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‘विकसित गांव, विकसित ओडिशा’ योजना पर राजनीति गरमाई

  • बीजद और कांग्रेस ने नए दिशा-निर्देशों पर जताई आपत्ति

  • कहा- बदलावों से पंचायतों की स्वायत्तता हो गई है कम

  •  निधियों में भी की गई है कटौती

भुवनेश्वर। ‘विकसित गांव, विकसित ओडिशा’ योजना के नए दिशा-निर्देशों को लेकर बीजद और कांग्रेस ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं, जबकि सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए योजना की पारदर्शिता और संतुलन की बात कही है।

बीजू जनता दल (बीजद) ने ‘विकसित गांव, विकसित ओडिशा’ योजना के नए दिशा-निर्देशों पर कड़ी आपत्ति जताई है। पार्टी ने आरोप लगाया है कि इन बदलावों से पंचायतों की स्वायत्तता कम हो गई है और निधियों में भी कटौती की गई है।

बीजद विधायक अरुण साहू ने कहा कि पहले ग्रामीण परियोजनाएं ग्राम सभा से पंचायत समिति और फिर जिला परिषद तक जाती थीं। अब नए दिशा-निर्देशों के तहत ग्राम सभा में प्रस्तावों को पंचायत समिति की मंजूरी की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी बताया कि पहले ‘आम ओडिशा, नवीन ओडिशा’ योजना के तहत प्रत्येक पंचायत को 50 लाख रुपये तक की राशि मिलती थी, जो अब घटकर 7-8 लाख रह गई है।

कांग्रेस नेता तारा प्रसाद वाहिनीपति ने भी बीजद के रुख का समर्थन किया। उन्होंने आरोप लगाया कि वर्तमान सरकार ने ‘आम ओडिशा, नवीन ओडिशा’ योजना का नाम बदलकर ‘विकसित गांव, विकसित ओडिशा’ कर दिया है, लेकिन बजट में कोई वृद्धि नहीं की है। उन्होंने यह भी कहा कि नए दिशा-निर्देशों में 40% परियोजनाएं स्थानीय विधायकों और जिला कलेक्टरों द्वारा सुझाई जा सकती हैं, जिससे भाजपा कार्यकर्ताओं और दलालों को लाभ पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।

पंचायती राज मंत्री ने खारिज किया आरोप

पंचायती राज मंत्री रवी नारायण नायक ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि पंचायत प्रणाली सुचारू रूप से काम कर रही है। उन्होंने बताया कि सभी परियोजनाएं 2002 के ओडिशा पब्लिक वर्क्स (ओपीडब्ल्यू) कोड के तहत स्वीकृत होती हैं, जिसमें ग्राम सभा की मंजूरी और अंततः जिला कलेक्टर की स्वीकृति आवश्यक है। नायक ने यह भी कहा कि वर्तमान प्रणाली में ग्राम सभा की भूमिका को 60% तक बढ़ाया गया है, जबकि शेष 40% परियोजनाएं विधायकों, सांसदों, जिला कलेक्टरों और विशेषज्ञों की सिफारिशों पर आधारित होती हैं, जिससे एक संतुलित और विकासोन्मुखी दृष्टिकोण सुनिश्चित होता है।

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