भुवनेश्वर. आखिरकार कांतकवि लक्ष्मीकांत महापात्र द्वारा रचित वंदे उत्कल जननी को राज्य सरकार ने राज्य गीत के रुप में मान्यता प्रदान कर दी है. मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की अध्यक्षता में आयोजित राज्य कैबिनेट की बैठक में इस संबंधी प्रस्ताव को अनुमोदन दिया गया.
राज्य के संसदीय मामलों के मंत्री विक्रम केशरी आरुख ने बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत में यह जानकारी दी. वीडियो कान्फ्रेन्सिंग के जरिये यह बैठक हुई. मुख्यमंत्री नवीन पटनायक नवीन निवास से इस बैठक में जुड़े, जबकि अन्य मंत्री लोकसेवा भवन से वीडियो कान्फ्रेन्सिंग के जरिये इसमें शामिल हुए.
कांतकवि लक्ष्मीकांत महापात्र की इस काल जयी रचना को 1912 से उत्कल सम्मेलन के विभिन्न सत्रों में गायन किया जाता रहा है. 1994 माह में सात नवंबर को तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष के निर्देष के बाद विधानसभा सत्र के समाप्ति के बाद इस गीत को का गायन किया जाता रहा है. इसे राज्य गीत की दर्जा देने की मांग काफी दिनों से हो रही थी, लेकिन इसे राज्य गीत का दर्जा नहीं मिल रहा था.
अब राज्य सरकार ने इस कालजयी गीत की मान्यता प्रदान करने के साथ-साथ गीत को गाने के लिए मान्यक्रम भी तय किया है.
- कांतकवि लक्ष्मीकांत महापात्र द्वारा रचित वंदे उत्कल जननी को राज्य गीत की मान्यता प्रदान की गई.
- इस गीत के गायन के अनुमोदित स्वर, शैली तथा रिकार्डिंग राज्य सरकार के सूचना व जनसंपर्क विभाग द्वारा तैयार किया जाएगा.
- इस गीत के गायन अवधि, स्वर तथा शैली उपरोक्त रिकार्डिंग प्रकार का निर्धारण किया गया.
- राज्य सरकार के विभिन्न सरकारी कार्यक्रम, विधानसभा के सत्र व विशेष रुप से आयोजित अन्य सरकारी कार्यक्रमों मे बिना वाद्य के तैयार अनुमोदित संस्करण का गायन किया जाएगा
- विद्यालय, महाविद्यालय व अन्य सभा समितियों तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम में पृष्ठ संगीत या वाद्य यंत्र के जरिये इसका गायन किया जाएगा.
- उद्घाटन, समापन के अवसर पर इस गीत को उद्वोधन गीत के रुप में गायन करते समय सम्मान प्रदर्शन करते हुए उपस्थित जनता को गीत के शुरू होने से अंत तक खड़ा रहना होगा.
- बुजुर्ग, अस्वस्थ, दिव्यांग, गर्भवती महिलाएं, जिन्हें खड़ा होने में दिक्तत हैं, वे अपनी सीट पर नम्रता के साथ बैठकर गीत के प्रति सम्मान प्रदर्शन कर सकते हैं.
- बच्चों के खड़ा नहीं होने पर भी चलेगा.
- इस गीत को पुलिस बैंड, बांसुरी व सीटार जैसे वाद्य यंत्रों के जरिये भी परिवेषण किया जा सकेगा.
- इस संगीत के प्रचार-प्रसार व विकास के लिए सृजनात्मक परिवेषण की लिए किसी प्रकार की रोक नहीं होगी.
- विद्यालय व महाविद्यालयों के पाठ्यक्रम में इस संगीत को शामिल करने के लिए विद्यालय व जनशिक्षा विभाग तथा उच्चशिक्षा विभाग को निर्देश दिया गया है.