-
‘बालक दारु’ के प्रयोग के दावे को बताया असत्य
भुवनेश्वर। पश्चिम बंगाल के दीघा में हाल ही में उद्घाटित जगन्नाथ मंदिर को धाम कहे जाने को लेकर उठे विवाद के बीच ओडिशा के कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन ने सोमवार को स्थिति स्पष्ट किया कि यदि जरूरत हुई तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
उन्होंने कहा कि ओडिशा सरकार इस शब्द के उपयोग को रोकने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार से अनुरोध करेगी। साथ ही दीघा समुद्र तट को ‘महोदधि’ कहे जाने पर भी आपत्ति जताई गई है। यदि पश्चिम बंगाल सरकार इन पर कार्रवाई नहीं करती है, तो ओडिशा सरकार कानूनी रास्ता अपनाएगी।
उन्होंने स्पष्ट किया कि ‘धाम’ शब्द हिंदू परंपरा में केवल चार तीर्थों, बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम और पुरी, के लिए ही मान्य है। दीघा मंदिर को ‘जगन्नाथ धाम’ कहना आध्यात्मिक और धार्मिक रूप से अनुचित है और इससे श्रद्धालुओं में भ्रम फैलता है।
उन्होंने कहा कि पुरी श्रीमंदिर के नवकलेवर अनुष्ठान के दौरान बचे हुए अधिशेष दारु का उपयोग दीघा मंदिर में मूर्तियों के निर्माण के लिए नहीं किया गया है। उन्होंने इस दावे को ‘पूरी तरह झूठा और भ्रामक’ बताया।
मंत्री ने बताया कि उन्होंने श्रीमंदिर से जुड़े परंपरागत सेवायतों और मूर्तिकार महारणाओं से चर्चा की है। उनके अनुसार, दीघा में स्थापित मूर्तियों के लिए पुरी से किसी मान्य दारु-लकड़ी का चयन या प्रेषण नहीं किया गया था। हरिचंदन ने स्पष्ट किया कि ऐसी लकड़ी से 2.5 फीट की मूर्ति बनाना तकनीकी, आध्यात्मिक और पारंपरिक दृष्टिकोण से संभव ही नहीं है।
एसजेटीए लाएगा एसओपी
श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) के प्रमुख प्रशासक ने इस मामले की जांच कर रिपोर्ट दी है, जिसमें कुछ अनुशंसाएं भी हैं। कानून मंत्री ने बताया कि इन सिफारिशों को मुख्यमंत्री को अवगत कराया जाएगा और आगे की कार्रवाई की जाएगी। साथ ही उन्होंने बताया कि एसजेटीए शीघ्र ही एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करेगा, जो देशभर में स्थित जगन्नाथ मंदिरों में एकरूपता के लिए लागू की जाएगी।
गलत बयानों से भक्तों में मचा भ्रम
हरिचंदन ने कहा कि रामकृष्ण दास महापात्र की पूर्व टिप्पणी से हजारों श्रद्धालुओं में भ्रम और मानसिक पीड़ा उत्पन्न हुई। उनकी भ्रामक टिप्पणी की समीक्षा की जा रही है। यह एक गंभीर मामला है और हम उचित कदम उठाने पर विचार कर रहे हैं।
जगन्नाथ परंपरा की रक्षा के लिए प्रतिबद्धता
मंत्री ने दोहराया कि पुरी और श्रीजगन्नाथ मंदिर की विरासत ओडिशा की आस्था ही नहीं, उसकी भावनात्मक और सांस्कृतिक पहचान का आधार है। पवित्र शब्दों का गलत प्रयोग, मूर्तियों के निर्माण को लेकर झूठे दावे और अन्य स्थानों को ‘धाम’ के रूप में प्रस्तुत करना न केवल अपमानजनक है, बल्कि विभाजनकारी और खतरनाक भी हो सकता है।