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कटक बस टर्मिनल मामले में हाईकोर्ट ने लगायी रोक

  • बीडीए की अनुबंध समाप्ति पर लगाई गई रोक

कटक। उच्च न्यायालय ने भुवनेश्वर विकास प्राधिकरण (बीडीए) को कटक नेताजी बस टर्मिनल (सीएनबीटी) का प्रबंधन करने वाली महाराष्ट्र स्थित फर्म के साथ अपना अनुबंध समाप्त करने से अस्थायी रूप से रोक दिया।

दो न्यायाधीशों की पीठ ने एक आदेश में बीडीए को 21 अप्रैल के अपने समाप्ति नोटिस को 30 जून, 2025 तक निलंबित करने का निर्देश दिया, जिससे फर्म को परिचालन जारी रखने की अनुमति मिल सके।

हाईकोर्ट का हस्तक्षेप: अनुबंध समाप्ति बिना कारण के

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केआर महापात्र और न्यायमूर्ति सवित्री राठो की खंडपीठ ने मंगलवार को दिए आदेश में कहा कि बीडीए ने अनुबंध को समय से पहले समाप्त करने का कोई ठोस कारण नहीं बताया, जिससे यह निर्णय मनमाना प्रतीत होता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि कंपनी के विरुद्ध किसी भी प्रकार की गड़बड़ी या अनुशासनहीनता का उल्लेख नहीं किया गया है।

अगस्त 2023 में बीडीए ने महाराष्ट्र स्थित एक निजी कंपनी को कटक के खानगर क्षेत्र में बने नेताजी बस टर्मिनल के संचालन का कार्य सौंपा था।

टर्मिनल को 90 करोड़ रुपये की लागत से 14.95 एकड़ जमीन पर ओडिशा ब्रिज एंड कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन ने विकसित किया है। अनुबंध अगस्त 2028 तक के लिए वैध था।

विवाद की जड़

बीडीए ने 21 अप्रैल 2025 को नोटिस जारी कर 30 अप्रैल तक स्टाफ हटाने के निर्देश दिए, यह कहते हुए कि कार्य का दायरा कम हो गया है। इसके बाद कंपनी ने हाईकोर्ट का रुख किया और वरिष्ठ अधिवक्ता सौरज्यकांत पाढ़ी ने अदालत में दलील दी कि यह निर्णय बिना वैध कारण के और मनमाना है, खासकर तब जब कोई नई एजेंसी भी नियुक्त नहीं की गई है।

बीडीए की ओर से कहा गया कि यह एक नागरिक अनुबंध विवाद है और इसे रिट याचिका के बजाय सिविल कोर्ट में ले जाना चाहिए था, लेकिन कोर्ट ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए बीडीए से 30 जून तक जवाब दाखिल करने को कहा है।

संचालन अब भी जारी

विवाद के बावजूद, कंपनी अब भी सीएनबीटी का संचालन पूर्ववत कर रही है और वहां कोई व्यवधान नहीं हुआ है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक अंतिम निर्णय नहीं आ जाता, संचालन में स्थिरता बनाए रखना जरूरी है, और वर्तमान एजेंसी की भूमिका अनुबंध के अनुरूप है। यह मामला अब 30 जून 2025 को अगली सुनवाई के साथ आगे बढ़ेगा, जिस पर राज्य के शहरी अवसंरचना प्रबंधन में कानूनी प्रक्रियाओं की पारदर्शिता और संविदात्मक न्याय का बड़ा असर पड़ सकता है।

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