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गजपति महाराज ने इस्कॉन से हस्तक्षेप करने की अपील की

  • दीघा मंदिर के जगन्नाथ धाम नाम हटाने के लिए राजी करने को कहा

पुरी। श्रीमंदिर, पुरी के प्रथम सेवायत और गजपति महाराज दिव्यसिंह देव ने बुधवार को इस्कॉन से आग्रह किया कि वह पश्चिम बंगाल के तटीय नगर दीघा में हाल ही में प्रतिष्ठित भगवान जगन्नाथ मंदिर के ट्रस्ट बोर्ड को जगन्नाथ धाम नाम हटाने के लिए राजी करे।

गजपति महाराज ने इस्कॉन गवर्निंग बॉडी कमिशन (जीबीसी) के अध्यक्ष श्री गोवर्धन दास प्रभु को लिखे एक पत्र में कहा कि गोवर्धन पीठ (पुरी) के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज तथा ज्योतिष पीठ (ज्योतिमठ) के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने स्पष्ट रूप से यह घोषणा की है कि केवल पुरुषोत्तम क्षेत्र पुरी ही जगन्नाथ धाम कहलाने योग्य है और किसी अन्य स्थान या मंदिर को इस नाम से नहीं पुकारा जा सकता।

इस्कॉन की भूमिका महत्वपूर्ण

गजपति दिव्यसिंह देव ने अपने पत्र में कहा कि चूंकि दीघा के जगन्नाथ मंदिर के ट्रस्ट बोर्ड में इस्कॉन के प्रतिनिधियों की भागीदारी है, इसलिए मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप अपने प्रभाव का उपयोग कर ट्रस्ट बोर्ड को समझाएं कि वे श्री जगन्नाथ मंदिर, दीघा के संदर्भ में धाम शब्द का उपयोग बंद करें।

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि आप भली-भांति जानते हैं कि परम पूज्य शंकराचार्य सनातन वैदिक धर्म के सर्वोच्च धार्मिक प्राधिकरण हैं। विशेष रूप से गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य श्री जगन्नाथ परंपरा में आदि गुरु और परमगुरु माने जाते हैं।

गजपति ने अपने पत्र में कहा कि नामकरण जैसे श्री जगन्नाथ धाम, श्री पुरुषोत्तम धाम या क्षेत्र, श्री क्षेत्र और नीलाचल धाम केवल भगवान जगन्नाथ के मूल पीठ, पुरी के लिए ही आरक्षित हैं। यदि किसी अन्य स्थान पर भगवान जगन्नाथ की प्रतिष्ठा व पूजा भी हो रही हो, तब भी इन विशेष नामों का प्रयोग वहाँ नहीं किया जा सकता।

मुक्तिमुंडप पंडित सभा ने भी किया विरोध

पुरी स्थित श्रीमंदिर के मुक्तिमुंडप पंडित सभा ने भी इस विषय में विरोध जताया है। उन्होंने शास्त्रीय प्रमाणों के आधार पर स्पष्ट किया है कि दीघा में स्थित मंदिर को जगन्नाथ धाम नहीं कहा जा सकता।

ममता खेल रही हैं आर्थिक खेल – पुरी शंकराचार्य

इस बीच गोवर्धन पीठ द्वारा जारी एक वीडियो में शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने, जो इस समय पंजाब की यात्रा पर हैं, कहा कि भगवान ब्रह्मा ने सबसे पहले पुरी मंदिर में श्री जगन्नाथ की मूर्ति की स्थापना की थी। बाद में आदि शंकराचार्य ने दारु (लकड़ी की) मूर्तियों की पुनः प्रतिष्ठा की।

उन्होंने यह भी कहा कि वास्तव में पुरी के सेवायत और यहां की बाजार व्यवस्था बंगाली तीर्थयात्रियों की खर्च पर निर्भर करती है। ममता बनर्जी का मानना है कि यदि पश्चिम बंगाल में ही जगन्नाथ मंदिर स्थापित कर दिया जाए तो बंगाली तीर्थयात्री वहीं खर्च करेंगे। यह एक आर्थिक खेल है जो भगवान जगन्नाथ के नाम पर खेला जा रहा है।

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