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छात्र राजनीति से केंद्रीय मंत्रिमंडल की हैट्रिक तक का प्रधान को मजबूत सफर
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‘उज्ज्वला मैन’ की क्रांति ने बदली करोड़ों गरीबों की रसोई की तस्वीर
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ओडिशा में ‘लाल किला’ फतेह : असंभव को संभव बनाने में भी भूमिका
आज जन्मदिन पर विशेष
रणनीति स्वाभाव है, परिणाम पहचान है, और सेवा विरासत में है; ऐसा व्यक्तित्व राजनीति में एक नई दिशा का प्रतीक बनकर उभरा है। ना पद की भूख, ना दिखावे का लोभ। कुछ नया करने की हर दिन सोच, हर दिन कुछ बेहतर करने की आदत, और हर जिम्मेदारी पर रिजल्ट देने की फितरत ने इस नाम को लोगों के दिलों में जगह दी है। यह नेतृत्व शब्दों का नहीं, बल्कि कर्मों का पर्याय बन चुका है, जहां हर निर्णय जनहित में और हर प्रयास जनसेवा के लिए होता है। मुकाम इतना ऊंचा हो गया कि पिता ने गर्व से राजनीति से अपने कदम पीछे कर लिये, ताकि बेटे की काबिलियत पर उनके नाम की छांव भी ना पड़े। यह कोई आम राजनीतिक चेहरा नहीं, बल्कि एक सोच है, एक भावना है, जो राजनीति को सेवा का माध्यम मानती है। समर्पण इसकी नींव है, पारदर्शिता इसकी ताकत और जनता का विश्वास इसकी सबसे बड़ी पूंजी। आज यह व्यक्तित्व न केवल अडिग है, बल्कि एक नई राजनीतिक संस्कृति की नींव रख रहा है, जहां जिम्मेदारी से जवाबदेही तक की यात्रा सच्चाई और संकल्प के साथ तय होती है। यह व्यक्तित्व हैं धर्मेंद्र प्रधान।
नवभारत नेशनल ब्यूरो, नई दिल्ली/भुवनेश्वर।
केंद्र सरकार में शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान उस नई पीढ़ी के नेता हैं, जिन्होंने राजनीति को सिर्फ सत्ता का रास्ता नहीं, परिवर्तन की प्रयोगशाला माना। धर्मेंद्र प्रधान सिर्फ एक मंत्री नहीं, वे उस राजनीति के प्रतिनिधि हैं, जो जनता के दिल की धड़कन सुनती है। वह नेता जिसने छात्र राजनीति की सीढ़ियों से होते हुए राष्ट्रीय स्तर तक अपनी पहचान गढ़ी। वे उन कुछ चुनिंदा लोगों में हैं, जो नीति बनाते या समझते ही नहीं, उसे ज़मीन पर उतारने का मंत्र भी जानते हैं। और यही कारण है कि वे अहम जिम्मेदारियों के साथ लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में शामिल हैं। एक बार जब उनसे पूछा गया कि उन्हें सबसे ज़्यादा क्या प्रेरित करता है, तो उन्होंने सहजता से जवाब दिया- “मैं समाज के विविध तबकों, खासकर युवाओं से संवाद करना पसंद करता हूं। मैं उनकी आकांक्षाओं को प्रशासन से जोड़ने और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए काम करना चाहता हूं।” यही दृष्टिकोण उनके काम में झलकता है- नीतियों में स्पष्टता, समाज के प्रति संवेदनशीलता और योजनाओं में दूरदर्शिता। उनकी योजनाओं में यही संवेदना नज़र आती है।
उज्ज्वला क्रांति: जहां योजना से आंदोलन बना विश्वास
धर्मेंद्र प्रधान का नाम आते ही जो पहली योजना जहन में उतर आती है, वह है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर शुरू हुई महत्वाकांक्षी योजना, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना। 1 मई 2016 को शुरू हुई इस योजना को प्रधान ने सिर्फ मंत्रालय की फाइलों में नहीं छोड़ा, बल्कि बाधाओं को दूर करते हुए प्रभावी क्रियान्वयन घर-घर पहुंचकर गरीब महिलाओं को धुएं से मुक्ति दिलाने का आंदोलन खड़ा किया। इस योजना की रणनीति तैयार करने में उनकी दूरदर्शिता शामिल थी, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खूब सराहा। बीपीएल परिवारों की 10 करोड़ से ज़्यादा महिलाओं को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन दिलाकर उन्होंने न सिर्फ रसोई का धुआं मिटाया, बल्कि महिलाओं को सांस लेने की आज़ादी दी। आज भारत में कुल 32.94 करोड़ सक्रिय घरेलू एलपीजी उपभोक्ताओं में से 10.33 करोड़ पीएमयूवाई के लाभार्थी हैं। इस योजना ने उन्हें सिर्फ ‘उज्ज्वला मैन’ नहीं बनाया, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के भरोसेमंद डिलिवरी लीडर के रूप में स्थापित कर दिया।
