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ओड़िया साहित्य की एक अग्रणी आवाज के रूप में हुई सराहना
कोरापुट। ओड़िया साहित्य पर कवि विद्युतप्रभा देवी के स्थायी प्रभाव पर ओडिशा केन्द्रीय विश्वविद्यालय (सीयूओ) के ओड़िया भाषा एवं साहित्य विभाग द्वारा 16-17 अक्टूबर को आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन “कवि विद्युतप्रभा देविंका कविता: नवमूल्यांकन” में गहन चर्चा हुई।
देशभर से आए विद्वानों ने विद्युतप्रभा देवी को ओड़िया साहित्य की एक अग्रणी आवाज के रूप में सराहा, जिनकी काव्यात्मक संवेदनशीलता और सामाजिक चेतना ने पुरुष-प्रधान साहित्यिक युग में स्त्री स्वर को नया आयाम दिया। नारीवादी और समाजवादी विचारों से ओतप्रोत उनकी कविताएँ आज भी प्रेरणा स्रोत बनी हुई हैं। वर्ष 2025 में मनाई जाने वाली उनकी जन्मशताब्दी को ओडिशा में महिला सशक्तिकरण के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता सीयूओ के कार्यवाहक कुलपति प्रो एनसी पंडा ने की, जबकि मुख्य वक्ता के रूप में शिक्षाविद्, यूजीसी सदस्य एवं सीयूओ के पूर्व कुलपति प्रो सचिदानंद मोहंती उपस्थित रहे। विक्रम देव विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो देविप्रसाद मिश्रा मुख्य अतिथि थे। इस अवसर पर प्रसिद्ध कवयित्री डॉ मनोरमा बिस्वाल महापात्र एवं फकीर मोहन विश्वविद्यालय के प्रो देवाशीष पात्र विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुए।
ओड़िया भाषा एवं साहित्य विभाग के अध्यक्ष डॉ प्रदोष कुमार स्वाईं ने स्वागत भाषण दिया, जबकि समापन सत्र को सहायक प्राध्यापक डॉ आलोक बराल ने संबोधित किया।
सम्मेलन में प्रो संतोष त्रिपाठी, डॉ बाबाजी चरण पटनायक, डॉ शत्रुघ्न पांडब, डॉ आलोक बराल, डॉ गणेश प्रसाद साहू, डॉ रुद्राणी मोहंती, डॉ रघुनाथ ओझा, डॉ सत्य षाड़ंगी, डॉ फगुनाथ भोई, डॉ देवाशीष पात्र, डॉ रबी सतपथी, डॉ प्रीतिधारा सामल, डॉ रुद्रनारायण महापात्र, ज्ञानि देवाशीष मिश्र, डॉ प्रह्लाद खिल्ला आदि विद्वानों ने विद्युतप्रभा देवी के साहित्यिक योगदान पर अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए।
अपने संबोधन में प्रो सचिदानंद मोहंती ने अपनी माता, दिवंगत कवयित्री विद्युतप्रभा देवी के जीवन और विरासत को भावनात्मक रूप से स्मरण किया। उन्होंने कहा कि उनकी कविताएं “सौंदर्य और सामाजिक चेतना का संगम” हैं, जिन्होंने ओड़िया साहित्य को समावेशिता और सांस्कृतिक गहराई से समृद्ध किया। उन्होंने कहा कि शब्द और कर्म की एकता, जो आज दुर्लभ है, उनकी जीवन और रचना का मूल तत्व था। साथ ही कुंतला देवी और सरला देवी जैसी अन्य अग्रणी महिला लेखिकाओं को भी याद किया।
अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रो पंडा ने कहा कि कवि बनाए नहीं जाते, वे दिव्य कृपा से जन्म लेते हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह सम्मेलन विद्युतप्रभा देवी के साहित्यिक महत्व को व्यापक स्तर पर फैलाने में सहायक होगा। साथ ही उन्होंने सीयूओ पुस्तकालय में एक पांडुलिपि अनुभाग स्थापित करने की घोषणा की, ताकि मूल्यवान साहित्यिक कृतियों का संरक्षण किया जा सके। सम्मेलन का समापन ओड़िया विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ गणेश प्रसाद साहू के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।