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उंगली पकड़कर दुनिया समझने की जगह पापा की अर्थी संग चला शमशान
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खेलने की उम्र में बेटे तनुज ने पापा प्रशांत को दी मुखाग्नि…
बालेश्वर। जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से खेलते हैं, मां की गोद में सुकून पाते हैं और पिता की उंगली पकड़कर दुनिया को समझते हैं, उसी उम्र में 9 वर्षीय तनुज कुमार सतपथी ने अपने पिता की चिता को अग्नि दी, जिनकी आंखों के सामने ही आतंकी हमले में जान चली गई।
बालेश्वर जिले के रेमुना ब्लॉक के ईशानी गांव में जब तनुज ने कांपते हाथों से अपने पिता प्रशांत सतपथी को मुखाग्नि दी, तो पूरा गांव आंसुओं में डूब गया। कहीं कोई चीख रहा था, कहीं किसी की रुलाई थम नहीं रही थी। और बीच में खड़ा था एक नन्हा बालक— शब्दहीन, डरा-सहमा, परंतु भीतर से मजबूत।
उसकी मां प्रियदर्शिनी बार-बार बेहोश हो रही थीं, लेकिन तनुज, जिसने पिता को आंखों के सामने गिरते देखा, अपनी मासूम आंखों में आंसुओं के समंदर छिपाए, अपने बड़ों के इशारों पर चुपचाप अंतिम संस्कार की रस्में निभा रहा था। मुखाग्नि के दर्द से भी गहरा था उसके आंखों में छुपा आंसुओं का समंदर।
जब वह पिता की अर्थी के साथ लाई फेंकते हुए श्मशान तक पहुंचा, तो रास्ते के दोनों ओर खड़े लोगों की आंखें छलक पड़ीं। कोई उसकी हिम्मत को देख सिहर उठा, तो कोई सोच में पड़ गया कि पिता के कंधे पर बैठने की उम्र में तनुज पिता की अर्थी के साथ आगे बढ़ रहा है।
‘जय हिंद’ और ‘प्रशांत सतपथी अमर रहें’ के नारों के बीच अंतिम विदाई
इस हृदय विदारक दृश्य के साक्षी बने मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी, परिवहन मंत्री विभूति भूषण जेना, और बालेश्वर सांसद प्रताप चंद्र षाड़ंगी, जो स्वयं तनुज के साथ एक किलोमीटर पैदल चलकर श्मशान तक पहुंचे। जनसैलाब उमड़ पड़ा था, जो नन्हे तनुज की मजबूरी को देख भावविभोर हो उठा।
पिता की मौत देखी, अब बचपन भी खो गया
प्रशांत सतपथी, जो सिपेटसंस्थान में लेखा सहायक थे, महीनों से अपनी पत्नी और बेटे के साथ कश्मीर घूमने का सपना देख रहे थे। उसी सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने एलटीसी पर छुट्टी लेकर पहलगाम की यात्रा की थी। पर किसे पता था कि वही यात्रा उनकी आखिरी यात्रा बन जाएगी।