ओडिशा में सत्ता की पहली दस्तक: जहां संगठन कौशल ने इतिहास रचा
2024 के ओडिशा विधानसभा चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत किसी एक चुनावी लहर का परिणाम नहीं थी, बल्कि यह थी एक दशक लंबी रणनीतिक बुनियाद का फल, जिसमें धर्मेंद्र प्रधान की उपस्थिति और योजना ने निर्णायक भूमिका निभाई। उन्होंने क्षेत्र में निरंतर उपस्थिति बनाए रखी और अमित शाह की हर रणनीति को पूरी शिद्दत के साथ जमीनी स्तर पर लागू किया। उनकी मेहनत और संगठन कौशल ने भाजपा को बीजू जनता दल (बीजद) के अभेद गढ़ में सेंध लगाने में मदद की। भाजपा को पहली बार ओडिशा में अपने दम पर पूर्ण बहुमत तक पहुंचाया। ओडिशा की जनता के साथ उनका सांस्कृतिक, भाषायी और सामाजिक जुड़ाव, सिर्फ संगठनकर्ता नहीं, एक भरोसेमंद जननेता के रूप में उनकी छवि को और मजबूत करता है।
शिक्षा में नीतिगत बदलावों के आर्किटेक्ट
2014 में प्रधान को पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय का राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया। 2017 में वे कैबिनेट मंत्री बने, जिसमें पेट्रोलियम के साथ-साथ कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली। 2019 में वे फिर से पेट्रोलियम और इस्पात मंत्री बने। 2021 में जब उन्हें शिक्षा और कौशल विकास मंत्रालय सौंपा गया, तो यह सिर्फ विभागीय फेरबदल नहीं था- यह एक संकेत था कि अब शिक्षा को सिर्फ अकादमिक सुधार नहीं, राष्ट्रीय क्षमता निर्माण की धुरी बनाया जाएगा। 2024 में संबलपुर, ओडिशा से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद वे पुनः शिक्षा मंत्री बने।
उनके कार्यकाल में कुछ नई पहल
– नई शिक्षा नीति (एनईपी) को तेजी से लागू किया गया
– विदेशी यूनिवर्सिटी कैंपस भारत में खोलने की प्रक्रिया शुरू हुई और कौशल विकास को मुख्यधारा के शिक्षातंत्र से जोड़ा गया। जब वे फिर शिक्षा मंत्री बने, तो यह सिर्फ चुनावी इनाम नहीं, विश्वास की पुनरावृत्ति थी।
केंद्र में मंत्री, संगठन में रणनीतिकार
धर्मेंद्र प्रधान का असर सिर्फ मंत्रालय की चारदीवारी तक सीमित नहीं। वे चुनाव प्रबंधन करने वाली उस टीम के स्थायी खिलाड़ी हैं, जिन्हें भाजपा हर चुनाव से पहले मैदान में उतारती है, क्योंकि वे जमीनी नब्ज़ को पहचानते हैं और टीम को दिशा दे सकते हैं। वे सिर्फ रणनीति नहीं बनाते- हर ब्लॉक, हर ज़िले तक उसे पहुंचाते हैं।
– 2010 में झारखंड के प्रभारी बने।
– 2014 में बिहार में भाजपा को जबरदस्त जीत दिलाई।
– 2022 में यूपी की सत्ता वापसी की रणनीति में योगदान।
– 2024 में हरियाणा की अप्रत्याशित जीत के पीछे भी उनका नाम प्रमुख रहा।
छात्र राजनीति से राष्ट्रीय कद तक: जहां संघर्ष ही पहचान बना
26 जून 1969 को ओडिशा के तालचेर में जन्मे धर्मेंद्र प्रधान का राजनीति से जुड़ाव विरासत नहीं, सजग चुनाव था। दो बार सांसद रहे उनके पिता डॉ देवेंद्र प्रधान अटलबिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे, लेकिन धर्मेंद्र ने अपना रास्ता खुद अपनी मेहनत, समर्पण से बनाया। 1983 में एबीवीपी से धर्मेंद्र ने छात्र राजनीति की शुरुआत की और एक-एक पायदान खुद चढ़ा। भारतीय जनता पार्टी में विभिन्न पदों पर रहने के बाद वे 2000 में ओडिशा विधानसभा के लिए चुने गए और फिर 2004 में देवगढ़ से लोकसभा के लिए चुने गए। उन्होंने बिहार और बाद में मध्य प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हुए दो बार राज्यसभा के सदस्य के रूप में भी काम किया है।
