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कुल पद में से 60% से अधिक पद खाली
भुवनेश्वर। ओडिशा की यूनिवर्सिटियों में शिक्षकों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है, जहां 60% से अधिक फैकल्टी पद खाली पड़े हैं। इस गंभीर मुद्दे को लेकर राज्य विधानसभा में भी चिंता जताई गई है, क्योंकि पर्याप्त स्टाफ के बिना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना एक बड़ी चुनौती बन गया है। बीते पांच वर्षों से जारी कानूनी विवादों के कारण भर्ती प्रक्रिया ठप पड़ी है।
खबरों के अनुसार, राज्य की 17 यूनिवर्सिटियों में कुल 2,027 स्वीकृत शिक्षकीय पदों में से सिर्फ 674 पद भरे गए हैं, जबकि 1,353 पद खाली पड़े हैं। गैर-शिक्षकीय पदों में भी कमी देखने को मिल रही है, जहां 2,879 स्वीकृत पदों में से केवल 798 पर नियुक्ति हुई है।
इसके अलावा, 17 में से 9 विश्वविद्यालयों में स्थायी कुलपति (वीसी) का भी अभाव है।
पहले नियुक्ति प्रक्रिया ओडिशा लोक सेवा आयोग (ओपीएससी) के माध्यम से की जाती थी, लेकिन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशानिर्देशों के अनुपालन को लेकर कानूनी अड़चनों के कारण यह प्रक्रिया रुक गई है और अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार किया जा रहा है।
उच्च शिक्षा विभाग के अधीन सरकारी डिग्री कॉलेजों की स्थिति भी गंभीर है। कुल 2,407 स्वीकृत शिक्षकीय पदों में से 436 और 1,711 गैर-शिक्षकीय पदों में से 731 पद खाली हैं।
गुणवत्ता शिक्षा और शोध कार्यों पर असर
शैक्षणिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह संकट शोध कार्यों और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बाधित कर सकता है। इससे राज्य के विश्वविद्यालयों की राष्ट्रीय और संस्थागत रैंकिंग प्रभावित हो सकती है। खासकर, पिछड़े जिलों में स्थापित नए शिक्षण संस्थान इस समस्या से अधिक प्रभावित हैं, जिससे ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो (जीईआर) और छात्र प्रदर्शन पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है।
एफएम यूनिवर्सिटी के कुलपति संतोष त्रिपाठी ने मीडिया को दिये गये बयान में कहा है कि साल 2020 से फैकल्टी की नियुक्ति रुकी हुई है। हमें हमेशा नैक और एनआईआरएफ अधिकारियों को जवाब देना पड़ता है। फैकल्टी की कमी के कारण राज्य के विश्वविद्यालयों की रैंकिंग भी प्रभावित हो रही है। राज्य सरकार से उम्मीद की जा रही है कि वह शीघ्र इस समस्या का समाधान निकालकर रिक्त पदों को भरने की दिशा में कदम उठाएगी।
खबरों के अनुसार, राज्य की 17 यूनिवर्सिटियों में कुल 2,027 स्वीकृत शिक्षकीय पदों में से सिर्फ 674 पद भरे गए हैं, जबकि 1,353 पद खाली पड़े हैं। गैर-शिक्षकीय पदों में भी कमी देखने को मिल रही है, जहां 2,879 स्वीकृत पदों में से केवल 798 पर नियुक्ति हुई है।
इसके अलावा, 17 में से 9 विश्वविद्यालयों में स्थायी कुलपति (वीसी) का भी अभाव है।
पहले नियुक्ति प्रक्रिया ओडिशा लोक सेवा आयोग (ओपीएससी) के माध्यम से की जाती थी, लेकिन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशानिर्देशों के अनुपालन को लेकर कानूनी अड़चनों के कारण यह प्रक्रिया रुक गई है और अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार किया जा रहा है।
उच्च शिक्षा विभाग के अधीन सरकारी डिग्री कॉलेजों की स्थिति भी गंभीर है। कुल 2,407 स्वीकृत शिक्षकीय पदों में से 436 और 1,711 गैर-शिक्षकीय पदों में से 731 पद खाली हैं।
गुणवत्ता शिक्षा और शोध कार्यों पर असर
शैक्षणिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह संकट शोध कार्यों और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बाधित कर सकता है। इससे राज्य के विश्वविद्यालयों की राष्ट्रीय और संस्थागत रैंकिंग प्रभावित हो सकती है। खासकर, पिछड़े जिलों में स्थापित नए शिक्षण संस्थान इस समस्या से अधिक प्रभावित हैं, जिससे ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो (जीईआर) और छात्र प्रदर्शन पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है।
एफएम यूनिवर्सिटी के कुलपति संतोष त्रिपाठी ने मीडिया को दिये गये बयान में कहा है कि साल 2020 से फैकल्टी की नियुक्ति रुकी हुई है। हमें हमेशा नैक और एनआईआरएफ अधिकारियों को जवाब देना पड़ता है। फैकल्टी की कमी के कारण राज्य के विश्वविद्यालयों की रैंकिंग भी प्रभावित हो रही है। राज्य सरकार से उम्मीद की जा रही है कि वह शीघ्र इस समस्या का समाधान निकालकर रिक्त पदों को भरने की दिशा में कदम उठाएगी।