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अब व्यावसायिक निर्माण के लिए तकनीक हस्तांतरण को दी मंजूरी
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देश में पहली बार दोहरी सुरक्षा देने वाला स्वदेशी टीका बना ‘एडफैल्सीवैक्स’
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एक दशक तक प्रभावी रहने की संभावना
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बिना कोल्ड चेन के भी नौ महीने तक कमरे के तापमान पर रहेगा प्रभावी
भुवनेश्वर। ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर स्थित क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र (आरएमआरसी) ने मलेरिया के सबसे घातक परजीवी प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम से लड़ने के लिए एक उन्नत स्वदेशी टीका विकसित किया है, जिसे एडफैल्सीवैक्स नाम दिया गया है। यह टीका न केवल मलेरिया के संक्रमण से बचाव करता है, बल्कि समुदाय स्तर पर उसके प्रसार को भी रोकता है।
आरएमआरसी ने अपने आधिकारिक सोशल मंच पर यह जानकारी साझा करते हुए बताया कि यह एक संकर बहु-चरणीय टीका है जो आधुनिक प्रोटीन संरचना तकनीकों के उपयोग से विकसित किया गया है। इसे लैक्टोकॉकस लैक्टिस नामक सुरक्षित जीवाणु में प्रमुख प्रोटीन जैसे पीएफसीएसपी, पीएफएस230 और पीएफएस48/45 को जोड़कर तैयार किया गया है।
इस टीके की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह बिना शीत श्रृंखला (कोल्ड चेन) के भी नौ महीने तक कमरे के तापमान पर प्रभावी बना रहता है। यह दूर-दराज और पिछड़े क्षेत्रों में वितरण और भंडारण की चुनौतियों को सरल बनाता है।
स्वदेशी टीका वैश्विक से बेहतर
बताया गया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्वीकृत मौजूदा टीकों जैसे आरटीएस,एस /एएस01 (मोसक्विरिक्स) और आर21/मैट्रिक्स-एम की तुलना में एडफैल्सीवैक्स अधिक किफायती, टिकाऊ और व्यापक सुरक्षा प्रदान करता है।
इस टीके की पूर्व-नैदानिक पुष्टि दिल्ली स्थित राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान (एनआईएमआर) और राष्ट्रीय प्रतिरक्षा संस्थान (एनआईआई) के सहयोग से की गई। आरएमआरसी भुवनेश्वर ने शोध का नेतृत्व किया और इस टीका निर्माण की पूरी तकनीकी जानकारी अपने पास सुरक्षित रखी है।
दीर्घकालिक सुरक्षा
प्रारंभिक अध्ययन में यह टीका बूस्टर खुराक के बाद चार महीने तक प्रभावी पाया गया है, जिससे यह संभावना जताई जा रही है कि यह मनुष्यों में दस वर्षों तक सुरक्षा प्रदान कर सकता है।