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महंगे दवाएं लिखने पर डॉक्टर के खिलाफ नहीं चलेगा आपराधिक मामला

  •  ओडिशा हाईकोर्ट ने डॉक्टरों की पेशेवर स्वायत्तता को महत्वपूर्ण ठहराते हुए अहम फैसला सुनाया

कटक। ओडिशा हाईकोर्ट ने डॉक्टरों की पेशेवर स्वायत्तता को महत्वपूर्ण ठहराते हुए एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि मरीजों के हित में महंगी दवाएं लिखना आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता, जब तक वे दवाएं गुणवत्तापूर्ण, सुरक्षित और सरकारी रूप से प्रतिबंधित न हों। यह फैसला कटक स्थित एससीबी मेडिकल कॉलेज के पूर्व हेमेटोलॉजिस्ट डॉ. रवीन्द्र कुमार जेना के खिलाफ चल रहे मामले को खारिज करते हुए दिया गया, जिन पर सस्ती दवाओं के बजाय महंगी कीमोथेरेपी दवाएं लिखने का आरोप था।
न्यायालय ने कहा कि डॉक्टरों का दवा चयन करना उनके पेशेवर विवेक और विशेषज्ञता का विषय है और राज्य की ओर से संचालित ओडिशा स्टेट ट्रीटमेंट फंड की गाइडलाइनों में भी महंगी दवाओं पर कोई रोक नहीं है, यदि वे मरीज के उपचार के लिए अधिक प्रभावी हों। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि मरीजों को दवाएं स्वेच्छा से दी गई थीं और उनके साथ किसी प्रकार की जबरदस्ती नहीं की गई थी।
ओडिशा हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति आदित्य कुमार महापात्र ने 16 अप्रैल को दिए अपने फैसले में कहा कि जब तक कोई दवा खतरनाक, घटिया या सरकार द्वारा प्रतिबंधित घोषित नहीं की जाती, तब तक महंगी दवा लिखने के लिए डॉक्टर पर आपराधिक मामला नहीं बनता। उन्होंने स्पष्ट किया कि इलाज के लिए किस दवा का चुनाव करना है, यह पूरी तरह डॉक्टर की विशेषज्ञता और अधिकार क्षेत्र का विषय है।
2017 में ओडिशा विजिलेंस विभाग ने डॉ जेना के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। आरोप था कि 2013 से 2017 के बीच उन्होंने ओडिशा स्टेट ट्रीटमेंट फंड की गाइडलाइन का उल्लंघन करते हुए बीपीएल मरीजों को सस्ती दवाओं की जगह महंगी दवाएं जैसे एटगैम और हैमसिल लिखीं। इससे राज्य को वित्तीय नुकसान हुआ और गरीब मरीजों पर अतिरिक्त बोझ पड़ा।
कोर्ट ने जांच प्रक्रिया को भी दोषपूर्ण बताया
कोर्ट ने जांच प्रक्रिया को भी दोषपूर्ण बताया। जांच समिति में रक्त कैंसर के विशेषज्ञ शामिल नहीं थे और डॉ जेना को न तो नोटिस दी गई, न ही पक्ष रखने का अवसर। इससे पूरी जांच “न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ” करार दी गई।
चिकित्सकों की स्वतंत्रता की सुरक्षा
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि डॉक्टरों द्वारा दवा कंपनियों के सेमिनार या कॉन्फ्रेंस में भाग लेना अपराध नहीं माना जा सकता। ऐसा करना तो देश के हर डॉक्टर को आपराधिक दायरे में ला देगा।
मामले को खारिज कर दिया
अदालत ने मामले को “कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग” करार देते हुए खारिज कर दिया और कहा कि चिकित्सकीय निर्णय को आपराधिक रंग देना न्यायसंगत नहीं है, खासकर जब उद्देश्य मरीज का जीवन बचाना हो।
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