जहां जिम्मेदारी दी जाए, वहां नतीजा देने वाला नेता
धर्मेंद्र प्रधान का नाम आज उस भरोसे का प्रतीक बन चुका है जो नीति, संगठन, और निष्पादन – तीनों को एक साथ साध सकता है। वे न कोरे नारेबाज हैं, न कैमरा-फ्रेंडली नेता। वे उन चुनिंदा लोगों में हैं जो मानते हैं कि “योजना तभी सफल मानी जाती है, जब उसका असर अंतिम व्यक्ति तक दिखे।” धर्मेंद्र प्रधान को देखकर भारतीय राजनीति एक सीख ले सकती है कि चुपचाप काम करने वाले लोग ही असल में सबसे ज़्यादा बदल देते हैं। उनका सफर बताता है – राजनीति में नीयत साफ़ हो, सोच दूरदर्शी हो, और रणनीति मजबूत – तो बदलाव अवश्य आता है।
लेकर आए बड़े बदलाव
- सपनों की नौकरी: पीएम इंटर्नशिप योजना
- 1 करोड़ युवाओं को मिलेगा बड़ी कंपनियों में इंटरर्नशिप का अवसर
- देश की 500 टॉप कंपनियों में मिलेगा मौका
- 12 महीने की होगी इंटर्नशिप
- हर महीने 5000 हजार रुपए शिष्यवृत्ति मिलेगी
भारत को दिलाया अपना राष्ट्रीय रिसर्च फाउंडेशन
पांच सालों में होगा 50 हजार करोड़ रुपए का अनुमानित निवेश
यूनिवर्सिटी, संस्थानों में मिलेगा शोध संस्कृति को बढ़ावा
भारत को विज्ञान और अनुसंधान में वैश्विक शक्ति बनाने की कोशिश
जॉब क्रिएटर बनाने के अभियान
स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया और पीएम कौशल विकास योजना जैसे अभियानों ने लाखों युवाओं को सिर्फ नौकरी के लिए तैयार नहीं किया – बल्कि उन्हें जॉब क्रिएटर बनाकर देश का नेतृत्व करने वाला भी बनाया है।
‘100 क्यूब स्टार्टअप पहल’
प्रधान के मार्गदर्शन में ‘100 क्यूब स्टार्टअप पहल’ फरवरी, 2024 में आईआईटी भुवनेश्वर के रिसर्च एंड एंटरप्रेन्योरशिप पार्क द्वारा शुरू की गई। इसका उद्देश्य ओडिशा की नवाचार परंपरा को आधुनिक रूप में आगे बढ़ाना है। धर्मेन्द्र प्रधान का लक्ष्य है 2036 तक ओडिशा से 100 ऐसे स्टार्टअप तैयार करना है, जिनका मूल्यांकन कम-से-कम 100 करोड़ रुपये हो और जिनका नेतृत्व ओडिशा के 100 उद्यमी करें। यह पहल ओडिशा की 100वीं वर्षगांठ को समर्पित है।
कई राज्यों से जुड़ा है नाता
राजनीतिक करियर में धर्मेंद्र प्रधान एक ऐसा नेता हैं, जिनका कई राज्यों से नाता जुड़ा है। ओड़िया पुत्र होने के साथ-साथ उनका संबंध बिहार और मध्यप्रदेश से भी गहरा रहा है, जहां से उन्होंने राज्यसभा के लिए प्रतिनिधित्व किया। इतना ही नहीं जिन राज्यों में इनको जिम्मेदारियां सौंपी जाती है, वहां वह अपने कार्यशैली के कारण लोगों के दिलों में अपनी जगह कायम कर लेते हैं।
राजनीतिक जीवन की शुरुआत
- वर्ष 1986 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से की थी। पहले वर्ष में ही तालचेर कॉलेज के छात्र संसद के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित हुए।
- वर्ष 1990 तक उत्कल विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान उन्होंने अपनी इच्छाशक्ति और संगठनात्मक क्षमताओं से ओडिशा में एक उभरते हुए छात्र नेता के रूप में विशेष पहचान बनाई।
- वर्ष 1991 से उन्होंने एबीवीपी में पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य करना प्रारंभ किया।
- वर्ष 1992 से 1997 के बीच संगठन में विभिन्न पदों, जैसे कि संबलपुर विभाग संगठन मंत्री, राज्य मंत्री और राष्ट्रीय मंत्री, पर कार्य करते हुए संबलपुर में संगठनात्मक कार्य को मजबूत किया।
- वर्ष 2001 में वे ओडिशा भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष बने।
- वर्ष 2004 में भारतीय जनता युवा मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया।
- वर्ष 2000 से 2004 तक धर्मेन्द्र प्रधान ओडिशा विधानसभा में पल्लहारा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक के रूप में चुने गए। अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए “उत्कलमणि गोपबन्धु प्रतिभा सम्मान” से सम्मानित होने का गौरव प्राप्त किया।
- वर्ष 2004 से 2009 तक वे देवगढ़ लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए।
- वर्ष 2007 में उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय सचिव चुना गया।
- वर्ष 2010 में दो बार पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किये गये।
ओडिशा के विकास में योगदान
– उनके नेतृत्व में बीते 10 वर्षों में ओडिशा के तेल और गैस क्षेत्र में 2.4 लाख करोड़ रुपये का निवेश हुआ है, जिससे राज्य के औद्योगिक विकास के साथ हजारों युवाओं को रोजगार के अवसर मिले हैं।
– तेल और गैस क्षेत्र की सामाजिक उत्तरदायित्व योजनाओं (सीएसआर) के तहत ओडिशा में 250 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से कई स्कूल, सामाजिक संस्थान, स्वास्थ्य सेवाएं और बुनियादी विकास कार्य पूरे किए गए हैं। राज्य में स्थापित तेल डिपो, बॉटलिंग प्लांट, कॉमन यूज़र फैसिलिटी, और सेकेंड जेनरेशन रिफाइनरी जैसे प्रोजेक्ट्स ने ओडिशा की औद्योगिक नींव को मजबूत किया है।
– प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत ओडिशा में 55 लाख गैस कनेक्शन प्रदान किए गए हैं, जिससे गरीब माताओं की आंखों से आंसू पोंछने का कार्य धर्मेन्द्र प्रधान जैसे इस अंचल के योग्य सपूत ने सफलतापूर्वक किया है।
‘उज्ज्वला मैन’ से लेकर ‘मैन ऑफ डिलीवरी’ तक – केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान का प्रेरणादायक नेतृत्व
* कौन बनेगा करोड़पति जैसे प्रसिद्ध कार्यक्रम में महानायक अमिताभ बच्चन ने केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान को “उज्ज्वला मैन” की उपाधि दी है, जो उनके सामाजिक प्रयासों का राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त परिचायक है।
* कोविड महामारी के समय जब वे इस्पात मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रहे थे, तब उन्होंने देशभर में ऑक्सीजन की आपूर्ति को सुनिश्चित करने के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवा को सुदृढ़ करने का दायित्व भी बखूबी निभाया।
* धर्मेन्द्र प्रधान ऐसे नेता हैं जो जो कहते हैं, उसे करके दिखाते हैं। इसीलिए उन्हें “मैन ऑफ डिलीवरी” कहना अतिशयोक्ति नहीं, बल्कि सटीक उपमा है।
* नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को 30 वर्षों के अंतराल के बाद लागू कराने में उन्होंने केंद्रीय मंत्री के रूप में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने देशभर में इस नीति को प्रभावी रूप से कार्यान्वित करने के लिए अथक परिश्रम किया है।
* उनके नेतृत्व में ओडिशा में अनेक शैक्षणिक और कौशल विकास संस्थानों की स्थापना हुई है — जिनमें आईआईएम संबलपुर, एसडीआई भुवनेश्वर, आईसीटी मुंबई, नेशनल स्किल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट भुवनेश्वर, आईआईएसईआर ब्रह्मपुर और ओडिशा रिसर्च सेंटर भुवनेश्वर शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, आईआईएम संबलपुर में रंगबती सेंटर की स्थापना का भी दायित्व उन्होंने निभाया।
*उनके प्रयासों से आईआईटी भुवनेश्वर में एक आधुनिक रिसर्च पार्क की स्थापना और आईआईएम संबलपुर में 100 क्यूब स्टार्टअप की शुरुआत हुई। साथ ही, अनुगूल, ढेंकानाल, देवगढ़, संबलपुर और भद्रक में 5 स्किल इंडिया सेंटर्स की स्थापना भी उनके नेतृत्व में की गई।
* वर्ष 2024 के आम चुनाव में धर्मेन्द्र प्रधान ने संबलपुर लोकसभा सीट से भारी मतों से जीत हासिल की, जिससे क्षेत्र की जनता का भरोसा और समर्थन उन्हें मिला। दो बार केंद्रीय कैबिनेट मंत्री रहने के बाद अब तीसरी बार मंत्री बनकर उन्होंने न केवल ओडिशा को गौरवान्वित किया है, बल्कि केंद्र सरकार में अपनी अहम भूमिका को फिर से सिद्ध किया है।