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जगन्नाथ धाम विवाद पर पृथ्वीराज हरिचंदन का ममता बनर्जी पर हमला

  •  कहा- यह सांस्कृतिक चोरी का प्रयास, जरूरत पड़ी तो उठाएंगे कानूनी कदम

भुवनेश्वर। पश्चिम बंगाल के दीघा में नव-निर्मित जगन्नाथ मंदिर के नाम से धाम शब्द हटाने के सुझाव को लेकर देशभर में विवाद छिड़ गया है। इस मुद्दे पर ओडिशा के कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन ने सोमवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर तीखा हमला बोला।

मंत्री हरिचंदन ने इस विवाद को चालाकीपूर्ण और अनावश्यक करार देते हुए कहा कि यह नाम बदलने की कोशिश दरअसल जगन्नाथ संस्कृति की चोरी जैसा प्रयास है, जिसे किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने आरोप लगाया कि ममता बनर्जी ने इस मामले में ओडिशा के मुख्यमंत्री की विनम्र अपील की भी उपेक्षा की है।

संन्यासियों ने चिंता जताई, नेताओं से क्या उम्मीद करें?

मंत्री हरिचंदन ने सवाल उठाते हुए कहा कि जब आदरणीय शंकराचार्य जी जैसे संत भी इस विषय में चिंता जता रहे हैं, तो फिर राजनीतिक लोगों से क्या उम्मीद की जाए? उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया और जगन्नाथ जी के सभी भक्त ममता बनर्जी की इस धोखेबाज हरकत की निंदा कर रहे हैं।

ओडिशा सरकार कानूनी कार्रवाई पर विचार कर रही

हरिचंदन ने स्पष्ट किया कि यदि इस मामले का उचित समाधान नहीं निकला, तो ओडिशा सरकार कानूनी कदम उठाएगी। हम इस मुद्दे की गंभीरता से समीक्षा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि जरूरत पड़ी, तो अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे, ताकि जगन्नाथ संस्कृति और उसकी प्रतिष्ठा की रक्षा की जा सके।

पुरी के गजपति महाराज ने भी जताई आपत्ति

पुरी के गजपति महाराज दिव्यसिंह देव ने भी दीघा मंदिर के नाम में जगन्नाथ धाम शब्द जोड़े जाने पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि विश्वभर में जगन्नाथ जी के कई मंदिर हैं, लेकिन कहीं भी उन्हें धाम कहकर नहीं पुकारा जाता। जगन्नाथ धाम विशेष रूप से पुरी को ही कहा जाता है, जो चार धामों में एक है और इसका धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है।

संस्कृति और विरासत को लेकर उभरे व्यापक सवाल

इस पूरे विवाद ने भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी भावनाओं को एक बार फिर सतह पर ला दिया है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस पर तीखी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। जानकारों का मानना है कि यह विवाद केवल एक नाम को लेकर नहीं, बल्कि विरासत और सांस्कृतिक अस्मिता को लेकर गहराता मुद्दा है, जिसमें राजनीति का दखल और भी चिंताजनक है।

ओडिशा सरकार अब इस मुद्दे पर निर्णायक रुख अपनाने की तैयारी में है। अगर पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से उचित प्रतिक्रिया नहीं आई, तो यह विवाद भविष्य में और अधिक गंभीर रूप ले सकता है।

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