-
स्टेनोग्राफर आत्महत्या मामले में हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत खारिज की
-
उनके निजी सहायक प्रकाश चंद्र स्वाईं और डाटा एंट्री ऑपरेटर वी. बेनु की भी अग्रिम जमानत याचिकाएं खारिज
भुवनेश्वर। ओडिशा हाईकोर्ट ने मालकानगिरि के पूर्व जिलाधिकारी एवं आईएएस अधिकारी मनीष अग्रवाल की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया है। यह मामला उनके निजी सहायक (स्टेनोग्राफर) देबा नारायण पंडा की संदिग्ध आत्महत्या से जुड़ा है।
हाईकोर्ट के इस फैसले से मनीष अग्रवाल की मुश्किलें और बढ़ गई हैं, क्योंकि अब उनकी गिरफ्तारी की संभावना प्रबल हो गई है।
केवल मनीष अग्रवाल ही नहीं, बल्कि उनके निजी सहायक प्रकाश चंद्र स्वाईं और डाटा एंट्री ऑपरेटर वी. बेनु की भी अग्रिम जमानत याचिकाएं खारिज कर दी गई हैं।
वहीं, इस मामले के एक अन्य आरोपी पूर्व स्टेनोग्राफर भगवान पाणिग्राही ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए कोर्ट से राहत की मांग की है। उन्होंने कैंसर होने और पत्नी की मानसिक स्थिति का उल्लेख किया है। हाईकोर्ट ने उन्हें तीन सप्ताह के भीतर निचली अदालत में आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया है और कहा है कि संतोषजनक शर्तों पर उन्हें अग्रिम जमानत दी जा सकती है।
यह है पूरा मामला
देबा नारायण पंडा 27 मई 2019 को लापता हो गए थे। बाद में उनकी लाश सत्तीगुड़ा डैम के पास मिली थी। शुरुआत में इस मामले में मनीष अग्रवाल सहित चार लोगों पर हत्या का आरोप लगाया गया था, जो पंडा के परिजनों के आरोपों पर आधारित था। हालांकि, अब हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि मामला अब आत्महत्या के लिए उकसाने की धाराओं के तहत चलाया जा रहा है।
जांच में प्रगति
यह मामला भारतीय प्रशासनिक तंत्र में जवाबदेही और न्यायिक प्रक्रिया की जटिलताओं को उजागर करता है, खासकर जब सवाल जनसेवकों की भूमिका पर उठते हैं।