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पुरी रथयात्रा: दक्षिणी मोड़ की नीति संपन्न

  • हेरा पंचमी और अढ़प मंडप दर्शन ने बढ़ाया धार्मिक उत्सव का उत्साह

पुरी। श्रीक्षेत्र पुरी में चल रही भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथयात्रा के दौरान सोमवार और मंगलवार को एक साथ कई महत्वपूर्ण धार्मिक नीतियों के भक्त साक्षी बने। एक ओर जहां सोमवार रात को पवित्र हेरा पंचमी की पारंपरिक नीति मां महालक्ष्मी की प्रतीकात्मक यात्रा के साथ संपन्न हुई, वहीं मंगलवार को तीनों रथों – भगवान बलभद्र का तालध्वज, देवी सुभद्रा का देवदलन और महाप्रभु जगन्नाथ का नन्दीघोष – ने दक्षिणी मोड़ (दक्षिण की दिशा की ओर रथ मोड़ने की नीति) पूरी कर ली।
हेरा पंचमी: नाराज महालक्ष्मी की प्रतीकात्मक यात्रा
हेरा पंचमी के अवसर पर सोमवार रात को श्रीमंदिर से देवी महालक्ष्मी ने पारंपरिक रीति से प्रतीकात्मक रूप से श्रीगुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान किया। यह नीति भगवान जगन्नाथ से उनकी नाराजगी और संवाद का प्रतीक मानी जाती है, क्योंकि रथयात्रा के समय वे उन्हें साथ लिए बिना ही निकल जाते हैं।
मां महालक्ष्मी नन्दीघोष रथ के समीप पहुंचीं और परंपरा के अनुसार रथ का एक भाग क्षतिग्रस्त किया गया, जिसे उनकी नाराजगी का प्रतीक माना जाता है। इस पूरी प्रक्रिया को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु देर रात तक उपस्थित रहे।
दक्षिणी मोड़ नीति में तीनों रथों ने बदला दिशा
मंगलवार को सुबह से ही रथों के दक्षिणी मोड़ की प्रक्रिया शुरू हुई। यह मोड़ रथयात्रा के अगले चरण का प्रतीक है, जहां रथ अब श्रीगुंडिचा मंदिर की ओर अंतिम खिंचाई के लिए तैयार हो जाते हैं। मोड़ के दौरान “हरि बोल”, “जय जगन्नाथ”, “जय मां सुभद्रा” जैसे जयघोषों से वातावरण भक्तिमय हो उठा।
अढ़प मंडप में दर्शन: श्रद्धालुओं की भारी भीड़, कड़ी सुरक्षा
तीनों रथों के श्रीगुंडिचा मंदिर पहुंचने के बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन को अढ़प मंडप में विराजमान किया गया है।
यहां पर उनके दर्शन के लिए भक्तों की रोज भीड़ उमड़ रही है
हादसे में तीन लोगों की मौत के बाद दर्शन के लिए प्रशासन ने व्यापक सुरक्षा व्यवस्था की है। मंदिर परिसर में बैरिकेडिंग लगाई गई है, ताकि श्रद्धालु अनुशासित ढंग से दर्शन कर सकें। जगह-जगह सुरक्षाकर्मी, पुलिस बल और स्वयंसेवकों की तैनाती की गई है।
भक्ति और परंपरा का संगम
इन तीनों धार्मिक प्रक्रियाओं – हेरा पंचमी, दक्षिणी मोड़ नीति और आड़प मंडप दर्शन – ने पुरी की धार्मिक और सांस्कृतिक गरिमा को एक बार फिर जीवंत कर दिया है। श्रद्धालु न सिर्फ दर्शन का लाभ ले रहे हैं, बल्कि परंपरा की जीवंत झलक भी देख रहे हैं।
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