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भारत के जी-20 शेरपा अमिताभ कांत का देबरीगढ़ इकोटूरिज्म दौरा

  •  देबरीगढ़ को बताया देश का सर्वश्रेष्ठ इकोटूरिज्म गंतव्य

भुवनेश्वर। भारत सरकार के जी-20 शेरपा अमिताभ कांत ने संबलपुर स्थित देबरीगढ़ वन्यजीव अभयारण्य का दौरा किया और वहां के सामुदायिक इकोटूरिज्म मॉडल की सराहना करते हुए इसे “देश का सर्वश्रेष्ठ इकोटूरिज्म स्थल” करार दिया।
कांत ने अभयारण्य में कार्यरत स्थानीय समुदाय के सदस्यों से बातचीत की और बताया कि कैसे 85 से अधिक वन-निर्भर परिवार विभिन्न इकोटूरिज्म गतिविधियों के माध्यम से अपनी आजीविका चला रहे हैं। इन गतिविधियों में जंगल सफारी, हीराकुंड क्रूज, ट्रेकिंग, हाइकिंग, कायकिंग, वन्यजीवों पर कहानियों का सत्र, बर्ड वॉचिंग जैसी रोमांचक सुविधाएं शामिल हैं।
देबरीगढ़ में पर्यटकों के ठहरने के लिए 20 कॉटेज, जिनमें 6 स्टारगेजिंग ग्लास रूम शामिल हैं, उपलब्ध कराए गए हैं। प्रत्येक समुदाय सदस्य को प्रति माह 13 से 15 हजार रुपये तक की आमदनी हो रही है। विशेष बात यह है कि 40 प्रतिशत महिलाएं भी इस कार्य में शामिल हैं, जिनमें महिला सफारी चालक और इको-गाइड भी हैं।
वन्यजीवों की बेहतर देखरेख और सभी गांवों के पुनर्वास के कारण अब देबरीगढ़ अभयारण्य में मानव-वन्यजीव संघर्ष की समस्या नहीं है। अब यहां भारतीय बाइसन के झुंड, सांभर, भालू और अन्य जीवों की लगातार दृश्यता बनी रहती है। हीराकुंड जलाशय में 18 क्रूज बोट संचालित हो रहे हैं और एक बांस और ताड़ से बना द्वीप कैफे स्थानीय समुदाय द्वारा चलाया जा रहा है।
इसके अलावा गोविंदपुर बर्ड्स विलेज, धोड़रोकुसुम ग्रीन विलेज और वीर सुरेंद्र साई स्मारक जैसे कई स्थलों का प्रबंधन भी स्थानीय समुदाय कर रहा है। कुछ पूर्व शिकारी भी अब इको-गाइड के रूप में कार्यरत हैं।
2024-25 में रिकॉर्ड राजस्व
वित्तीय वर्ष 2024-25 में देबरीगढ़ इकोटूरिज्म ने 5.11 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड राजस्व अर्जित किया। इकोटूरिज्म नीति के अनुसार इस राजस्व का:
• 35% स्थानीय समुदाय को मजदूरी में
• 25% परिचालन व्यय में
• 10% अवसंरचना विकास में
• 10% गांव विकास में
• 20% राज्य मुख्य वन्यजीव संरक्षक (PCCF WL) के कॉर्पस फंड में प्रशिक्षण व क्षमतावर्धन हेतु उपयोग किया जाता है।
संपूर्ण आय स्थानीय समुदाय में ही वापस जाती है, जिससे उन्हें मुख्य भागीदार बनाया गया है। इससे वन एवं वन्यजीव संरक्षण को अत्यधिक मजबूती मिली है।
जीवन में बदलाव
श्री कांत ने कहा कि सामुदायिक सहभागिता ने न केवल वन्यजीव संरक्षण को नया आयाम दिया है, बल्कि इससे वन पर निर्भर समुदायों के जीवन में आर्थिक परिवर्तन भी आया है। अब स्थानीय लोग न केवल वन संरक्षण की जिम्मेदारी निभा रहे हैं, बल्कि पर्यटन को भी सशक्त बना रहे हैं।
उनके दौरे को राज्य में पर्यावरणीय पर्यटन और सामुदायिक विकास की दिशा में एक सकारात्मक संदेश के रूप में देखा जा रहा है।

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