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कला जगत में बाबूलाल दोषी एक जीवंत प्रतिभा

  •  उत्कल की कला के प्रचार एवं प्रसार के लिए अतुलनीय योगदान

भुवनेश्वर. वेदों एवं पुराणों में नृत्य एवं संगीत की व्याख्या हर युग में की गई है. निराकार ओंकार, शिव का नटराज स्वरूप कौन नहीं जानता. स्वर्ग लोक हो, इंद्रलोक हो या पाताल लोक हो, नृत्य एवं संगीत हमेशा से मनुष्य का भी एक अभिन्न अंग रहा है. 21वीं सदी में न केवल भारत अपितु पश्चिमी देशों में संगीत म्यूजिक थेरेपी के माध्यम से बहुत रोगों का उपचार हो रहा है.
भारतीय संस्कृति के साथ उत्कल की कला के प्रचार एवं प्रसार के क्षेत्र में स्वर्गीय बाबूलाल दोषी का योगदान अतुलनीय है. स्वर्गीय बाबूलाल दोषी ने स्वयं को कला एवं संस्कृति में समर्पित कर सेवक के रूप में आजीवन कार्य किया. ओडिशा की विश्व प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय नृत्य तथा ओडिशी संगीत हर घर तक पहुंचे, उसके लिए उन्होंने निःस्वार्थ भाव से कटक में कला विकास केंद्र की स्थापना की. आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों की मदद तथा उभरते हुए गुरुओं का सम्मान करने के लिए उन्होंने एक ट्रस्ट का निर्माण किया जो आज एक सेवा दे रहा है. भारतीय नृत्य संगीत महाविद्यालय कला विकास केंद्र केवल ओडिशा में सीमित नहीं रहा, अपितु भारत भारतवर्ष एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में सक्षम रहा. यह कला विकास केंद्र दोषी के मानस संस्थान के रूप में ख्याति प्राप्त है. सन् 1918 में 31 मई को बाबूलाल दोषी का जन्म गुजरात के भावनगर जिला महुआ गांव में एक संभ्रांत परिवार में हुआ था. सन् 1934 में उनके बड़े भाई स्वर्गत जयंतीलाल दोषी के साथ कटक आए और उन्होंने व्यवसाय शुरू किया. कालांतर में और संस्कृत की तरफ उनका आकर्षण बड़ा रहा. शहर को उन्होंने अपना कर्म स्थल बनाया एवं अंतर से यहीं के होकर रह गए. जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता गया दोशी ने की कला और संस्कृति के प्रचार एवं उत्थान के लिए स्वर्गीय प्राण कृष्ण परिजा, स्वर्गीय बैद्यनाथ रथ, रबीन्द्रनाथ मिश्रा, विश्वनाथ राव, विमल घोष, राधानाथ रथ एवं कई गुजराती मित्रों के साथ मिलकर पहले कटक शहर के बांका बाजार एवं बाद में गंगा मंदिर में अस्थाई रूप से विकास केंद्र की स्थापना की. आगे चलकर यूनियन क्लब के पीछे उन्हें जमीन मिली, जहां कला विकास केंद्र के स्थाई रूप से स्थापना हुई और आज न केवल एक सुंदर महाविद्यालय, परन्तु साथ शितताप नियंत्रित हॉल, छात्री निवास, वर्किंग वुमेंस हॉस्टल की स्थापना हुई एवं यह ओडिशा का आकर्षण बिन्दु बन गया. उनकी निष्ठा एवं परिश्रम से ही उन्होंने इस कला विकास केंद्र का रजत जयंती उत्सव मनाया, जहां उस समय के महामहिम राष्ट्रपति स्वर्गीय बीडी जत्ती के द्वारा उद्घाटन हुआ था. यहां सैकड़ों छात्र-छात्राएं नृत्य, संगीत एवं चित्रकला की तालीम लेते हैं. कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय नृत्यांगना इसी कला विकास केंद्र की देन है. इनमें प्रमुख हैं विश्वविद्यालय गुरु केलुचरण महापात्र, गुरु रघुनाथ दत्त, नृत्यशिल्पी कुमकुम मोहंती, रोहिणी दोषी. ओडिशा नृत्य एवं संगीत को विश्व विख्यात करने में स्वर्गीय बाबूलाल दोषी एवं उनकी मानस संतान कला विकास केंद्र की भूमिका महत्वपूर्ण है. आज भी कला और संस्कृति का यह मंदिर कला विकास केंद्र स्वर्गीय बाबूलाल दोशी का प्राणकेंद्र माना जाता है.

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