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दीघा को ‘जगन्नाथ धाम’ कहने पर अड़ीं ममता बनर्जी, बढ़ा विवाद

  •  ममता का तर्क – श्रद्धा जताने की भी नहीं रही आज़ादी?

  •  शंकराचार्य बोले: जगन्नाथ का एकमात्र धाम पुरी में

कोलकाता/भुवनेश्वर। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को एक बार फिर दीघा में निर्मित जगन्नाथ मंदिर को ‘जगन्नाथ धाम’ कहने का खुलकर समर्थन किया। उन्होंने इसे देश के पारंपरिक चार धाम, बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम और पुरी से अलग, एक अतिरिक्त धाम के रूप में स्थापित करने की बात कही।

हालांकि उनके इस बयान के बाद यह मुद्दा और भी गरमाता नजर आ रहा है। धार्मिक नेताओं से लेकर राजनीतिक दलों तक, हर ओर से प्रतिक्रिया आने लगी है।

ममता बनर्जी ने सवाल उठाया कि जब कोलकाता के कालीबाड़ी और दक्षिणेश्वर मंदिर जैसे स्थलों के पास स्काईवॉक बनने पर कोई विरोध नहीं हुआ, तो अब दीघा मंदिर को ‘धाम’ कहे जाने पर इतना विरोध क्यों?

उन्होंने कहा कि क्या श्रद्धालु अब अपनी श्रद्धा प्रकट करने की आज़ादी भी खो चुके हैं?

मेरे बगीचे में हैं चार नीम के पेड़, चाहिए तो ले जाइए

दीघा मंदिर में इस्तेमाल की गई मूर्तियों के लिए नीम की लकड़ी की आपूर्ति को लेकर उठे विवाद पर ममता बनर्जी ने कहा कि मेरे बगीचे में चार नीम के पेड़ हैं, चाहिए तो ले जाइए। क्या हर मूर्ति पुरी से ही आनी चाहिए?

उन्होंने यह भी कहा कि बाजार में भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां आसानी से मिल जाती हैं और उन्हें घरों में पूजना आम है।

भाजपा और आरएसएस पर हमला बोला

भाजपा और आरएसएस पर हमला करते हुए ममता ने कहा कि जब वह पुरी जाती हैं तो सवाल उठाए जाते हैं, जबकि लाखों लोग हर साल ओडिशा के तीर्थों में जाते हैं। उन्होंने याद दिलाया कि बंगाल ने हमेशा ओडिशा की मदद की है, चाहे वह आलू संकट हो या चक्रवात के बाद बिजली बहाल करने का मामला। उन्होंने पूछा कि क्या अब श्रद्धा भी राजनीति की भेंट चढ़ेगी?

पुरी ही है जगन्नाथ का एकमात्र धाम – शंकराचार्य

ज्योतिर्मठ शंकराचार्य अभिमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने ममता के बयान को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि भगवान जगन्नाथ का एकमात्र धाम पुरी में है। कोई दूसरा स्थान धाम नहीं हो सकता। धर्म की मर्यादा और परंपरा से छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए।

हमारे श्रद्धालु सालभर ओडिशा आते हैं – ममता

ममता बनर्जी ने यह भी कहा कि बंगाल से लाखों श्रद्धालु सालभर ओडिशा के तीर्थ स्थलों में आते हैं और रथयात्रा व बाहुड़ा यात्रा जैसे आयोजनों में भाग लेते हैं। उन्होंने दोहराया कि हम दोनों राज्यों के बीच की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता को और मजबूत करना चाहते हैं। फिर इतना विरोध क्यों?

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