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ओलचिकी लिपि गौरव का प्रतीक – मोहन माझी

  • -कहा-ओलचिकी लिपि सिर्फ भाषा नहीं, हमारी अस्मिता, संस्कृति और एकता का प्रतीक

  • पंडित रघुनाथ मुर्मू की विरासत को किया गया नमन

मयूरभंज। ओलचिकी लिपि और संथाली संस्कृति के महान प्रवर्तक पंडित रघुनाथ मुर्मू को श्रद्धांजलि देते हुए एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्यमंत्री ने उनके योगदान को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि उनकी रचनाएं और विचारधारा आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवन-शिक्षा हैं।

मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि हम अक्सर भाषा को केवल संवाद का एक साधन मानते हैं, लेकिन वास्तव में, भाषा ही हमारी अस्मिता, अस्तित्व और विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम है। ओलचिकी लिपि इस गर्व और पहचान का प्रतीक है।

उन्होंने कहा कि ओडिशा सरकार ने ओलचिकी लिपि और संथाली भाषा को विशेष महत्व दिया है। इसके अंतर्गत प्राथमिक शिक्षा में संथाली भाषा को शामिल करना, पाठ्यपुस्तकों का निर्माण, शिक्षकों का प्रशिक्षण और शोध केंद्रों की स्थापना जैसे कदम उठाए गए हैं।

पंडित मुर्मू की विरासत से प्रेरित पीढ़ियां

मुख्यमंत्री ने कहा कि पंडित रघुनाथ मुर्मू द्वारा दिखाया गया मूल्यबोध, ज्ञान और संस्कृति के प्रति प्रेम संथाल समाज के लिए आज भी प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने कहा कि हमारी आने वाली पीढ़ियां उनके दिखाए गए मार्ग को आत्मसात करें और दूसरी भाषाओं, धर्मों और संस्कृतियों के प्रति सम्मान बनाए रखें।

संथाली भाषा, साहित्य और संस्कृति होगी अधिक सशक्त

उन्होंने कहा कि उनके सपनों को साकार करने के लिए संथाली भाषा, साहित्य और संस्कृति की रक्षा और प्रचार-प्रसार की दिशा में कार्यों को और अधिक सशक्त किया जाएगा।

मुख्यमंत्री ने अंत में कहा कि पंडित मुर्मू केवल ज्ञान और शिक्षा के प्रतीक नहीं हैं, वे ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्होंने इस धरती की अंतःस्थ मूल्यों को उजागर किया। हमारी सरकार उनके इस महान योगदान को सम्मान देते हुए उनके नाम पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है। हमने राज्य की शिक्षा और संस्कृति नीति में उनके नाम को एक अभिन्न हिस्सा बना दिया है। उनके जीवन और कार्यों को स्मरण करके हम नई पीढ़ियों को प्रेरित कर रहे हैं।

गुरु गोमके सम्मान और सम्मानित अतिथि

कार्यक्रम में संथाली भाषा के प्रसिद्ध शोधकर्ता चूंदा सोरेन को गुरु गोमके अंतरराष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया गया। इसके तहत उन्हें एक लाख रुपये की पुरस्कार राशि भी दी गई।

पंडित मुर्मू की स्मृति में एक विशेष स्मरणिका का विमोचन भी हुआ। साथ ही उनके वंशज श्री चुनियान मुर्मू और पद्मश्री डॉ. दमयंती बेसरा को भी सम्मानित किया गया।

मुर्मू की रचनाएँ और विचारधारा जीवन शिक्षा

उन्होंने कहा कि पंडित मुर्मू की रचनाएँ और विचारधारा सभी पीढ़ियों के लिए जीवन शिक्षा हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि यदि हम अपनी भाषा, विचार और संस्कृति के प्रति सचेत और संगठित हों, तो कोई भी शक्ति हमें पीछे नहीं खींच सकती।

इतिहास पुनर्जीवित हो उठा

इस दौरान गृहनिर्माण एवं शहरी विकास मंत्री डॉ कृष्णचंद्र महापात्र ने पंडित मुर्मू को एक अलौकिक शक्ति से युक्त व्यक्तित्व बताया। वन एवं पर्यावरण मंत्री गणेशराम सिंखुटिया ने अपने वक्तव्य में कहा कि इस उत्सव के माध्यम से आज इतिहास पुनर्जीवित हो उठा है। मंत्री सूरज ने कहा कि गुरु गोमके एक ऐसे पुष्प थे, जो मुरझाने के बाद भी अपनी सुगंध फैलाते रहते हैं।

इस कार्यक्रम में राज्यसभा सांसद ममता महंत, मयूरभंज से लोकसभा सांसद नवचरण माझी, रायरंगपुर विधायक जलैन नायक, सारसकणा विधायक भादव हांसदा, करंजिया विधायक पद्मचरण हाइबुरु, बारिपदा विधायक प्रकाश सोरेन, बड़साही विधायक सनातन बिजुली, बांगीरिपोसी विधायक संजीली मुर्मू और पंडित रघुनाथ मुर्मू ट्रस्ट के संपादक इंजी. विश्वेश्वर टुडू मंचासीन थे।

कार्यक्रम में ओड़िया भाषा, साहित्य और संस्कृति विभाग के निदेशक विजय केतन उपाध्याय ने स्वागत भाषण दिया, जबकि मयूरभंज जिलाधिकारी हेमकांत सॉय ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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