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पश्चिम की नकल में हमने गंवा दिया समय : चक्रधर त्रिपाठी

  • कहा-अब भारतीय लोकाचार पर आधारित शोध को अपनाने का समय

  • भारतीय शिक्षण मंडल के सहयोग से सीयूओ द्वारा शोध पद्धति कार्यशाला आयोजित

भुवनेश्वर। ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर चक्रधर त्रिपाठी ने भारतीय शिक्षा और अनुसंधान की वर्तमान स्थिति पर गहरा दुख और चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यूरोपीय आक्रमणों और औपनिवेशिक नीतियों ने भारत को उसकी मूल ज्ञान परंपरा से अलग कर दिया।

एक कार्यशाला में अपने अध्यक्षीय भाषण में कुलपति प्रोफेसर चक्रधर त्रिपाठी ने जोर देकर कहा कि प्राचीन दर्शन से पैदा हुई भारतीय शिक्षा प्रणाली सभी पहलुओं में यूरोप की तुलना में कहीं अधिक महान और समाज निर्माण से जुड़ी हुई थी, फिर भी हमने पश्चिम की नकल करने में बहुत समय गंवा दिया। उन्होंने नई पीढ़ी के शोध विद्वानों और संकाय सदस्यों से एक बेहतर व्यक्ति, एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए भारतीय लोकाचार में निहित शोध में संलग्न होने का आग्रह किया।

दो दिवसीय शोध पद्धति कार्यशाला का आयोजन

भारतीय शिक्षण मंडल, ओडिशा पश्चिम प्रांत के सहयोग से ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय-स्वयं ने दो दिवसीय शोध पद्धति कार्यशाला का आयोजन किया। इसका उद्घाटन 11 अप्रैल को हुआ। उद्घाटन मंच पर सीयूओ के कुलपति प्रोफेसर चक्रधर त्रिपाठी, आरएम कॉलेज, हैदराबाद के पूर्व प्राचार्य और निदेशक-अनुसंधान प्रोफेसर डीके लालदास, ओडिशा-पश्चिम प्रांत के प्रांत प्रचारक शंकर पंडा और बीसीएनआर और जूलॉजी विभाग की एमओओसी समन्वयक और प्रमुख प्रभारी डॉ काकोली बनर्जी की मौजूदगी थी। कार्यक्रम की शुरुआत गणमान्य व्यक्तियों द्वारा वेद मंत्र के साथ दीप प्रज्ज्वलन और विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा सरस्वती बंदना के साथ हुई। कार्यक्रम की संयोजक डॉ काकोली बनर्जी ने स्वागत भाषण दिया। डॉ बनर्जी ने अपने भाषण में मंच पर उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों तथा कार्यशाला के दर्शकों और प्रतिभागियों का स्वागत किया।

शोध कौशल को बढ़ाना है – डॉ बनर्जी

डॉ बनर्जी ने बताया कि कार्यशाला का उद्देश्य छात्रों और विद्वानों के शोध कौशल को बढ़ाना है, क्योंकि अनुसंधान विश्वविद्यालय की प्रगति का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पैरामीटर है। उन्होंने छात्रों को सीखने के वैकल्पिक मार्ग के रूप में एओओसी पाठ्यक्रम प्रदान करने में स्वयं की भूमिका पर भी जोर दिया।

शोध एक सामाजिक कार्य – शंकर पंडा

शंकर पंडा ने शोध को एक सामाजिक कार्य बताया। उन्होंने विश्लेषण किया कि स्वतंत्रता पूर्व से लेकर वर्तमान युग तक सामाजिक कार्य की प्रकृति कैसे बदल गई है। आजकल अगर कोई सामाजिक कार्यकर्ता बनता है, तो हर कोई उस पर राजनीति में शामिल होने और चुनाव लड़ने की महत्वाकांक्षा रखने का संदेह करता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि कुलपति प्रो चक्रधर त्रिपाठी के गतिशील नेतृत्व में सीयूओ छात्रों और विद्वानों में सेवा की मानसिकता पैदा करेगा।

भारत अनुसंधान में बहुत पीछे

प्रो डीके लालदास ने इस बात पर जोर दिया कि वर्तमान संदर्भ में भारत दुनिया के बाकी देशों की तुलना में अनुसंधान में बहुत पीछे है। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि ज्ञान और प्रशिक्षण की कमी के कारण भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में शोध की गुणवत्ता बहुत खराब है। उन्होंने कहा कि कुछ प्रतिष्ठित संस्थानों के शोध पत्रों को अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग एजेंसियों ने केवल ‘निबंध’ कहकर खारिज कर दिया था। उन्होंने शोध पद्धति कार्यशाला आयोजित करने के लिए सीयूओ और इसके कुलपति को धन्यवाद दिया।

भारतीय शिक्षण मंडल के उमेश सिंह सम्मानित

इस अवसर पर भारतीय शिक्षण मंडल के उमेश सिंह को सम्मानित किया गया। समाजशास्त्र विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ नुपुर पटनायक ने औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन किया और उद्घाटन सत्र का संचालन हिंदी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ मनोज कुमार सिंह ने किया।

इसके बाद तकनीकी सत्रों में प्रोफेसर डीके लालदास, प्रोफेसर उमा शंकर मिश्र, डीन, स्कूल ऑफ कॉमर्स एंड मैनेजमेंट स्टडीज, प्रमुख, बिजनेस मैनेजमेंट विभाग, राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय, डॉ आमोद गुर्जर, असिस्टेंट प्रोफेसर, मातृ सेवा संघ इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल वर्क, बजाज नगर, नागपुर, प्रोफेसर भरत कुमार पंडा, प्रोफेसर और एचओडी, शिक्षा विभाग, सीयूओ और डॉ प्रदीप कुमार, असिस्टेंट प्रोफेसर, डीएसटीएटी, सीयूओ ने व्याख्यान दिए।

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