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श्रीमंदिर लौटने के बाद महाप्रभु जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा ने धारण किया ‘सोना वेश’
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208 किलो सोने के आभूषणों से सुसज्जित स्वरूप में तीनों देवों ने दिए भव्य दर्शन
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लाखों भक्त हुए भावविभोर
पुरी। रथयात्रा महोत्सव में बाहुड़ा यात्रा के बाद महाप्रभु श्रीजगन्नाथ, देव बलभद्र और देवी सुभद्रा ने अपने श्रीमंदिर में लौटने के बाद दूसरे दिन आज संध्या होते ही भक्तों को अपने ‘सोना वेश’ में अलौकिक दर्शन दिए। आस्था और वैभव का यह संगम न केवल भक्तों के लिए आंखों का सुख बना, बल्कि आत्मा तक को भक्ति से सराबोर कर गया।
बड़दांड पर रथों पर विराजमान तीनों देवों को करीब 208 किलो शुद्ध सोने के आभूषणों से सजाया गया। सोने के हाथ, चरण, मुकुट, कंठी, चक्र, हल, मुसल, चांदी की शंख आदि हर आभूषण में दिव्यता झलक रही थी। जैसे ही रथों पर सुसज्जित देवताओं का रूप सामने आया, भक्तों की भक्ति चरम सीमा पर दिखी और वातावरण “जय जगन्नाथ” के गगनभेदी जयघोष से गूंज उठा।
श्रीमंदिर लौटने की दिव्यता के साथ जुड़ा वैभव का पर्व
हर वर्ष बाहुड़ा यात्रा के दिन तीनों देव अपने नीलाचल स्थित मूल निवास श्रीमंदिर लौटते हैं। श्रीमंदिर लौटने के बाद वे रथों पर ही ‘सोना वेश’ धारण करते हैं, तो यह नजारा साक्षात दिव्य दर्शन जैसा प्रतीत होता है।
यह वेश खासतौर पर संध्या के समय होता है, और श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रशासन के अनुसार, श्रद्धालुओं को शाम 6:30 बजे से रात 11 बजे तक दर्शन की अनुमति दी गई थी। इस दौरान लाखों श्रद्धालु पुरानी रथों के समक्ष कतारबद्ध होकर महाप्रभु के दर्शन के लिए उमड़े।
पुरी में उमड़ा जनसागर, सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद
‘सोना वेश’ के अवसर पर पुरी में श्रद्धालुओं का जनसागर उमड़ पड़ा। भीड़ की तीव्रता को देखते हुए ओडिशा पुलिस ने पहले से ही चेतावनी जारी कर दी थी कि सभी पार्किंग स्थल पूरी तरह भर चुके हैं। बाटगांव और माटीपटपुर जैसे स्थानों पर वाहनों को रोका गया ताकि शहर में भीड़ नियंत्रण में रहे।
पुलिस ने अपील की कि श्रद्धालु संयम बनाए रखें, नियमों का पालन करें और सुरक्षा बलों के साथ सहयोग करें। संपूर्ण बड़दांड पर पुलिस, होम गार्ड्स, स्वयंसेवक और हेल्थ स्टाफ की व्यापक तैनाती की गई थी।
भक्ति, वैभव और उत्साह से सराबोर रहा पुरी का हर कोना
पुरी की सड़कों पर इस अवसर पर केवल रथ ही नहीं, बल्कि भक्ति का ज्वार भी देखने को मिला। पारंपरिक बाजों की धुन, कीर्तन मंडलियों की गूंज, मृदंग और झांझ की तालों पर झूमते श्रद्धालु, और रथों पर विराजे देवताओं की स्वर्णिम छवि—हर क्षण दिव्यता से ओतप्रोत रहा।
देश-विदेश से आए श्रद्धालुओं ने इस अनुभव को जीवन की सबसे पवित्र और स्मरणीय घड़ी बताया।