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फकीर मोहन विश्वविद्यालय ने शुरू प्रदूषण नियंत्रण की पहल

  • धुआं छोड़ने वाले मोटर वाहनों और प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया

  • एकत्र किए गए कचरे से तैयार कर रहे हैं जैविक खाद

बालेश्वर। ओडिशा के बालेश्वर स्थित फकीर मोहन विश्वविद्यालय ने प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। विश्वविद्यालय ने अपने परिसर को पूरी तरह प्रदूषण मुक्त बनाने के उद्देश्य से धुआं छोड़ने वाले मोटर वाहनों और प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया है। इसके अलावा, विश्वविद्यालय के छात्र अब परिसर से एकत्र किए गए कचरे से जैविक खाद तैयार कर रहे हैं।
आज के समय में पर्यावरण प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है और इसे नियंत्रित करने के लिए विश्वविद्यालय ने कई ठोस कदम उठाए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के छात्रों ने जैविक खाद बनाने की पहल की है। एक नई तकनीक के माध्यम से वे कागज के थैले, सूखे पत्ते, पुराने कपड़े और अन्य बेकार सामग्री को जैविक खाद में बदल रहे हैं। इसके अलावा, बायो-फर्टिलाइजर भी तैयार किया जा रहा है, जिससे विश्वविद्यालय की स्थिरता संबंधी पहल को और बल मिल रहा है।
पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रकाश चंद्र मिश्र ने कहा कि हमारे कुलपति संतोष कुमार त्रिपाठी के मार्गदर्शन में पूरा परिसर प्लास्टिक मुक्त हो गया है। हम जो जैविक खाद तैयार कर रहे हैं, उसे विश्वविद्यालय के कृषि कार्यों में उपयोग किया जा रहा है।
विश्वविद्यालय की पहल सिर्फ कचरा प्रबंधन तक ही सीमित नहीं है। प्रदूषण को कम करने के लिए पिछले एक साल से विश्वविद्यालय परिसर में पेट्रोल और डीजल वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसके विकल्प के रूप में बैटरी से चलने वाले ऑटो-रिक्शा उपलब्ध कराए गए हैं, जिससे प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद मिल रही है।
विश्वविद्यालय की रजिस्ट्रार कुकुमिना दास ने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण के लिए हमारे प्रयासों को व्यापक स्तर पर सराहा जा रहा है। हमने परिसर में पेट्रोल और डीजल वाहनों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है और बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान चलाया है। हमारा उद्देश्य इसे ‘ग्रीन कैंपस’ बनाना है, और यहां का हर व्यक्ति स्वच्छ और टिकाऊ वातावरण बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
कहा जा रहा है कि विश्वविद्यालय का यह कदम पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक मिसाल बन गया है। छात्रों और प्रशासन की प्रतिबद्धता ने यह साबित कर दिया है कि छोटे-छोटे प्रयास भी बड़े बदलाव ला सकते हैं और एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।

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