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सावन के दूसरे सोमवार को शिव मंदिरों में उमड़ा आस्था का सैलाब

  • बोल बम के नारों से गूंजे शिव धाम

  • हजारों कांवरियों ने जलाभिषेक कर मांगी मनोकामना

भुवनेश्वर। सावन माह के दूसरे सोमवार को ओडिशा की राजधानी स्थित लिंगराज मंदिर सहित समस्त शिव मंदिरों में भक्ति भाव की अनूठी छटा देखने को मिली। कांवरिए भोले बाबा पार करेगा, बोल बम हर हर बम के जयघोष के साथ कांधे पर जल कलश लिए विभिन्न शिव धामों में पहुंचे और भगवान शिव को जल अर्पित किया। पूरे राज्य में शिव मंदिरों में भक्तों की लंबी कतारें देखी गईं और मंदिरों के चारों ओर हर दिशा से शिव-शिव के स्वर गूंजते रहे।

धवलेश्वर से लेकर लोकनाथ तक, अरडी से लेकर लाडू बाबा मंदिर तक, हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ भगवान शिव को जल चढ़ाने के लिए उमड़ी। प्रशासन और मंदिर प्रबंधन समितियों द्वारा श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए व्यापक इंतजाम किए गए थे। मंदिर परिसरों में स्वच्छता बनाए रखने के लिए सफाई कर्मियों की विशेष तैनाती की गई थी।

लिंगराज मंदिर में जलाभिषेक को उमड़ा आस्था का सैलाब

सावन के दूसरे सोमवार को भगवान लिंगराज के जलाभिषेक के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। हजारों कांवड़िए कुआखाई नदी से जल भरकर ‘बोल बम’ के नारों के साथ लिंगराज मंदिर पहुंचे और शिवलिंग पर श्रद्धा का अर्घ्य अर्पित किया। भक्तों की आस्था इतनी प्रबल थी कि रातभर कटक-पुरी रोड ‘बोल बम’ के जयकारों से गूंजता रहा।

पूरे मार्ग में श्रद्धालुओं की सेवा के लिए अनेक स्थानों पर सेवा शिविर लगाए गए थे, जहां उन्हें पानी, भोजन, प्राथमिक उपचार और विश्राम की व्यवस्था दी गई। भुवनेश्वर की गलियों और मंदिर परिसर में भी प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था के व्यापक इंतजाम किए थे ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो।

लोकनाथ मंदिर में उमड़े 50,000 से अधिक कांवरिए

पुरी स्थित प्रसिद्ध लोकनाथ मंदिर में इस विशेष दिन पर श्रद्धा की बाढ़ आ गई। मंदिर प्रशासन के अनुसार रविवार आधी रात से ही दर्शन शुरू हो गया था और सोमवार सुबह तक लगभग 50,000 से अधिक श्रद्धालु भगवान लोकनाथ के दर्शन के लिए मंदिर पहुंचे। मंदिर के बाहर लगभग डेढ़ किलोमीटर तक श्रद्धालुओं की कतारें लगी हुई थीं, जो भगवान के जलाभिषेक के लिए घंटों प्रतीक्षा कर रही थीं। जल अर्पण का सिलसिला लगातार जारी है।

शोक और रोग से मुक्ति का प्रतीक हैं भगवान लोकनाथ

माना जाता है कि भगवान लोकनाथ के दर्शन से शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। लोकनाथ भगवान को शरीर का प्रतीक माना जाता है, वहीं भगवान जगन्नाथ आत्मा के रूप में पूजे जाते हैं। इसलिए दोनों को मानव जीवन के दो पहलू के रूप में देखा जाता है।

लोकनाथ मंदिर के सेवायत ने बताया कि यह परंपरा है कि जब किसी श्रद्धालु की मनोकामना पूरी होती है, खासकर बीमारी से मुक्ति मिलती है, तो वह भगवान को शरीर के अंगों के प्रतीक जैसे बाल, नाखून आदि, चांदी, पीतल या सोने से निर्मित कर अर्पण करता है। यह आस्था की एक खास अभिव्यक्ति है जो भक्त और भगवान के बीच के भावनात्मक संबंध को दर्शाती है।

धवलेश्वर मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़

इधर, कटक स्थित धवलेश्वर मंदिर में भी हजारों कावड़िए पहुंचे। भक्तों ने दीये जलाए, मंदिर की परिक्रमा की और शिवलिंग पर जलाभिषेक कर सुख-शांति की कामना की। श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए विशेष साफ-सफाई और व्यवस्था की गई थी। मंदिर के चारों ओर सफाई कर्मियों को लगातार तैनात रखा गया ताकि पवित्रता और स्वच्छता बनी रहे।

कांवर यात्रा बनी समर्पण, श्रद्धा और सामाजिक एकता का प्रतीक

सावन के सोमवार न केवल धार्मिक आस्था के प्रतीक होते हैं बल्कि सामाजिक एकता, अनुशासन और सेवा भावना का भी प्रदर्शन करते हैं। जहां एक ओर युवा, बुजुर्ग और महिलाएं कांवर उठाकर शिव धामों की ओर निकलते हैं, वहीं दूसरी ओर प्रशासन और स्वयंसेवी संगठन मिलकर इन्हें सहायता पहुंचाते हैं।

सावन के दूसरे सोमवार पर ओडिशा में आस्था और भक्ति का जो दृश्य देखने को मिला, वह शिव भक्तों के समर्पण की अद्भुत मिसाल बन गया। आने वाले सोमवारों में श्रद्धालुओं की संख्या और उत्साह में और वृद्धि होने की संभावना है।

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