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न्यायालय ने संतुलित दृष्टिकोण अपनाने पर दिया जोर
भुवनेश्वर। ओडिशा हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि कोई शिक्षित पत्नी कार्य करने और आत्मनिर्भर बनने की क्षमता रखती है, तो वह अपने पति से भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती। इस फैसले को सोशल मीडिया पर काफी सराहना मिल रही है।
हाल ही में आत्महत्या जैसे मामलों में वृद्धि और पुरुषों के प्रति अत्याचार के बढ़ते आरोपों के बीच, पुरुष अधिकारों और विवाह संबंधी कानूनों के दुरुपयोग पर बहस तेज हो गई है। इसी संदर्भ में, जस्टिस गौरिशंकर सतपथी की अध्यक्षता वाली हाईकोर्ट की पीठ ने यह अहम फैसला दिया।
कानून उन महिलाओं को राहत देता है जो आत्मनिर्भर नहीं
न्यायमूर्ति सतपथी ने कहा कि कानून उन पत्नियों का समर्थन करता है, जो वास्तव में आर्थिक रूप से असमर्थ हैं और अपनी जीविका चलाने में सक्षम नहीं हैं। लेकिन यदि कोई महिला शिक्षित है, कार्य अनुभव रखती है और खुद कमाने की क्षमता रखती है, तो उसे सिर्फ भरण-पोषण पाने के लिए बेरोजगार नहीं रहना चाहिए।
परिस्थितियों को देखते हुए किया गया भरण-पोषण में संशोधन
मामले में याचिकाकर्ता पति ने हाईकोर्ट में अपील की थी, क्योंकि निचली अदालत ने पत्नी के पक्ष में 8,000 रुपये प्रतिमाह भरण-पोषण देने का आदेश दिया था। न्यायालय ने पाया कि पत्नी विज्ञान स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा धारक है और पहले मीडिया संस्थानों में कार्य कर चुकी है। इसलिए भरण-पोषण की राशि 8,000 से घटाकर 5,000 रुपये कर दी गई।
सोशल मीडिया पर फैसले की जमकर सराहना
न्यायालय के इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई।
एक उपयोगकर्ता ने लिखा कि न्यायपालिका ने ऐतिहासिक मिसाल कायम की है, यह पूरी तरह न्यायसंगत फैसला है!
वहीं, एक अन्य ने कहा कि ओडिशा कई मामलों में अंडरेट है, लेकिन यहां की न्याय प्रणाली और संस्कृति अन्य राज्यों से कहीं आगे है।
इस फैसले को पुरुषों के अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है और इसे ‘संतुलित न्याय’ की दिशा में बड़ा फैसला बताया जा रहा है।
					
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