Home / Odisha / शहरीकरण के नाम पर जंगलों की बलि नहीं दी जा सकती – ओडिशा हाईकोर्ट

शहरीकरण के नाम पर जंगलों की बलि नहीं दी जा सकती – ओडिशा हाईकोर्ट

  • अदालत के फैसले से बीडीए को झटका

  • गांव के जंगल से मेटल सड़क बनाने की अनुमति नहीं

  • हरित क्षेत्र को बचाने पर दिया जोर

भुवनेश्वर। ओडिशा हाईकोर्ट ने गांव के जंगल (छोटा जंगल) से होकर मेटल सड़क बनाने की अनुमति नहीं दी है। भुवनेश्वर विकास प्राधिकरण (बीडीए) को झटका देते हुए कोर्ट ने उसके प्रस्ताव को खारिज करने के फैसले को बरकरार रखा। कोर्ट ने साफ कहा कि हरित क्षेत्र की रक्षा जरूरी है और शहरीकरण के नाम पर जंगलों की बलि नहीं दी जा सकती है।

मुख्य न्यायाधीश हरीश टंडन और न्यायमूर्ति बीपी रथ की खंडपीठ ने बीडीए के वर्ष 2023 के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि तेजी से घटते हरित क्षेत्रों की रक्षा करना बेहद जरूरी है, ताकि शहरीकरण के दुष्प्रभावों से पर्यावरण को बचाया जा सके। यह फैसला 9 अप्रैल को सुनाया गया था, जिसे 16 अप्रैल को सार्वजनिक किया गया और अब मीडिया तक पहुंची है।

क्या है मामला?

जानकारी के अनुसार, भुवनेश्वर तहसील के एक ग्रामीण निवासी ब्रह्मानंद मंगराज ने मार्च 2024 में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बीडीए के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें एक कच्चे रास्ते को मुख्य सड़क से जोड़ने के लिए मेटलिक सड़क बनाने की अनुमति देने से इनकार किया गया था।

ग्रामीणों का तर्क था कि यह रास्ता उनके दैनिक आवागमन के लिए आवश्यक है और इससे किसी पेड़ को नुकसान नहीं होगा। उन्होंने कोर्ट में सबूत के तौर पर कुछ तस्वीरें भी पेश की थीं, जिनमें दिखाया गया था कि निर्माण स्थल पर हरियाली बहुत कम है।

कोर्ट ने जताई चिंता: खत्म हो रहे हैं गांवों के जंगल

कोर्ट ने ग्रामीणों की जरूरतों को समझते हुए भी जंगल के अंधाधुंध कटाव पर गंभीर चिंता जताई। खंडपीठ ने कहा कि यह अत्यंत दुखद स्थिति है कि जिस क्षेत्र को गांव के जंगल के रूप में दर्ज किया गया है, वह तेजी से घटता जा रहा है और शहरीकरण की मार झेल रहा है। न्यायाधीशों ने कहा कि गांवों के जंगल जैव विविधता की रक्षा और जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकार और उसकी संस्थाओं को इस दिशा में सख्त निर्णय लेने चाहिए।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत तस्वीरों का हवाला देते हुए कहा कि फोटो यह दर्शाने के लिए दी गई थीं कि वहां पेड़ नहीं हैं, लेकिन उन्हीं से यह स्पष्ट हो गया कि जंगल समय के साथ कैसे कम होता गया। यह ‘धीरे-धीरे जंगल के रूपांतरण’ का स्पष्ट संकेत है।

जलवायु संकट को बढ़ाएगा वनों का विनाश

कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर गांवों के जंगलों को बचाने के लिए समय पर ठोस कदम नहीं उठाए गए तो यह जलवायु संकट को और गहरा कर देगा। उन्होंने वैश्विक स्तर पर जैविक संतुलन को लेकर बढ़ती चिंता का हवाला देते हुए कहा कि स्थानीय स्तर पर ऐसे फैसले न केवल कानूनी बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी बेहद जरूरी हैं।

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