पुरी। श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रबंधन समिति की बैठक के बाद एक अहम बयान देते हुए गजपति महाराजा दिव्यसिंह देब ने पश्चिम बंगाल के दीघा स्थित नए जगन्नाथ मंदिर से ‘जगन्नाथ धाम’ की उपाधि हटाने की पुरजोर मांग की है। उन्होंने इसे परंपरा और जगन्नाथ संस्कृति के खिलाफ बताया।
गजपति महाराजा ने स्पष्ट किया कि विश्वभर में कई जगन्नाथ मंदिर हैं, लेकिन कहीं भी उन्हें ‘जगन्नाथ धाम’ कहकर नहीं पुकारा गया। केवल पुरी का श्रीमंदिर ही सदियों से ‘जगन्नाथ धाम’, ‘नीलाचल धाम’, ‘श्रीक्षेत्र’ और ‘पुरुषोत्तम क्षेत्र’ जैसे विशेष धार्मिक नामों से मान्यता प्राप्त है।
उन्होंने बताया कि इस मुद्दे को लेकर ओडिशा के मुख्यमंत्री पहले ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को पत्र लिख चुके हैं। दीघा मंदिर का निर्माण और संचालन पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा गठित ट्रस्ट के अंतर्गत हुआ है, जिसमें किसी निजी संस्था की भूमिका नहीं है। ऐसे में मंदिर का नाम तय करने की ज़िम्मेदारी भी राज्य सरकार की ही बनती है।
गजपति महाराजा ने कहा कि दीघा के जगन्नाथ मंदिर को ‘जगन्नाथ धाम’ कहना न केवल परंपरा के खिलाफ है, बल्कि यह श्रीमंदिर की विशिष्ट पहचान को भी आघात पहुंचाता है। यह हम सभी के लिए बेहद चिंता का विषय है। हमने इस मामले पर ‘मुक्ति मंडप’ से परामर्श लिया है और पुरी के गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने भी स्पष्ट कर दिया है कि पूरी दुनिया में केवल पुरी ही ‘जगन्नाथ धाम’ है।
इस्कॉन की चुप्पी पर उठे सवाल
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि दीघा मंदिर ट्रस्ट में शामिल इस्कॉन जैसे संगठन ने इस मुद्दे पर कोई आपत्ति क्यों नहीं जताई।
इस्कॉन सच्चाई से भलीभांति परिचित है, फिर भी उन्होंने कोई आवाज नहीं उठाई। यह हैरानी की बात है।
पश्चिम बंगाल सरकार से बात करे राज्य सरकार
गजपति महाराजा ने ओडिशा सरकार से आग्रह किया कि वह पश्चिम बंगाल सरकार से इस विषय पर गंभीरता से चर्चा करे और सभी तथ्यों और ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर दीघा मंदिर से ‘जगन्नाथ धाम’ उपाधि हटवाने के लिए आवश्यक कदम उठाए।
पुरी के श्रीमंदिर की धार्मिक प्रतिष्ठा और सांस्कृतिक विशिष्टता की रक्षा के लिए यह बयान आने वाले दिनों में एक राजनीतिक और धार्मिक विमर्श का केंद्र बन सकता है।