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नवीन पटनायक नौवीं बार बने बीजद के अध्यक्ष

  • पार्टी के भीतर एक बार फिर दिखा घमासान

  • घोषणा के समय नहीं दिखे दिग्गज नेता, असंतोष की लहर

भुवनेश्वर। ओडिशा की राजनीति में शनिवार को एक और ऐतिहासिक दिन आया जब नवीन पटनायक ने लगातार नौवीं बार बीजू जनता दल (बीजद) के अध्यक्ष के रूप में चुनावी मैदान में कदम रखा। लेकिन यह ऐतिहासिक पल किसी जश्न से ज्यादा पार्टी के भीतर के अंदरूनी संकट और असंतोष का प्रतीक बनता दिखाई दे रहा था। पटनायक के निर्विरोध अध्यक्ष चुने जाने की घोषणा के दौरान मंच पर कई प्रमुख नेताओं की अनुपस्थिति ने सवालों के घेरे में बीजद की आंतरिक राजनीति को ला खड़ा किया है।
नवीन पटनायक के चुनाव के समय जिन प्रमुख नेताओं की अनुपस्थिति ने सबसे ज्यादा सुर्खियाँ बटोरीं, उनमें रणेन्द्र प्रताप स्वाईं, प्रफुल्ल मल्लिक, शशिभूषण बेहरा, भूपिंदर सिंह, निरंजन बिशी, सनातन महाकुड़, सुलता देव और सस्मित पात्र जैसे वरिष्ठ नेता शामिल थे। चर्चा है कि इन नेताओं का इस महत्वपूर्ण अवसर पर मंच से नदारद होना केवल संयोग नहीं हो सकता। यह बीजद के भीतर गहरे असंतोष और आंतरिक गुटबाजी का इशारा है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह संकेत हैं कि पार्टी में सत्ता का संतुलन बदलने की प्रक्रिया जारी है, और कई नेता खुद को हाशिए पर महसूस कर रहे हैं।
वीके पांडियन असंतोष के प्रमुख कारण
पार्टी के अंदर वीके पांडियन के बढ़ते प्रभाव ने असंतोष को और बढ़ा दिया है। पटनायक के करीबी नौकरशाह से नेता बने पांडियन का लगातार समर्थन और पार्टी के भीतर बढ़ती ताकत कई पुराने नेताओं के लिए नाकाबिले सहन बन गई है। यह स्थिति पार्टी के भीतर एक स्पष्ट विभाजन का संकेत देती है, जहां कुछ नेता पांडियन के नए और डिजिटल तरीके को पसंद कर रहे हैं, तो वहीं पुराने नेता इस बदलाव से असहज हैं।
क्या पार्टी टूटने से बच पाएगी?
बीजद की हालत 2024 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत और बीजद की करारी हार के बाद खस्ताहाल हो चुकी है। पार्टी के भीतर गुटबाजी और बिखराव ने उसकी राजनीतिक ताकत को कमजोर कर दिया है। अब पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है पुनर्गठन और आंतरिक एकता की बहाली। बीजद को फिर से उबारने के लिए पटनायक को कड़ी मेहनत करनी होगी और सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे पार्टी के भीतर बढ़ते असंतोष को कैसे संभालेंगे।
15 जिला अध्यक्षों की नियुक्ति नहीं
पार्टी के भीतर की असंतोष की लहर अब 15 जिलों में ज़िला अध्यक्षों की नियुक्ति न होने के कारण और भी गहरा गई है। इस असहमति के चलते पार्टी के कार्यकर्ताओं में भ्रम और गुस्सा बढ़ता जा रहा है। अगर पटनायक ने इस समस्या का समाधान जल्दी नहीं किया, तो बीजद की भविष्य की राजनीति पर गंभीर संकट मंडरा सकता है।
नवीन पटनायक के सामने बड़ी चुनौतियां
बीजद का भविष्य अब केवल एक व्यक्ति पर निर्भर है, वह हैं नवीन पटनायक। सवाल यह है कि क्या वह इस बार भी पार्टी को उबार पाएंगे या बीजद के भीतर फैली असंतोष की आग में यह पार्टी जलकर राख हो जाएगी। पार्टी में अंदरूनी विवाद और विभाजन के अलावा, पटनायक को अब इस बात का भी सामना करना होगा कि पार्टी के भीतर किसे प्रमुख भूमिका मिलेगी, क्या वे युवाओं को मौका देंगे या पुराने वरिष्ठ नेताओं को वापस लाएंगे?

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