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ओडिशा हाईकोर्ट ने की टिप्पणी
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मानसिक उत्पीड़न का एक गंभीर रूप भी बताया
कटक। ओडिशा हाईकोर्ट ने कहा है कि पत्नी द्वारा बार-बार आत्महत्या की धमकी देना और हिंसक व्यवहार केवल दांपत्य जीवन में दुर्व्यवहार नहीं है, बल्कि यह पति पर भावनात्मक ब्लैकमेल और मानसिक उत्पीड़न का एक गंभीर रूप है।
सूत्रों के अनुसार, 2003 में विवाह करने वाले एक व्यक्ति ने 2009 में अपनी पत्नी के खिलाफ क्रूरता के आधार पर तलाक की अर्जी दी थी। पति ने अदालत में बताया कि उसकी पत्नी का व्यवहार इस हद तक प्रताड़ित करने वाला था कि उसके लिए विवाह जारी रखना असंभव हो गया था।
उसने अपने आरोपों में कहा कि पत्नी बार-बार झगड़े करती थी, वित्तीय मामलों पर नियंत्रण रखती थी, आत्महत्या की धमकी देती थी और उसके बुजुर्ग माता-पिता को जबरन घर से निकाल दिया था। इन आधारों पर, कटक की पारिवारिक अदालत ने विवाह विच्छेद को मंजूरी दी, लेकिन पति को 63 लाख रुपये स्थायी गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया।
बाद में महिला ने पारिवारिक अदालत के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी और वैवाहिक जीवन की पुनर्स्थापना की मांग की।
इस पर न्यायमूर्ति बीपी राउतराय और चित्तंजन दाश की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि बार-बार आत्महत्या करने की धमकी देना, या उससे भी आगे बढ़कर, जीवनसाथी और उसके परिवार को नुकसान पहुंचाने की धमकी देना, केवल भावनात्मक विस्फोट नहीं है, बल्कि यह भावनात्मक कमजोरी का गंभीर दुरुपयोग और मनोवैज्ञानिक युद्ध का स्पष्ट रूप है।
अदालत ने आगे कहा कि ऐसा व्यवहार केवल वैवाहिक जीवन तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पीड़ित के मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक स्थिरता पर गहरा आघात पहुंचाता है, जिससे स्थायी मानसिक तनाव उत्पन्न होता है।
इस फैसले के बाद हाईकोर्ट ने पारिवारिक अदालत के विवाह विच्छेद के आदेश को बरकरार रखा और पत्नी की याचिका को खारिज कर दिया।
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