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ओडिशा में गरीब छात्रों के निजी स्कूलों में दाखिले में देरी

  •  पंजीकरण प्रक्रिया को बार-बार बढ़ाए जाने से अभिभावकों का बढ़ा आक्रोश

भुवनेश्वर। ओडिशा में आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए निजी स्कूलों में 25% सीटों के आरक्षण के तहत प्रवेश प्रक्रिया में हो रही देरी से अभिभावकों में भारी नाराजगी है। आधिकारिक परदर्शी पोर्टल पर पंजीकरण प्रक्रिया को बार-बार बढ़ाए जाने से वे चिंतित हैं, क्योंकि इससे स्कूलों में समय पर दाखिला नहीं हो पा रहा है।
पहले यह पंजीकरण प्रक्रिया 22 जनवरी से 10 फरवरी तक प्रस्तावित थी, जिसे अब 31 मार्च तक बढ़ा दिया गया है, जिससे निजी स्कूलों को अतिरिक्त 50 दिन मिल गए हैं। वहीं, छात्रों को आवेदन 3 अप्रैल से 20 अप्रैल के बीच जमा करने होंगे, जबकि पहले यह प्रक्रिया 1 से 20 मार्च तक होने वाली थी।
इस देरी के चलते गरीब छात्रों के दाखिले जून के अंत तक टलने की आशंका है। अभिभावकों का कहना है कि वे इतनी देर तक इंतजार नहीं कर सकते और मजबूरी में अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलाने पर विवश होंगे।
एक अभिभावक मुक्तिमयी प्रधान ने मीडिया को दिए गए बयान में कहा है कि हमें पता चला है कि दाखिला प्रक्रिया मई के अंत तक चलेगी। क्या हम इतने लंबे समय तक इंतजार कर सकते हैं? हम निजी स्कूलों में महंगी फीस नहीं दे सकते, इसलिए हमें मजबूरन अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजना पड़ेगा।
अन्य अभिभावक संजय सिंह ने आरोप लगाया कि सरकार और निजी स्कूलों की मिलीभगत से जानबूझकर प्रक्रिया को लटकाया जा रहा है, ताकि गरीब बच्चों को दाखिला ही न मिले।
ओडिशा अभिभावक संघ ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा
ओडिशा अभिभावक संघ (ओपीए) ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है। संघ के कार्यकारी अध्यक्ष प्रसन्न बिसोई ने कहा कि प्रक्रिया में देरी इसलिए की जा रही है ताकि गरीब छात्र निजी स्कूलों में दाखिला न ले सकें। शिक्षा विभाग और निजी स्कूलों की मिलीभगत इस पूरे मामले में साफ नजर आ रही है।
अधिकारियों ने इन आरोपों को खारिज किया
शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने इन आरोपों को खारिज किया है। बालेश्वर के अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी धरनीधर पात्रा ने कहा कि प्रवेश प्रक्रिया में कोई देरी नहीं हुई है, यह विभागीय प्रक्रिया का हिस्सा है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से हस्तक्षेप की मांग
ओडिशा अभिभावक संघ ने पहले मुख्य सचिव को इस मुद्दे पर ज्ञापन दिया था, लेकिन समाधान नहीं मिलने पर अब उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से हस्तक्षेप की मांग की है।
अब सरकार से जवाबदेही की मांग
संघ की संयोजक कल्पना साहू ने कहा कि आरटीई कानून के तहत निजी स्कूलों में 25% सीटें गरीब बच्चों के लिए आरक्षित हैं, लेकिन इसे लागू नहीं किया जा रहा है। इसी कारण हमने एनएचआरसी का रुख किया है। मुख्य सवाल यह उठ रहा है कि जब सभी पंजीकृत स्कूलों के दस्तावेज पहले से मौजूद हैं, तो सरकार ने 70 दिनों तक पंजीकरण प्रक्रिया को लंबा करने की अनुमति क्यों दी? इस पर सरकार की प्रतिक्रिया का इंतजार है।
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