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गजपति महाराज ने इस्कॉन से की रथयात्रा 27 जून को मनाने की अपील

  • आषाढ़ शुक्ल द्वितीया ही रथयात्रा की शास्त्रसम्मत तिथि

  • परंपरा से विचलन पर जताई चिंता

  • इस्कॉन के वैश्विक केंद्रों को शुद्ध तिथियों का पालन करने का सुझाव

पुरी। श्री जगन्नाथ जी के प्रथम सेवक एवं पुरी के गजपति महाराज दिव्यसिंह देव ने इस्कॉन के वैश्विक नेतृत्व को पत्र लिखकर स्पष्ट किया है कि रथयात्रा केवल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को ही आयोजित होनी चाहिए, जो इस वर्ष 27 जून 2025 को पड़ रही है। उन्होंने इस पवित्र पर्व की शास्त्रीय तिथि में एकरूपता बनाए रखने की अपील करते हुए कहा कि यह केवल धार्मिक परंपरा की बात नहीं, बल्कि भगवान जगन्नाथ की महिमा और वैदिक व्यवस्था की अखंडता का विषय है।

गजपति महाराज ने यह पत्र इस्कॉन के गवर्निंग बॉडी कमीशन (जीबीसी) के चेयरमैन गोवर्धन दास प्रभु को संबोधित किया है और इसे इस्कॉन के वैश्विक मुख्यालय मायापुर को भी ईमेल के माध्यम से प्रेषित किया गया है। उन्होंने गहरी चिंता जताई है कि भारत के बाहर इस्कॉन के कई केंद्र रथयात्रा जैसे दिव्य पर्वों का आयोजन पारंपरिक ओड़िया पंचांग के अनुसार न कर अलग तिथियों पर कर रहे हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है।

अपने पत्र में महाराज ने दो टूक शब्दों में लिखा

अपने पत्र में गजपति महाराज ने दो टूक शब्दों में लिखा है कि स्नान यात्रा और रथयात्रा जैसी परंपराएं सिर्फ शास्त्रसम्मत तिथियों पर ही की जानी चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस वर्ष स्नान यात्रा 11 जून को हो चुकी है, जो ज्येष्ठ पूर्णिमा की तिथि थी, जबकि रथयात्रा केवल 27 जून को ही मनाई जानी चाहिए, जो आषाढ़ शुक्ल द्वितीया है। महाराज ने इसके समर्थन में कई इस्कॉन केंद्रों की वेबसाइटों से लिए गए प्रमाण भी संलग्न किए हैं, जहां पर्वों की गलत तिथियां प्रकाशित की गई थीं।

20 मार्च को हुई महत्वपूर्ण बैठक का भी उल्लेख किया

गजपति महाराज ने अपने पत्र में 20 मार्च को भुवनेश्वर में आयोजित एक महत्वपूर्ण बैठक का भी उल्लेख किया है, जिसमें जगन्नाथ संस्कृति के विद्वान, श्रीमंदिर प्रशासन और वैदिक मान्यताओं के जानकारों ने भाग लिया था। इस बैठक में इस्कॉन द्वारा प्रस्तुत वैकल्पिक पंचांग और तिथियों के तर्कों को सर्वसम्मति से खारिज कर दिया गया था। गजपति महाराज ने कहा कि किसी भी पर्व की पवित्रता उसकी परंपरा और समयबद्धता में निहित होती है और जब वह परंपरा से हटती है तो उसकी आध्यात्मिक गरिमा भी क्षीण हो जाती है।

परंपराओं के अनुरूप तिथियों पर ही पर्वों का आयोजन करें

गजपति महाराज ने इस पत्र के माध्यम से इस्कॉन के वैश्विक नेतृत्व से आग्रह किया है कि वह अपने सभी अंतरराष्ट्रीय केंद्रों को निर्देशित करें कि वे केवल शास्त्रसम्मत एवं श्रीमंदिर की परंपराओं के अनुरूप तिथियों पर ही इन पवित्र पर्वों का आयोजन करें। उन्होंने कहा कि जगन्नाथ संस्कृति की वैश्विक प्रतिष्ठा को बनाए रखने और सनातन परंपरा की अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है।

उन्होंने यह भी कहा कि रथ यात्रा आज केवल ओडिशा तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि यह संपूर्ण भारत और विदेशों में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है। ऐसे में, तिथियों की असमानता केवल धार्मिक अशुद्धि नहीं, बल्कि भावनात्मक और सांस्कृतिक विघटन भी उत्पन्न कर सकती है। उन्होंने यह भी चेताया कि यदि ऐसी असमानताएं जारी रहीं तो जगन्नाथजी के नाम पर हो रहे आयोजनों की प्रामाणिकता पर प्रश्नचिह्न लगना स्वाभाविक है।

रथयात्रा जैसी परंपराएं आध्यात्मिक एकता की प्रतीक

इस पत्र के माध्यम से गजपति महाराज ने न केवल जगन्नाथ संस्कृति के संरक्षण की दिशा में एक मजबूत कदम उठाया है, बल्कि यह भी संकेत दिया है कि रथयात्रा जैसी परंपराएं केवल उत्सव नहीं, बल्कि आस्था, अनुशासन और आध्यात्मिक एकता की प्रतीक हैं। ऐसे में इस्कॉन जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था की जिम्मेदारी बनती है कि वह इन भावनाओं का सम्मान करे और परंपरा के अनुरूप कार्य करे।

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