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चिकित्सा वृति नहीं, बल्कि जीवनभर का है व्रत
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एम्स भुवनेश्वर दीक्षांत समारोह में छात्राओं को मिले अधिक स्वर्ण पदक
भुवनेश्वर। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भुवनेश्वर के दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नए डॉक्टरों को न सिर्फ स्वर्ण पदक और प्रमाण पत्र प्रदान किए, बल्कि जीवनभर सेवा और समर्पण की भावना से कार्य करने की सीख भी दी। उन्होंने डॉक्टरों को ‘भगवान का प्रतिनिधि’ बताते हुए कहा कि चिकित्सा केवल एक पेशा नहीं, बल्कि आजीवन निभाया जाने वाला व्रत है।
एम्स भुवनेश्वर के पांचवें दीक्षांत समारोह के अवसर पर मुख्य अतिथि ने भावनात्मक और प्रेरक उद्बोधन देते हुए कहा कि छात्राओं ने इस बार अधिक स्वर्ण पदक प्राप्त किए हैं, यह अत्यंत उत्साहजनक है। उम्मीद है कि भविष्य में और अधिक छात्राएं डॉक्टर बनेंगी। इतिहास गवाह है कि मां और बेटियां सेवा की प्रतीक रही हैं और उनके माध्यम से समाज में सेवा की भावना और अधिक मजबूत होगी।
मुख्य अतिथि ने कहा कि इस संस्थान का शिलान्यास जब हुआ था, तब मैं स्वयं यहां उपस्थित थी। आज यह परिसर अत्यंत आकर्षक और आधुनिक दिख रहा है। हजारों की संख्या में लोग यहां इलाज के लिए आ रहे हैं। इस संस्थान के विकास में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का विशेष योगदान रहा है, और उस समय स्वर्गीय सुषमा स्वराज जी स्वास्थ्य मंत्री थीं। मैं वाजपेयी जी को श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं।
सेवा के क्षेत्र में एम्स का बढ़ता योगदान
उन्होंने कहा कि आज यह संस्थान आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के माध्यम से न केवल देशवासियों को, बल्कि विदेशी नागरिकों को भी उत्कृष्ट स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर रहा है। यह अब एक ‘हेल्थकेयर डेस्टिनेशन’ के रूप में स्थापित हो चुका है। समाज सेवा, चिकित्सा और जनकल्याण के क्षेत्र में इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
एक वर्ष में दस लाख से अधिक लोगों का इलाज
उन्होंने बताया कि बीते एक वर्ष में दस लाख से अधिक लोगों का इलाज एम्स में हुआ है। न सिर्फ ओडिशा, अपितु पश्चिम बंगाल. छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड के लोगों को भी लाभ मिल रहा है। यह संस्थान गुणवत्ता के मानकों में यह देश के अग्रणी संस्थानों में से एक है। इस दौरान उन्होंने एम्स भुवनेश्वर के पहले निदेशक पद्मश्री एके महापात्र के योगदान को सराहना की।
राष्ट्रपति ने यह जानकर प्रसन्नता व्यक्त की कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एम्स भुवनेश्वर को ‘एशिया सेफ सर्जिकल इम्प्लांट कंसोर्टियम क्यूआईपी अवॉर्ड’ से सम्मानित किया है। इसके अतिरिक्त, संस्थान को लगातार पाँच वर्षों तक ‘राष्ट्रीय कायाकल्प पुरस्कार’ भी मिला है, जो इसकी स्वच्छता और अस्पताल सेवाओं की उच्च गुणवत्ता को दर्शाता है।
डॉक्टर को बताया भगवान
अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा कि मेरी बाल्यावस्था गांव में बीती है। गांवों में लोग डॉक्टरों को अत्यंत सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। मेरे गांव के लोग डॉक्टर को भगवान का प्रतिनिधि मानते हैं, क्योंकि भगवान को किसी ने नहीं देखा, लेकिन जब डॉक्टर जीवन बचाता है, तो वही उनके लिए ईश्वर होता है।
डॉक्टर बनना कोई सामान्य पेशा नहीं
उन्होंने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि डॉक्टर बनना कोई सामान्य पेशा नहीं, यह एक व्रत है, जिसे जीवनभर निभाना होता है। अन्य नौकरियों में लोग सेवानिवृत्त हो सकते हैं, लेकिन डॉक्टर कभी सेवा से अवकाश नहीं लेते। जब एक रोगी ठीक होकर मुस्कराता है, तो वही डॉक्टर के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार होता है। आज जो आप स्वर्ण पदक प्राप्त कर रहे हैं, वह सम्माननीय है, लेकिन जब आप मरीजों की सेवा करेंगे, तो उनका आशीर्वाद और प्रेम इन पदकों से कहीं ऊपर होगा।
सेवा का रास्ता कठिन, लेकिन संतुष्टि अनमोल
उन्होंने आगे कहा कि आपके पास जीवन में कई विकल्प हो सकते थे, लेकिन आपने सेवा का मार्ग चुना, इसके लिए आप और आपके परिवार के सदस्य धन्यवाद के पात्र हैं। यह रास्ता कठिन है, इसमें 24 घंटे सेवा का भाव चाहिए। जीवन की किसी भी परिस्थिति में, आपको कर्तव्य की पुकार पर जाना ही होगा।
सम्मान बराबर मिलेगा
उन्होंने कहा कि गोल्ड मेडल मिलने वाले छात्रों को जितना सम्मान मिलेगा, उतना ही सम्मान उन्हें भी मिलेगा जो मेडल नहीं पा सके, लेकिन निष्ठा और करुणा से सेवा करेंगे। सेवा से मिलने वाली संतुष्टि की कोई तुलना नहीं होती।
आधुनिक जीवनशैली और मानसिक दबाव पर चिंता
उन्होंने छात्रों और समाज को यह संदेश भी दिया कि आज की जीवनशैली में तनाव, मानसिक दबाव और अवसाद बढ़ते जा रहे हैं। छात्रों पर पढ़ाई का, कर्मचारियों पर काम का और महिलाओं पर घरेलू व सामाजिक कार्यों का बोझ है। इससे मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है। इससे निपटने के लिए योग, संयमित आहार, जागरूकता और जीवन में संतुलन जरूरी है।
आदिवासी समाज की स्वास्थ्य समस्याओं पर विशेष ध्यान की अपील
ओडिशा के आदिवासी क्षेत्रों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मैं इस समाज के दुख-सुख को समझती हूं। यहां के आदिवासी समाज में जापानी इंसेफेलाइटिस और सिकल सेल जैसी बीमारियां आम हैं। सरकार इस दिशा में कार्य कर रही है, लेकिन और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। मैं आशा करती हूं कि आने वाले डॉक्टर इन क्षेत्रों में सेवा के लिए आगे आएंगे।
अंत में उन्होंने नव-उत्तीर्ण सभी चिकित्सकों को बधाई दी और उन्हें जीवनभर सेवा व समर्पण की भावना से कार्य करने की प्रेरणा दी।