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कहा-फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत करना न केवल कानून का उल्लंघन, बल्कि न्यायालय की गरिमा व पवित्रता को भी पहुंचाता ठेस
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फर्जी दस्तावेज पेश करने पर ओडिशा हाईकोर्ट ने वकील को लगाई फटकार
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कहा- न्याय अंधा हो सकता है, पर न्यायाधीश दृष्टिहीन नहीं
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आरोपी को किशोर साबित करने के लिए प्रस्तुत किये गये फर्जी प्रमाणपत्र
कटक। राज्य के हाईकोर्ट ने आज कानूनी बिरादरी को आगाह करते हुए कहा कि अदालत में फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत करना न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह न्यायालय की गरिमा और पवित्रता को भी ठेस पहुंचाता है। अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि न्याय के मंदिर में वकील न्याय के पुजारी होते हैं और जब पुजारी ही मंदिर की पवित्रता को ठेस पहुंचाते हैं, तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होता है।
ओडिशा हाईकोर्ट ने एक वकील को फटकार लगाते हुए न्यायालय को गुमराह करने के प्रयास पर सख्त नाराजगी जताई है। वकील ने अपने मुवक्किल को किशोर साबित करने के लिए अदालत में फर्जी दस्तावेज पेश किए थे। हाईकोर्ट की दो सदस्यीय पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति एसके साहू और न्यायमूर्ति चित्तंजन दाश शामिल थे, ने वकील की इस हरकत को न्याय की गरिमा के खिलाफ बताते हुए कड़ी चेतावनी दी।
यह मामला अपीलकर्ता जाटा उर्फ संतान हेसा से संबंधित था, जिसने अपने आपराधिक मामले में दोषसिद्धि के खिलाफ अपील की थी। बचाव पक्ष ने अदालत में एक फर्जी स्कूल स्थानांतरण प्रमाणपत्र पेश कर यह साबित करने की कोशिश की कि अपराध के समय अपीलकर्ता नाबालिग था। हालांकि, प्रमाणपत्र की सत्यता पर संदेह होते ही अदालत ने तुरंत हस्तक्षेप किया और इस अंतरिम आवेदन को खारिज कर दिया।
न्यायालय ने वकील को फटकारते हुए कहा कि न्याय अंधा हो सकता है, लेकिन न्यायाधीश दृष्टिहीन नहीं हैं। कोर्ट ने कानूनी पेशेवरों से ईमानदारी और सत्यनिष्ठा को बरकरार रखने का आह्वान किया। न्यायमूर्ति एसके साहू ने कहा कि न्याय की उचित व्यवस्था बनाए रखने और कानून की महत्ता को स्थापित करने के लिए, यदि सख्त कदम उठाने की जरूरत हो, तो अदालत को संकोच नहीं करना चाहिए।