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गुरु गोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू का आवास बनेगा तीर्थ स्थल

  • समाधि स्थल होगा ऐतिहासिक स्मृति पीठ

  • मोहन माझी सरकार ने की बड़ी घोषणा

  • श्रद्धा और इतिहास का प्रतीक बनेगा पंडित मुर्मू का जीवन-संघर्ष

  • स्थानीय संस्कृति, जनजातीय गौरव और स्वतंत्रता संग्राम की स्मृतियों को मिलेगा सम्मान

  • ओलचिकी पुस्तकालय और ओपन थिएटर-संग्रहालय की होगी स्थापना

मयूरभंज। गुरु गोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू के प्रति सम्मान और उनके अविस्मरणीय योगदान को अमर करने के उद्देश्य से ओडिशा की मोहन माझी सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है। सरकार ने घोषणा की है कि पंडित मुर्मू के पैतृक आवास को तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा, जबकि उनकी समाधि को ‘ऐतिहासिक स्मृति पीठ’ का दर्जा दिया जाएगा। यह स्थल केवल श्रद्धा का केंद्र नहीं, बल्कि स्थानीय संस्कृति, जनजातीय गौरव और स्वतंत्रता संग्राम की जीवंत स्मृतियों को संजोने वाला प्रेरणास्थल भी बनेगा। ओलचिकी लिपि के संवाहक और जनशिक्षा के अग्रदूत पंडित मुर्मू की स्मृति में ओलचिकी पुस्तकालय, ओपन थिएटर और संग्रहालय की स्थापना की जाएगी, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए उनके जीवन-दर्शन से जुड़ने का माध्यम होगा।

यह पहल केवल एक स्मारक निर्माण नहीं, बल्कि जनजातीय अस्मिता और सांस्कृतिक विरासत को चिरस्थायी सम्मान देने की दिशा में उठाया गया एक दूरदर्शी कदम है। पंडित रघुनाथ मुर्मू, जिन्होंने ओलचिकी लिपि के माध्यम से संथाली समाज को शिक्षा, एकता और सांस्कृतिक आत्मबोध का नया मार्ग दिखाया, उनके जीवन-संघर्ष को अब स्थायी स्वरूप दिया जा रहा है। यह निर्णय न सिर्फ उनकी स्मृति को सहेजेगा, बल्कि ओडिशा की भावी पीढ़ियों को अपने इतिहास, भाषा और संस्कृति के प्रति गर्व करना भी सिखाएगा।

120वीं राज्यस्तरीय जयंती भव्य रूप से मनी

संथाली भाषा की ओलचिकी लिपि के आविष्कार के शताब्दी वर्ष तथा गुरु गोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू की 120वीं राज्यस्तरीय जयंती समारोह आज मयूरभंज जिले के रायरंगपुर अंतर्गत महुलडीहा क्षेत्र में भव्य रूप से मनाया गया।

इस अवसर पर ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी मुख्य अतिथि के रूप में समारोह में शामिल हुए और दांडबोश क्षेत्र स्थित पंडित मुर्मू के पैतृक निवास को स्मारकीय तीर्थ स्थल तथा उनकी समाधि को ऐतिहासिक स्मृति पीठ के रूप में विकसित करने की घोषणा की।

सरकार ने पंडित मुर्मू के नाम पर एक मेडिकल कॉलेज की स्थापना की है और भविष्य में और भी शोध केंद्र तथा शिक्षण संस्थान खोलने की योजना है।

संथाली साहित्य और संस्कृति को मिलेगा नया बल

मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि सरकार संथाली भाषा, साहित्य और संस्कृति के प्रचार-प्रसार और संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि पंडित मुर्मू केवल शिक्षा के प्रतीक नहीं, बल्कि इस धरती की आत्मा के संवाहक हैं। उनकी स्मृति में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।

संथाली भाषा का होगा प्रचार-प्रसार

मुख्यमंत्री ने यह भी घोषणा की कि ओलचिकी लिपि की 100वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में पूरे एक वर्ष तक राज्यभर में विविध कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे और संथाली भाषा के प्रचार-प्रसार हेतु एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया जाएगा।

50 करोड़ का विशेष पैकेज

इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि पंडित मुर्मू द्वारा रचित समस्त पुस्तकों को जन-जन तक पहुंचाने हेतु बारिपदा में एक ओलचिकी पुस्तकालय की स्थापना की जाएगी। इसके अतिरिक्त, पंडित रघुनाथ मुर्मू ओपन थिएटर-संग्रहालय और उनकी कर्मभूमि में एक ऐतिहासिक भवन की स्थापना भी की जाएगी। इन सभी कार्यों के लिए मुख्यमंत्री ने 50 करोड़ रुपये के विशेष पैकेज की घोषणा की।

पंडित मुर्मू का जीवन संपूर्ण यात्रा

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पंडित मुर्मू का जीवन केवल एक व्यक्ति की जीवनी नहीं, बल्कि एक आंदोलन, एक चेतना, एक कला और संस्कृति की यात्रा है। ओलचिकी लिपि के 100 वर्ष केवल एक आविष्कारक की मानसिक रचना का सम्मान नहीं, बल्कि यह एक जनजातीय भाषा, संस्कृति और अस्मिता की मुक्त अभिव्यक्ति का प्रतीक है। उनकी लिपि का आविष्कार केवल शब्दों का परिवर्तन नहीं, बल्कि यह सांस्कृतिक विकास का एक नया अध्याय था।

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