अंगिक, वाचिक और आहार्य’ तीनों में बनी रहनी चाहिए। उन्होंने जानकारी दी कि काउंसिल का एक प्रतिनिधिमंडल जल्द ही संस्कृति मंत्री से मिलकर इस विषय पर सख्त नियंत्रण तंत्र की मांग करेगा।

चयन प्रक्रिया पर उठे सवाल

प्रसिद्ध युवा ओडिशी नर्तक साश्वत जोशी ने इस पूरे मामले के लिए महोत्सव की चयन समिति को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि कोणार्क महोत्सव जैसे प्रतिष्ठित मंच पर प्रस्तुति देने से पहले समूह की सामग्री, वेशभूषा और परंपरागत शुद्धता की जांच होनी चाहिए थी। उन्होंने चयन समिति के वार्षिक पुनर्गठन की भी मांग की।

क्लीन-शेव होने का कोई लिखित नियम संज्ञान में नहीं – आयोजक

इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए ओडिशी विजन एंड मूवमेंट सेंटर, कोलकाता की संस्थापक शर्मिला बिस्वास ने कहा कि पुरुष नर्तकों के क्लीन-शेव होने का कोई लिखित नियम उनके संज्ञान में नहीं है और यह उनकी व्यक्तिगत कलात्मक धारणा है।

परंपरा बनाम नवाचार की बहस तेज

पूर्व मुख्य कार्यकारी, जीकेसीएम ओडिशी रिसर्च सेंटर गुरु सिकता दास ने कहा कि कोणार्क महोत्सव का मंच पारंपरिक ओडिशी के लिए निर्धारित है, लेकिन नवाचार के नाम पर नियमों की अनदेखी की जा रही है, जिससे भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है।

गौरतलब है कि कोणार्क महोत्सव में हर वर्ष पांच ओडिशी दल प्रस्तुति देते हैं, जिनमें से तीन आवेदन प्रक्रिया और दो नामांकन के माध्यम से चुने जाते हैं। इस विवाद के बाद ओडिशी नृत्य की परंपरा, अनुशासन और चयन प्रक्रिया को लेकर बहस और तेज हो गई है।

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