कोरापुट। ओडिशा केन्द्रीय विश्वविद्यालय, कोरापुट, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार तथा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ का आयोजन हिन्दी-विभाग (ओडिशा केन्द्रीय विश्वविद्यालय, कोरापुट) द्वारा किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन से हुआ। उसके पश्चात कार्यक्रम में पधारे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो चक्रधर त्रिपाठी, सलाहकार प्रो विभासचंद्र झा, प्रभारी कुलसचिव प्रो एनसी पंडा तथा मुख्य वक्ता प्रो वांछानिधि पंडा, अध्यक्ष, विद्वत परिषद विद्याभारती, पूर्व क्षेत्र, भारत आदि ने विभाजन विभीषिका की पोस्टर प्रदर्शनी का उद्घाटन कर अवलोकन किया। तत्पश्चात सभी अतिथियों को उत्तरीय और स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया। ठीक पांच बजे (संध्या) विभाजन के समय नरसंहार में दिवंगत हुए लोगों की स्मृति में दो मिनट का मौन रख कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गयी।
मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित प्रो वांछानिधि पंडा ने अपने वक्तव्य की शुरुआत, ‘जो जाति अपने इतिहास को भूला देती है वह विश्व में कभी खड़ा नहीं हो सकती है’, इस कथन से किया। उन्होंने विभाजन की पृष्ठभूमि को बताते हुए सन् 1857 का स्वतंत्रता संग्राम, सन् 1885 में कांग्रेस की स्थापना, सन् 1905 का बंगाल विभाजन, सन् 1906 में सपरेट इलेक्ट्रोल की घोषणा तथा मुस्लिम लीग की स्थापना, सन् 1920 का ख़िलाफत आंदोलन और नरसंहार, सन् 1931 की कांग्रेस फ़्लैग कमिटी, 16 अगस्त, 1946 का डायरेक्ट एक्शन डे – हिंदुओं का संहार आदि सभी घटनाओं पर प्रकाश डालते हुए विभाजन के पीछे की राजनीति को उजागर किया। उसके पश्चात उन्होंने जून 1948 को मिलने वाली स्वतंत्रता अगस्त 1947 को मिलने के पीछे के कारण पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने, क्या विभाजन को रोका जा सकता था? ऐसा प्रश्न करते हुए उसका उत्तर, हां में दिया और कारण बताया कि विभाजन अनिवार्य नहीं था। अंत में हमारे कर्तव्य की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए कहा कि ‘हमारी आनेवाली पीढ़ियों के मस्तिष्क में अखंड भारत का चित्र बसाना ही हमारा कर्तव्य है।’
‘एक वैकल्पिक इतिहासलेखन के रूप में सिनेमा : विभाजन कथाओं का एक अध्ययन’ विषय पर अपना वक्तव्य देते हुए डॉ सौरभ गुप्ता ने मम्मो, पिंजर आदि फिल्मों के माध्यम से विभाजन की विभीषिका को उजागर करते हुए उसका स्त्रियों पर पड़े प्रभाव को बताया।
अंत में अध्यक्षीय वक्तव्य के रूप में ओडिशा केन्द्रीय विश्वविद्यालय, कोरापुट के कुलपति प्रो चक्रधर त्रिपाठी जी ने अखंड भारत के खंड-खंड होने का कारण बताते हुए कहा कि धार्मिक कट्टरवाद के कारण हमारी सीमाएं कटती गयीं और भारत बंटता गया। इसका एक कारण शिक्षा को भी बताया जिसमें हमें अखंड भारत को नहीं पढ़ाया गया। अंत में उन्होंने ‘अखंड भारत होगा और रामराज्य आएगा’ ऐसे आशावादी कथन से अपने वक्तव्य का समापन किया।
उसके पश्चात कार्यक्रम की अगली कड़ी के रूप में ‘बंटवारा’ शीर्षक फिल्म को दिखाया गया। तत्पश्चात निर्देशक प्रकाश झा द्वारा लिखित तथा एनएसडी द्वारा मंचित नाटक ‘विभाजन एक विभीषिका’ की बहुत ही रोमांचक प्रस्तुति हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष और प्रथम सत्र के विद्यार्थियों द्वारा की गयी।
कार्यक्रम का संचालन हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ चक्रधर पधान तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ मनोज कुमार सिंह ने किया। कार्यक्रम सुचारू रूप से संचालित करने में हिंदी विभाग के अध्यापकगण डॉ सुनीत पासवान, डॉ श्रीकान्त आरले, डॉ मयूरी मिश्रा तथा विद्यार्थियों ने भी सहयोग किया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के अन्य विभाग के अध्यापकगण तथा विद्यार्थी भी उपस्थित थे।