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ओडिशा कोल घोटाले में पूर्व कोल सचिव एचसी गुप्ता और अन्य बरी

  • दिल्ली कोर्ट ने घोटाले में छह आरोपियों को बरी किया

  • केंद्रीय जांच एजेंसी को लगायी फटकार

  • कहा – सीबीआई यह साबित करने में विफल रही कि आरोपियों द्वारा की गई थी कोई गलत बयानी

नई दिल्ली/भुवनेश्वर। दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट ने ओडिशा के दो कोल ब्लॉकों की आवंटन से संबंधित 2012 के कथित घोटाले में छह आरोपियों को बरी कर दिया है। इनमें पूर्व कोल सचिव एच सी गुप्ता और दो अन्य सार्वजनिक अधिकारी शामिल हैं।
विशेष न्यायाधीश संजय बंसल ने अपने आदेश में कहा कि केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) यह साबित करने में विफल रही कि आरोपियों द्वारा कोई गलत बयानी की गई थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी प्रकार का धोखाधड़ी (चिटिंग) का मामला नहीं बनता, क्योंकि आरोपियों के द्वारा किसी को भटकाया या धोखा नहीं दिया गया था।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि किसी कंपनी ने सही प्रक्रिया का पालन किया और वह पात्र थी, तो उस कंपनी को कोल ब्लॉक आवंटित करने वाले सार्वजनिक कर्मचारियों को किसी अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि जब एनपीपीएल द्वारा किया गया आवेदन पूरा पाया गया और कंपनी को मंत्रालय और ओडिशा राज्य सरकार से सिफारिश मिली, तो आरोपित सार्वजनिक अधिकारियों को किसी अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। हालांकि, यदि कोई प्रशासनिक चूक होती है, तो इन अधिकारियों के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई की जा सकती है, लेकिन यह मामला आपराधिक दायित्व से बाहर है।
इसके अलावा आरोपियों में शामिल अन्य व्यक्ति थे नवभारत पावर प्राइवेट लिमिटेड (एनपीपीएल), इसके तत्कालीन चेयरमैन पी त्रिविकर्मा प्रसाद और तत्कालीन प्रबंध निदेशक य हरिश चंद्र प्रसाद। इन सभी को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (पीएस एक्ट) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत लगाए गए आरोपों से बरी कर दिया गया।
सीबीआई के अनुसार, आरोपियों ने 2006-08 के बीच एक आपराधिक साजिश के तहत कंपनी के भूमि और नेट वर्थ के बारे में झूठी जानकारी दी थी, जिससे मंत्रालय को कोल ब्लॉक्स आवंटित करने के लिए गुमराह किया गया। कंपनी ने अपनी नेट वर्थ और भूमि के बारे में गलत जानकारी दी, जिसे य हरिश चंद्र प्रसाद ने पी त्रिविकर्मा प्रसाद के निर्देश पर प्रस्तुत किया था और इसके आधार पर ओडिशा के रामपिया और रामपिया डिपसाइड कोल ब्लॉक्स का आवंटन किया गया था।
इस मामले में आरोपियों को बरी किए जाने के बाद, इसे एक बड़ी कानूनी जीत के रूप में देखा जा रहा है, जबकि सीबीआई और अन्य संबंधित एजेंसियों के लिए यह एक झटका है।

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