Home / Odisha / ओडिशा में महाष्टमी पर छतर यात्रा के दौरान सैकड़ों जानवरों की बलि
Manikeshwari bhagwati Chattar Jatra ओडिशा में महाष्टमी पर छतर यात्रा के दौरान सैकड़ों जानवरों की बलि

ओडिशा में महाष्टमी पर छतर यात्रा के दौरान सैकड़ों जानवरों की बलि

  • प्रशासन की पशु बलि न देने की बार-बार की गई अपील भी बेअसर

  • भवानीपाटना में अंध विश्वास की भेंट चढ़ी सैकड़ों बकरियों और मुर्गियों

भवानीपाटना। ओडिशा के भवानीपटना में प्रशासन की ओर से पशु बलि न देने की बार-बार की गई अपील के बावजूद शुक्रवार को वार्षिक ‘छतर यात्रा’ के दौरान मां मणिकेश्वर को ‘प्रसन्न’ करने के लिए सैकड़ों बकरियों और मुर्गियों की बलि दी गयी। दुर्गा पूजा के आठवें दिन यानी महाष्टमी को हर साल ओडिशा के आदिवासी बहुल कालाहांडी के भवानीपाटना की सड़कों पर खून बिखरा हुआ दिखाई देता है। कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए 15 पलटन (प्रत्येक में 30 जवान) की तैनाती की गई थी, क्योंकि इस अवसर पर तीन लाख से अधिक लोग एकत्र हुए थे।

महाष्टमी के मौके पर आदिवासी और गैर-आदिवासी दोनों ही पुलिस और प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में सार्वजनिक रूप से पशुओं की बलि देते हैं।

पुलिस और प्रशासन कंधा जनजातियों सहित स्थानीय आबादी की धार्मिक भावनाओं से जुड़ी इस प्रथा को रोकने में अपनी असमर्थता जाहिर कर चुका है। एक वरिष्ठ मजिस्ट्रेट ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि प्रशासन ने यद्यपि पशु बलि के खिलाफ कई जागरूकता अभियान चलाए हैं, लेकिन लोग इसे क्रूरता का कृत्य नहीं मानते।

प्रथा पीढ़ियों से चली आ रही

अधिकारी ने बताया कि यह प्रथा पीढ़ियों से चली आ रही है, लेकिन हर साल बलि दिए जाने वाले पशुओं की संख्या में कमी आई है। उन्होंने बताया कि कलाहांडी के जिलाधिकारी सचिन पवार ने वरिष्ठ अधिकारियों, पुलिस और जनप्रतिनिधियों के साथ कई बैठकें कीं। लोगों को पशु बलि न देने के लिए लाउडस्पीकर से और सोशल मीडिया पर घोषणा की गई, लेकिन सदियों पुरानी मान्यता और परंपरा के कारण भक्तों पर इसका कोई असर नहीं हुआ। हजारों भक्तों ने अपनी मनोकामना पूरी होने के प्रतीक के रूप में कबूतर भी उड़ाए।

भैंसे की गुप्त बलि से शुरू होती है यात्रा

परंपरा के अनुसार, ‘छतर यात्रा’ मध्यरात्रि में अनुष्ठानिक गुप्त पूजा के बाद जेनाखाल से मां मणिकेश्वरी के मुख्य मंदिर में लौटने का प्रतीक है। एक पुजारी ने बताया कि तड़के चार बजे ढोल-नगाड़ों की ताल के साथ शुरू हुई यह यात्रा दोपहर तक तीन किलोमीटर की दूरी तय कर चुकी थी। उन्होंने बताया कि यह यात्रा एक भैंसे की गुप्त बलि से शुरू होती है, जिसके बाद सड़कों पर सामूहिक पशु बलि दी जाती है। दोपहर के समय मंदिर के द्वार पर पहुंचने के बाद शाही परिवार के सदस्य महाराजा अनंत प्रताप देव ने यात्रा का स्वागत किया।

इस खबर को भी पढ़ें-कौन संभालेगा रतन की इंसानियत

Share this news

About admin

Check Also

स्थापना दिवस पर नवीन पटनायक ने अमित शाह पर साधा निशाना

आंबेडकर पर शाह का बयान ‘बेहद दुर्भाग्यपूर्ण’ : नवीन पटनायक एक देश एक चुनाव पर …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *