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शब्दों ने चुप्पी तोड़कर समाज को आइना दिखाया और आत्मा की ईमानदारी चुकाई
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छंद और अलंकारों ने खामोशी से कह दीं जिंदगी वे सभी बातें, जिन्हें हमने छुपाया
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‘उधार का प्रकाश’ की कविताएं — व्यंग्य भी, वरदान भी
भुवनेश्वर। भुवनेश्वर में साहित्य की एक शाम उस वक्त इतिहास बन गई, जब कवि किशन खंडेलवाल के काव्य संकलन “उधार का प्रकाश” ने साहित्य के दरबार में दस्तक दी। छंद और अलंकारों ने खामोशी से जिंदगी की वे सभी बातें कह दीं, जिन्हें हम सभी ने छुपाया।
काव्य संकलन “उधार का प्रकाश” का विमोचन उत्कल अनुज वाचनालय में हुआ। यह कोई साधारण विमोचन नहीं था, बल्कि कविता और यथार्थ के बीच पनपे एक ऐसे संवाद का उत्सव था, जहाँ शब्दों ने उधारी नहीं, बल्कि आत्मा की ईमानदारी चुकाई।
मुख्य अतिथि अतुल प्रकाश, महालेखाकार-2, ओडिशा ने संकलन पर अपने विचार रखते हुए कहा कि किशन खंडेलवाल की कविताएं उन गलियों से आई हैं जहां संवेदना अब भी जीवित है और जहां आम आदमी अब भी कविता लिखे बिना भी कविता जीता है। उन्होंने इसे “शब्दों की साधना” बताया, जो दिखने में साधारण है लेकिन भीतर कहीं असाधारण को छूती है।
उत्कल अनुज वाचनालय के संरक्षक सुभाष भूरा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि जो कविता दिल को छू ले, वही असली निर्माण है।
जगदीश मिश्र ने अपने उद्बोधन में इस आयोजन को आध्यात्मिक मिलन बताते हुए कहा कि कवियों का साथ मिलना किसी तीर्थ यात्रा से कम नहीं। मंचासीन साहित्यकार राम किशोर शर्मा ने संकलन की समीक्षा करते हुए रचनाओं को लोकोक्तियों, अलंकारों और व्यंग्य के ताने-बाने में बुनी हुई ‘जनभाषा की सहज संजीवनी’ बताया।
अशोक पांडेय ने खंडेलवाल के काव्य को श्रीजगन्नाथ जी की भूमि पर खिले उस फूल की तरह बताया, जो सुगंध भी देता है और संकेत भी। उन्होंने कहा कि कविता जब जीवन के बोझ को हल्का कर दे, तब समझिए वह कवि का नहीं, पाठक की आत्मा का प्रकाश बन चुकी है।
साहित्यकार राम किशोर शर्मा ने संकलन की समीक्षा करते हुए बताया कि “उधार का प्रकाश” नाम से भ्रम न हो — ये कोई बैंक की लोन लिस्ट नहीं, बल्कि 109 पृष्ठों में 55 कविताओं का ऐसा खजाना है, जो कभी ह॔साता है, तो कभी गुदगुदाता है और कभी भीतर चुपचाप सवाल रख देता है।
“औकात” ने सामाजिक परतों को उघाड़ा
संग्रह की कविताएं सिर्फ पढ़ी नहीं गईं, बल्कि महसूस की गईं। राजेश तिवारी की आवाज़ में “औकात” ने सामाजिक परतों को उघाड़ दिया। रविंद्र दुबे की प्रस्तुति में “पुलवामा हमला” ने मौन को भी रुला दिया। आशीष विद्यार्थी की “जीवन का समाधान राम” में जीवन की अनिश्चितता को राम की स्थिरता से जोड़ा गया।
“रूठा रूठी” ने रिश्तों की नमी को मंच पर फैलाया
कवयित्री रूणू रथ की “रूठा रूठी” ने रिश्तों की नमी को मंच पर फैला दिया और शायर नियाजउद्दीन ने “कमीज पर बाल” पढ़ते हुए साबित किया कि जिंदगी की सबसे बड़ी दुविधाएं कहीं और नहीं, कंधे पर टंगे बाल में छुपी होती हैं।
साहित्य पर गंभीर विमर्श
कार्यक्रम में न सिर्फ कविताएं बोली गईं, बल्कि साहित्य पर गंभीर विमर्श भी हुआ। मनीष पांडे और रितु महिपाल ने कवि के समग्र साहित्य पर चर्चा की, वहीं गोपाल कृष्ण और जगदीश मिश्र ने इसे समय की जरूरत बताया। साहित्य और समाज के बीच सेतु बने इस आयोजन में देश भर से आए साहित्य प्रेमियों की उपस्थिति रही, जिनमें मंजुला अस्थाना मोहंती, वीणापाणि मिश्र, खुशी पांडेय, गजानन शर्मा, कमल चौधरी, विनोद कुमार, अविनाश दास, सीमा अग्रवाल, रश्मि गुप्ता, केशव कोठारी, मुरारीलाल खंडेलवाल, आनंद पुरोहित, सुधीर सुमन, अंजना भूरा, संजय शर्मा, संकल्प दुबे, अमित रंजन, भारती परिडा, अलका शर्मा, पुरुषोत्तम पांडेय, ममता दास जैसे अनेक नाम शामिल रहे।
शब्दों का उधार चुकाना आसान नहीं होता
कार्यक्रम का समापन शिवकुमार शर्मा के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ, जो किसी औपचारिक वक्तव्य से अधिक, एक भावनात्मक यात्रा का विराम जैसा था। उन्होंने विनम्र स्वर में कहा कि “शब्दों का उधार चुकाना आसान नहीं होता, पर जब कविता यह काम करती है, तो वह सिर्फ रचना नहीं रहती — वह ऋणमुक्त आत्मा बन जाती है।”
“उधार का प्रकाश” अब सिर्फ एक किताब नहीं
“उधार का प्रकाश” अब सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि एक दस्तावेज है — उस समय का, उस समाज का, जहाँ आम आदमी के पास भले ही दिखाने को कुछ न हो, कहने को बहुत कुछ है। किशन खंडेलवाल की कविताएं उसी कहन की संचित रोशनी हैं, जो अब पाठकों के जीवन में धीमे-धीमे फैल रही है।
मुख्य अतिथि अतुल प्रकाश, महालेखाकार-2, ओडिशा ने संकलन पर अपने विचार रखते हुए कहा कि किशन खंडेलवाल की कविताएं उन गलियों से आई हैं जहां संवेदना अब भी जीवित है और जहां आम आदमी अब भी कविता लिखे बिना भी कविता जीता है। उन्होंने इसे “शब्दों की साधना” बताया, जो दिखने में साधारण है लेकिन भीतर कहीं असाधारण को छूती है।
उत्कल अनुज वाचनालय के संरक्षक सुभाष भूरा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि जो कविता दिल को छू ले, वही असली निर्माण है।
जगदीश मिश्र ने अपने उद्बोधन में इस आयोजन को आध्यात्मिक मिलन बताते हुए कहा कि कवियों का साथ मिलना किसी तीर्थ यात्रा से कम नहीं। मंचासीन साहित्यकार राम किशोर शर्मा ने संकलन की समीक्षा करते हुए रचनाओं को लोकोक्तियों, अलंकारों और व्यंग्य के ताने-बाने में बुनी हुई ‘जनभाषा की सहज संजीवनी’ बताया।
अशोक पांडेय ने खंडेलवाल के काव्य को श्रीजगन्नाथ जी की भूमि पर खिले उस फूल की तरह बताया, जो सुगंध भी देता है और संकेत भी। उन्होंने कहा कि कविता जब जीवन के बोझ को हल्का कर दे, तब समझिए वह कवि का नहीं, पाठक की आत्मा का प्रकाश बन चुकी है।
साहित्यकार राम किशोर शर्मा ने संकलन की समीक्षा करते हुए बताया कि “उधार का प्रकाश” नाम से भ्रम न हो — ये कोई बैंक की लोन लिस्ट नहीं, बल्कि 109 पृष्ठों में 55 कविताओं का ऐसा खजाना है, जो कभी ह॔साता है, तो कभी गुदगुदाता है और कभी भीतर चुपचाप सवाल रख देता है।
“औकात” ने सामाजिक परतों को उघाड़ा
संग्रह की कविताएं सिर्फ पढ़ी नहीं गईं, बल्कि महसूस की गईं। राजेश तिवारी की आवाज़ में “औकात” ने सामाजिक परतों को उघाड़ दिया। रविंद्र दुबे की प्रस्तुति में “पुलवामा हमला” ने मौन को भी रुला दिया। आशीष विद्यार्थी की “जीवन का समाधान राम” में जीवन की अनिश्चितता को राम की स्थिरता से जोड़ा गया।
“रूठा रूठी” ने रिश्तों की नमी को मंच पर फैलाया
कवयित्री रूणू रथ की “रूठा रूठी” ने रिश्तों की नमी को मंच पर फैला दिया और शायर नियाजउद्दीन ने “कमीज पर बाल” पढ़ते हुए साबित किया कि जिंदगी की सबसे बड़ी दुविधाएं कहीं और नहीं, कंधे पर टंगे बाल में छुपी होती हैं।
साहित्य पर गंभीर विमर्श
कार्यक्रम में न सिर्फ कविताएं बोली गईं, बल्कि साहित्य पर गंभीर विमर्श भी हुआ। मनीष पांडे और रितु महिपाल ने कवि के समग्र साहित्य पर चर्चा की, वहीं गोपाल कृष्ण और जगदीश मिश्र ने इसे समय की जरूरत बताया। साहित्य और समाज के बीच सेतु बने इस आयोजन में देश भर से आए साहित्य प्रेमियों की उपस्थिति रही, जिनमें मंजुला अस्थाना मोहंती, वीणापाणि मिश्र, खुशी पांडेय, गजानन शर्मा, कमल चौधरी, विनोद कुमार, अविनाश दास, सीमा अग्रवाल, रश्मि गुप्ता, केशव कोठारी, मुरारीलाल खंडेलवाल, आनंद पुरोहित, सुधीर सुमन, अंजना भूरा, संजय शर्मा, संकल्प दुबे, अमित रंजन, भारती परिडा, अलका शर्मा, पुरुषोत्तम पांडेय, ममता दास जैसे अनेक नाम शामिल रहे।
शब्दों का उधार चुकाना आसान नहीं होता
कार्यक्रम का समापन शिवकुमार शर्मा के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ, जो किसी औपचारिक वक्तव्य से अधिक, एक भावनात्मक यात्रा का विराम जैसा था। उन्होंने विनम्र स्वर में कहा कि “शब्दों का उधार चुकाना आसान नहीं होता, पर जब कविता यह काम करती है, तो वह सिर्फ रचना नहीं रहती — वह ऋणमुक्त आत्मा बन जाती है।”
“उधार का प्रकाश” अब सिर्फ एक किताब नहीं
“उधार का प्रकाश” अब सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि एक दस्तावेज है — उस समय का, उस समाज का, जहाँ आम आदमी के पास भले ही दिखाने को कुछ न हो, कहने को बहुत कुछ है। किशन खंडेलवाल की कविताएं उसी कहन की संचित रोशनी हैं, जो अब पाठकों के जीवन में धीमे-धीमे फैल रही है।