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मयूरभंज का अमरदा हवाई पट्टी फिर सुर्खियों में

  • पहलगाम हमले के बाद फिर उठी पुनर्जीवित करने की मांग

  • द्वितीय विश्व युद्ध में इस हवाई अड्डे ने विमानों की उड़ान स्थल के रूप में निभाई थी अहम भूमिका

भुवनेश्वर। ओडिशा के मयूरभंज जिले में स्थित ऐतिहासिक अमरदा हवाई पट्टी एक बार फिर सुर्खियों में है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश रॉयल एयरफोर्स द्वारा विकसित इस हवाई अड्डे ने कभी सैनिकों को प्रशिक्षण देने, हथियार और गोला-बारूद के भंडारण तथा युद्ध अभियानों के लिए विमानों की उड़ान स्थल के रूप में अहम भूमिका निभाई थी। अब पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले और भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच, इस हवाई अड्डे के पुनरुद्धार की मांग जोर पकड़ रही है।

भूल चुकी है सरकार, पर खामोश नहीं हैं बंकर

अमरदा हवाई पट्टी परिसर में आज भी लगभग 300 बंकर मौजूद हैं जो उस काल में बनाए गए थे। अब ये बंकर जर्जर हालत में हैं और अनदेखी का शिकार हो चुके हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि इन बंकरों और अन्य संरचनाओं की जांच की जानी चाहिए, ताकि यह पता चल सके कि इनके भीतर क्या छिपा है। स्थानीयों की मांग है कि सरकार जल्द से जल्द इस विरासत को संरक्षित कर इसके सामरिक उपयोग की संभावनाओं पर विचार करे।

एशिया के सबसे बड़े हवाई अड्डों में से एक

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, अमरदा हवाई पट्टी एक समय एशिया के सबसे बड़े हवाई अड्डों में से एक हुआ करती थी। यह करीब 800 एकड़ में फैली हुई थी और इसमें कथित तौर पर 22 रनवे थे। युद्धकाल के दौरान ब्रिटिश सेनाएं यहां से विमानों को दुश्मन के ठिकानों पर हमले के लिए रवाना करती थीं।

कहानी जबरन विस्थापन की भी

एक बुजुर्ग स्थानीय निवासी ने बताया कि 1942 के अंत और 1943 की शुरुआत में ब्रिटिश अचानक पहुंचे और बिना किसी पूर्व सूचना के हवाई पट्टी का निर्माण शुरू कर दिया। यह ज़मीन मूल रूप से स्थानीय ग्रामीणों की थी लेकिन उन्हें जबरन हटाकर यह निर्माण किया गया। उन्होंने आगे बताया कि इस शांत इलाके को सैनिकों के प्रशिक्षण के लिए चुना गया था और सुरक्षा के लिए बंकर बनाए गए थे। कई युद्ध विमान यहीं से उड़ान भरते थे।

बढ़ते तनाव के बीच सामरिक उपयोग की वकालत

स्थानीय लोग मानते हैं कि वर्तमान हालात में इस हवाई अड्डे को पुनः चालू करना देश की सुरक्षा के दृष्टिकोण से फायदेमंद हो सकता है। खासकर पूर्वी तट पर ओडिशा की रणनीतिक स्थिति इसे और अधिक महत्व देती है।

एक स्थानीय निवासी ने कहा कि पहलगाम आतंकी हमले और भारत-पाकिस्तान के बीच जारी तनाव को देखते हुए यह जरूरी हो गया है कि इस हवाई पट्टी को सेना के प्रशिक्षण और आवश्यक समय में रणनीतिक प्रयोजन के लिए तैयार किया जाए।

लोककथाओं में जीवित इतिहास

एक अन्य ग्रामीण ने बताया कि ब्रिटिश सेना ने कई गुप्त बैरके और सुरंगें बनाई थीं। कुछ युद्ध विमान आज भी परित्यक्त पड़े हैं। आज़ादी के बाद ब्रिटिश सेना ने बहुत सारा साजो-सामान यहीं छोड़ दिया। कई रहस्यमयी रास्तों को उन्होंने सील कर दिया था। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, अब भी यहां भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद दबा हुआ हो सकता है। हम सरकार से मांग कर चुके हैं कि इन सभी संरचनाओं की उचित जांच और सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

भविष्य की सुरक्षा का केंद्र बन सकता है अमरदा

यह मांग सिर्फ इतिहास को संरक्षित करने तक सीमित नहीं है, बल्कि वर्तमान समय में इसकी सामरिक उपयोगिता को लेकर भी गंभीर चिंताएं सामने आ रही हैं। क्षेत्रीय लोगों की भावना है कि यदि सरकार इसे बहाल करती है, तो यह न केवल ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करेगा, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी एक सुदृढ़ आधार तैयार करेगा।

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