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प्रकृति की गोद में कोरापुट एक आदर्श स्थल
डाॅ. रविता पाठक, कोरापुट।
भारत की समृद्ध योग परंपरा अब देश की सीमाओं से निकलकर वैश्विक आकर्षण का केंद्र बन चुकी है। योग न केवल आध्यात्मिक उन्नयन का माध्यम है, बल्कि आज स्वास्थ्य, पर्यटन और संस्कृति के संगम के रूप में भी उभर रहा है। इस दृष्टिकोण से ओडिशा राज्य, विशेषकर कोरापुट जैसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण स्थल, योग पर्यटन के लिए एक आदर्श स्थल के रूप में सामने आ रहे हैं।
प्राकृतिक संपदा और शांति का संगम – कोरापुट:
ओडिशा का कोरापुट जिला अपनी हरियाली, पहाड़ियों, जलप्रपातों और शांत वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ की सुरम्य वादियाँ, घने जंगल, और आदिवासी संस्कृति मिलकर एक ऐसा वातावरण निर्मित करते हैं जो योग साधना और मानसिक शांति के लिए अत्यंत उपयुक्त है। सुबह की स्वच्छ हवा, पर्वतीय शिखरों से उतरती सूर्य की किरणें और पक्षियों की चहचहाहट योग और ध्यान की उत्कृष्ट पृष्ठभूमि बनाते हैं।
योग पर्यटन के लिए अनुकूल वातावरण:
1. प्राकृतिक वातावरण: कोरापुट की जलवायु और प्राकृतिक दृश्यों में ध्यान व योग की प्रक्रिया सहज बन जाती है। यहाँ के बोर्रा गुफाएं, डंब्रिगुड़ा जलप्रपात, और गुप्तेश्वर धाम जैसे स्थल आत्मचिंतन के लिए आदर्श हैं।
2. कम भीड़-भाड़: पर्यटन की मुख्यधारा से दूर होने के कारण यहां शांति की अनुभूति होती है, जो योग के लिए आवश्यक मानसिक स्थिरता प्रदान करती है।
3. आदिवासी संस्कृति: यहाँ की पारंपरिक जीवनशैली प्रकृति के साथ सामंजस्य में है, जो योग की जीवनदृष्टि से मेल खाती है। यह सांस्कृतिक मेल भावनात्मक और आत्मिक स्तर पर भी सशक्त अनुभव प्रदान करता है।
राज्य सरकार और पर्यटन विभाग की भूमिका :
ओडिशा सरकार द्वारा हाल के वर्षों में योग और वेलनेस पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं। यदि कोरापुट जैसे क्षेत्रों में विशेष योग शिविर, मेडिटेशन रिट्रीट, और आयुर्वेदिक वेलनेस सेंटर स्थापित किए जाएं, तो यह न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल देगा बल्कि वैश्विक योग प्रेमियों को भी आकर्षित करेगा।
योग पर्यटन से संभावित लाभ:
- स्थानीय रोजगार के अवसरों में वृद्धि
- क्षेत्रीय कला, संस्कृति और हस्तशिल्प को बढ़ावा
- सतत और पर्यावरणीय रूप से अनुकूल पर्यटन का विकास
- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ओडिशा की पहचान में वृद्धि
ओडिशा, विशेषकर कोरापुट, योग पर्यटन का अगला केंद्र बनने की पूर्ण क्षमता रखता है। आवश्यकता है तो केवल संरचित प्रयासों और सतत प्रचार की, जिससे इसकी खूबसूरती और आध्यात्मिक क्षमता को विश्व पटल पर प्रस्तुत किया जा सके। योग और प्रकृति के इस संगम को यदि योजनाबद्ध तरीके से विकसित किया जाए, तो यह क्षेत्र न केवल पर्यटन मानचित्र पर उभर सकता है, बल्कि भारत की आध्यात्मिक विरासत को भी नई ऊंचाइयों तक पहुंचा सकता है।
लेखिका: डाॅ. रविता पाठक, शिक्षा विभाग, ओड़िशा केंद्रीय विश्वविद्यालय, कोरापुट
योगाचार्य, लेखिका एवं सामाजिक चिंतक|
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