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मध्यस्थता की चुनौतियों और भविष्य पर हुआ विमर्श
भुवनेश्वर। देश में 25 लाख मध्यस्थों की आवश्यकता है, जबकि वर्तमान में केवल 13,000 मध्यस्थ ही उपलब्ध हैं, जिससे विवादों के त्वरित समाधान की राह कठिन हो रही है। इसी संदर्भ में दूसरे राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन के दूसरे दिन का पहला इंटरैक्टिव सत्र “मध्यस्थता: चुनौतियां और आगे का मार्ग” आयोजित किया गया, जिसमें मध्यस्थता के महत्व, वर्तमान खामियों और भविष्य की दिशा पर विस्तृत चर्चा हुई।
इस मौके पर न्यायमूर्ति सूर्य कांत और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएलएसए) के अध्यक्ष ने सत्र में कहा कि देश में मध्यस्थता के पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करने और प्रशिक्षित मध्यस्थों की संख्या बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि संरचित मध्यस्थता के माध्यम से न केवल विवादों का शीघ्र समाधान संभव है, बल्कि न्यायपालिका पर दबाव भी कम किया जा सकता है और लोगों को न्याय अधिक सुलभ एवं प्रभावी तरीके से मिल सकता है। उन्होंने कहा कि देश में 25 लाख मध्यस्थों की आवश्यकता है, जबकि वर्तमान में केवल 13,000 मध्यस्थ ही उपलब्ध हैं। उन्होंने संरचित मध्यस्थता की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया।
दूसरे राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन के दूसरे दिन का पहले इंटरैक्टिव सत्र की अध्यक्षता भारत के सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने की, जबकि सह-अध्यक्ष के रूप में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति विपुल एम पंचोली और मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएम श्रीवास्तव उपस्थित रहे।
चार महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा
सत्र में मुख्य रूप से चार महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा हुई। पहला, मध्यस्थता को एक पेशे के रूप में स्थापित करना- इसमें मान्यता, करियर के अवसर और स्थायी पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण शामिल था। दूसरा, सरकार और मध्यस्थता-सभी सार्वजनिक विवादों के समाधान में मध्यस्थता को प्राथमिक विकल्प बनाना। तीसरा, जनता का विश्वास निर्माण-जागरूकता, प्रचार और सफलता की कहानियों का साझा करना। चौथा, न्याय तक पहुंच-ग्रामीण और हाशिए पर रहने वाले समुदायों तक मध्यस्थता सुनिश्चित करना।
विवाद समाधान प्रणाली को सुदृढ़ बनाने में मध्यस्थता की महत्वपूर्ण भूमिका
इस इंटरैक्टिव सत्र ने भारत में विवाद समाधान प्रणाली को सुदृढ़ बनाने में मध्यस्थता की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया और मध्यस्थों के लिए अधिक सार्वजनिक विश्वास, नीति समर्थन और पेशेवर मान्यता की आवश्यकता पर बल दिया।
सत्र में अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों ने भी भाग लिया, जिनमें मणिपुर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम सुंदर, मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति आर सुरेश कुमार, केरल उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ए मुहम्मद मुस्तक, दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सचिन दत्ता, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति हरिनाथ नुनेपल्ली और वरिष्ठ अधिवक्ता नंदिनी गोरे शामिल थे। सत्र का संचालन जॉर्ज पोथन ने किया।